Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 16 > सूक्त 4

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 4/ मन्त्र 2
    सूक्त - आदित्य देवता - साम्नी उष्णिक् छन्दः - ब्रह्मा सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त

    स्वा॒सद॑सि सू॒षाअ॒मृतो॒ मर्त्ये॒श्वा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒ऽआ॒सत् । अ॒सि॒ । सु॒ऽउ॒षा : । अ॒मृत॑: । मर्त्ये॑षु । आ ॥४.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्वासदसि सूषाअमृतो मर्त्येश्वा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सुऽआसत् । असि । सुऽउषा : । अमृत: । मर्त्येषु । आ ॥४.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 4; मन्त्र » 2

    भावार्थ -
    हे आत्मन् तू (सु-आसत्) उत्तम आसन वाला और (सु-ऊषाः) प्रभात के समान उत्तम प्रकाशवान्, पापों का दण्ड करने वाला है वह ही (मर्त्येषु) मरण धर्मा मनुष्यों में (अमृतः) अमृत, नित्य है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ब्रह्मा ऋषिः। आदित्यो देवता। १, ३ सामन्यनुष्टुभौ, २ साम्न्युष्णिक्, ४ त्रिपदाऽनुष्टुप्, ५ आसुरीगायत्री, ६ आर्च्युष्णिक्, ७त्रिपदाविराङ्गर्भाऽनुष्टुप्। सप्तर्चं चतुर्थ पर्यायसूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top