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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 70

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 70/ मन्त्र 3
    सूक्त - काङ्कायन देवता - अघ्न्या छन्दः - जगती सूक्तम् - अघ्न्या सूक्त

    यथा॑ प्र॒धिर्यथो॑प॒धिर्यथा॒ नभ्यं॑ प्र॒धावधि॑। यथा॑ पुं॒सो वृ॑षण्य॒त स्त्रि॒यां नि॑ह॒न्यते॒ मनः॑। ए॒वा ते॑ अघ्न्ये॒ मनोऽधि॑ व॒त्से नि ह॑न्यताम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यथा॑ । प्र॒ऽधि: । यथा॑ । उ॒प॒ऽधि: । यथा॑ । नभ्य॑म् । प्र॒ऽधौ । अधि॑ । यथा॑ । पुं॒स: । वृ॒ष॒ण्य॒त:। स्त्रि॒याम् । नि॒ऽह॒न्यते॑। मन॑: । ए॒व । ते॒ । अ॒घ्न्ये॒ । मन॑: । अधि॑। व॒त्से । नि । ह॒न्य॒ता॒म् ॥७०.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यथा प्रधिर्यथोपधिर्यथा नभ्यं प्रधावधि। यथा पुंसो वृषण्यत स्त्रियां निहन्यते मनः। एवा ते अघ्न्ये मनोऽधि वत्से नि हन्यताम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यथा । प्रऽधि: । यथा । उपऽधि: । यथा । नभ्यम् । प्रऽधौ । अधि । यथा । पुंस: । वृषण्यत:। स्त्रियाम् । निऽहन्यते। मन: । एव । ते । अघ्न्ये । मन: । अधि। वत्से । नि । हन्यताम् ॥७०.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 70; मन्त्र » 3

    भावार्थ -
    और भी उसी विषय को स्पष्ट करते हैं। (यथा) जिस प्रकार (प्रधिः) लोहे का हाल भीतरी लकड़ी के बने चक्र पर रहता है और (यथा) जिस प्रकार (उपधिः) लकड़ी का चक्र अरों द्वारा बीच के धुरे पर रहता है और (यथा) जिस प्रकार (नभ्यम्) बीचका धुरा (अधि प्रधौ) क्रम से अरों और लकड़ी के चक्र सहित हाल पर आ जाता है और (यथा वृषण्यतः पुंसः मनः स्त्रियां निहन्यताम्) जिस प्रकार वीर्यवान् ब्रह्मचारी पुरुष का मन स्त्री पर जसता है उसी प्रकार हे (अन्ये ते मनः अधि वत्से निहन्यताम्) मातः ! तेरा मन अपने बच्चे पर लगा रहे।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - कांकायन ऋषिः। अघ्न्या देवता जगती। तृचं सूक्तम्॥

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