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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 25

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 25/ मन्त्र 3
    सूक्त - शुनः शेप देवता - मन्याविनाशनम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - मन्याविनाशन सूक्त

    नव॑ च॒ या न॑व॒तिश्च॑ सं॒यन्ति॒ स्कन्ध्या॑ अ॒भि। इ॒तस्ताः सर्वा॑ नश्यन्तु वा॒का अ॑प॒चिता॑मिव ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नव॑ । च॒ । या: । न॒व॒ति: । च॒ । स॒म्ऽयन्ति॑ । स्कन्ध्या॑: । अ॒भि । इ॒त: । ता: । सर्वा॑: । न॒श्य॒न्तु॒ । वा॒का: । अ॒प॒चिता॑म्ऽइव ॥२५.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नव च या नवतिश्च संयन्ति स्कन्ध्या अभि। इतस्ताः सर्वा नश्यन्तु वाका अपचितामिव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नव । च । या: । नवति: । च । सम्ऽयन्ति । स्कन्ध्या: । अभि । इत: । ता: । सर्वा: । नश्यन्तु । वाका: । अपचिताम्ऽइव ॥२५.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 25; मन्त्र » 3

    भावार्थ -
    (नव च नवतिः च याः) जो निन्यानवे प्रकार की गंडमालाएं (स्कन्ध्याः) कन्धे के चारों ओर (अभि संयन्ति) आजाती हैं। वे भी (अपचितां वाका इव) बुरे माद्दे के फोड़ों के समान (ताः सर्वा इतः नश्यन्तु) इस स्कन्ध भाग से नष्ट हो जायं। डा० बाईज़ ‘हिन्दूसिस्टम आफ़ मैडिसन’ में लिखते हैं—जब छोटी २ गोटियां (Tumours) बेर के फल के समान गला, गर्दन, कंधे और पीठ पर उठती हैं तो वे कफ दोष से बढ़ जाती है और शनैः शनैः बढ़ती जाती हैं। उनको ‘अपचि’ कहते हैं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - शुनःशेप ऋषिः। मन्याविनाशनं देवता। १-३ अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥

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