अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 9/ मन्त्र 2
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - वास्तोष्पतिः
छन्दः - दैवी त्रिष्टुप्
सूक्तम् - आत्मा सूक्त
पृ॒थि॒व्यै स्वाहा॑ ॥२॥
स्वर सहित पद पाठपृ॒थि॒व्यै । स्वाहा॑ ॥९.२॥
स्वर रहित मन्त्र
पृथिव्यै स्वाहा ॥२॥
स्वर रहित पद पाठपृथिव्यै । स्वाहा ॥९.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 9; मन्त्र » 2
विषय - स्वास्थ्य लाभ का उपाय।
भावार्थ -
(पृथिव्यै स्वाहा) पृथिवी के लिये मैं उत्तम पदार्थों की आहुति देता हूं। वह भी मुझे स्वस्थता प्रदान करे॥
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ब्रह्मा ऋषिः। वास्तोष्पतिर्देवता। १, ५ देवी बृहत्यौ। २, ६ देवीत्रिष्टुभौ। ३, ४ देवीजगत्यौ। ७ विराडुष्णिक् बृहती पञ्चपदा जगती। ८ पुराकृतित्रिष्टुप् बृहतीगर्भाचतुष्पदा। त्र्यवसाना जगती। अष्टर्चं सूक्तम्॥
इस भाष्य को एडिट करें