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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 3

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 3/ मन्त्र 2
    सूक्त - अथर्वाङ्गिराः देवता - अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - जातवेदा सूक्त

    यस्ते॑ अ॒प्सु म॑हि॒मा यो वने॑षु॒ य ओष॑धीषु प॒शुष्व॒प्स्वन्तः। अग्ने॒ सर्वा॑स्त॒न्वः सं र॑भस्व॒ ताभि॑र्न॒ एहि॑ द्रविणो॒दा अज॑स्रः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः। ते॒। अ॒प्ऽसु। म॒हि॒मा। यः। वने॑षु। यः। ओष॑धीषु। प॒शुषु॑। अ॒प्ऽसु। अ॒न्तः। अग्ने॑। सर्वाः॑। त॒न्वः᳡। सम्। र॒भ॒स्व॒। ताभिः॑। नः॒। आ। इ॒हि॒। द्र॒वि॒णः॒ऽदाः। अज॑स्रः ॥३.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्ते अप्सु महिमा यो वनेषु य ओषधीषु पशुष्वप्स्वन्तः। अग्ने सर्वास्तन्वः सं रभस्व ताभिर्न एहि द्रविणोदा अजस्रः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यः। ते। अप्ऽसु। महिमा। यः। वनेषु। यः। ओषधीषु। पशुषु। अप्ऽसु। अन्तः। अग्ने। सर्वाः। तन्वः। सम्। रभस्व। ताभिः। नः। आ। इहि। द्रविणःऽदाः। अजस्रः ॥३.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 3; मन्त्र » 2

    भावार्थ -
    हे (अग्ने) अग्ने ! (ते) तेरा (यः) जो (अप्सु) जल में (महिमा) महान्, महत्वपूर्ण सामर्थ्य है और (यः) जो (वनेषु) वनों में और वनस्पतियों में जो तेरा महान् सामर्थ्य है, (यः ओषधीषु) और जो ओषधियों में और (पशुषु) पशुओं में, और (अप्सु) प्रजाओं में या अपों, नदियों, जलधारा और लोक लोकान्तरों में तेरा महान् सामर्थ्य है हे अग्ने ! तू (सर्वाः) समस्त (तन्वः) रूपों को (सरभस्व) उत्तम रीति से प्रकट कर। और (ताभिः) उन सहित (नः) हमें द्रविण, धन, ऐश्वर्य के प्रदाता और (अजस्रः) अविनाशी, रूपमें (एहि) प्राप्त हो।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वाङ्गिरा ऋषिः। अग्निर्देवता। १-५ अनुष्टुभः। २ भुरिक, चतुॠचं सूक्तम्॥

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