अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 13/ मन्त्र 5
सूक्त - अप्रतिरथः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप्
सूक्तम् - एकवीर सूक्त
ब॑लविज्ञा॒यः स्थवि॑रः॒ प्रवी॑रः॒ सह॑स्वान्वा॒जी सह॑मान उ॒ग्रः। अ॒भिवी॑रो अ॒भिष॑त्वा सहो॒जिज्जैत्र॑मिन्द्र॒ रथ॒मा ति॑ष्ठ गो॒विद॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठब॒ल॒ऽवि॒ज्ञा॒यः। स्थवि॑रः। प्रऽवी॑रः। सह॑स्वान्। वा॒जी। सह॑मानः। उ॒ग्रः। अ॒भिऽवी॑रः। अ॒भिऽस॑त्वा। स॒हः॒ऽजित्। जैत्र॑म्। इ॒न्द्र॒। रथ॑म्। आ। ति॒ष्ठ॒। गो॒ऽविद॑न् ॥१३.५॥
स्वर रहित मन्त्र
बलविज्ञायः स्थविरः प्रवीरः सहस्वान्वाजी सहमान उग्रः। अभिवीरो अभिषत्वा सहोजिज्जैत्रमिन्द्र रथमा तिष्ठ गोविदम् ॥
स्वर रहित पद पाठबलऽविज्ञायः। स्थविरः। प्रऽवीरः। सहस्वान्। वाजी। सहमानः। उग्रः। अभिऽवीरः। अभिऽसत्वा। सहःऽजित्। जैत्रम्। इन्द्र। रथम्। आ। तिष्ठ। गोऽविदन् ॥१३.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 13; मन्त्र » 5
विषय - इन्द्र, राजा और सेनापति का वर्णन।
भावार्थ -
(बलविज्ञायः) अपने और पराये के बल, सेनाबल को भली प्रकार जानने वाला अथवा सब द्वारा यही हमारा बल है ऐसा जाना हुआ (स्थविरः) युद्ध में स्थिर या पुराना अनुभवी (प्रवीरः) उत्कृष्ट वीर्यवान् सुवीर (सहस्वान्) बलवान् (वाजी) वीर्यवान् अन्न, बल से सम्पन्न (उग्रः) अति भयकारी (सहमानः) शत्रु को पराजित करता हुआ (अभिवीरः) साथ अपने दायें बायें वीर्यवान् नाना वीर पुरुषों को लिये हुए (अभिषत्वा) साक्षात् अधिक सत्व-बल को धारण करने वाला अथवा चारों तरफ़ अपने मोर्चे बैठाने वाला या मुकाबले पर डटने वाला, अथवा चारों ओर बलवान् पुरुषों से घिरा या बलवान् पुरुषों से भी बढ़कर बलवान् (सहोजित्) सबके बलों का विजेता ही राजा इन्द्र है। हे (इन्द्र) इन्द्र ऐश्वर्यवान् राजन् ! हे (गोविदन्) गौ पृथिवी को अपने वश करने हारे तू (रथम् आतिष्ठ) विजयी रथ पर बैठ।
टिप्पणी -
(तृ०) ‘सहोजाः’ (च०) ‘गोवित्’ इति साम० ऋ०। (च०) ‘जैत्रायैरथमातिष्ठ कोविदम्’ इति पैप्प० स०। ‘गोविदम्’ इति क्वचित्।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अप्रतिरथ ऋषिः। इन्द्रो देवता। त्रिष्टुभः। एकादशर्चं सूक्तम्॥
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