अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 27/ मन्त्र 1
सूक्त - भृग्वङ्गिराः
देवता - त्रिवृत्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - सुरक्षा सूक्त
गोभि॑ष्ट्वा पात्वृष॒भो वृषा॑ त्वा पातु वा॒जिभिः॑। वा॒युष्ट्वा॒ ब्रह्म॑णा पा॒त्विन्द्र॑स्त्वा पात्विन्द्रि॒यैः ॥
स्वर सहित पद पाठगोभिः॑। त्वा॒। पा॒तु॒। ऋ॒ष॒भः। वृषा॑। त्वा॒। पा॒तु॒। वा॒जिऽभिः॑। वा॒युः। त्वा॒। ब्रह्म॑णा। पा॒तु॒। इन्द्रः॑। त्वा॒। पा॒तु॒। इ॒न्द्रि॒यैः ॥२७.१॥
स्वर रहित मन्त्र
गोभिष्ट्वा पात्वृषभो वृषा त्वा पातु वाजिभिः। वायुष्ट्वा ब्रह्मणा पात्विन्द्रस्त्वा पात्विन्द्रियैः ॥
स्वर रहित पद पाठगोभिः। त्वा। पातु। ऋषभः। वृषा। त्वा। पातु। वाजिऽभिः। वायुः। त्वा। ब्रह्मणा। पातु। इन्द्रः। त्वा। पातु। इन्द्रियैः ॥२७.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 27; मन्त्र » 1
विषय - जीवन रक्षा।
भावार्थ -
हे मनुष्य ! (त्वा) तुझे (ऋषभः) वीर्य सेचन में समर्थ, सांड (गोभिः) गौओं द्वारा (पातु) पालन करें। (वृषा) वीर्य सेचन में समर्थ अश्व (वाजिभिः) वेगवान घोड़ों से (त्वा पातु) तेरा पालन और रक्षण करे। (वायुः) विद्वान् पुरोहित या शिल्पी (ब्रह्मणा पातु) ब्रह्म = वेदज्ञान या शिल्प से (त्वा पातु) तुझे पालन करे। अथवा (वायुः) वायु अन्तरिक्ष का स्वामी या प्राण (ब्रह्मणा) अन्न द्वारा तेरा पालन करे। (इन्द्रः) इन्द्र आत्मा (इन्द्रियैः) इन्द्रियों से (त्वा पातु) तेरा पालन करे अथवा (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान्, बलवान् पुरुष, राजा, परमेश्वर और विद्युत् प्राण और आचार्य ये सभी अपने (इन्द्रियैः) विशेष बलों या सेवित पदार्थों व अनुभूत ज्ञानों से (त्वा पातु) तेरा पालन करें। (वायु-वैनभसस्षतिः। गो० उ० ४। ९॥ वायुर्वा अन्तरिक्षस्याध्यक्षः। तै० ३। २। १। ३॥ वायुर्वा अध्वर्युः। गो० ५-२। २४॥ वायुर्वाव पुरोहितः ऐ० ८। २७॥ अयं वै वायुर्विश्वकर्मा। श० ८। ११। ७॥
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - भृग्वगिरा ऋषिः। त्रिवृद् उत चन्द्रमा देवता। ३, ९ त्रिष्टुभौ। १० जगती। ११ आर्ची उष्णिक्। १२ आर्च्यनुष्टुप्। १३ साम्नी त्रिष्टुप् (११-१३ एकावसानाः)। शेषाः अनुष्टुभः।
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