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अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 3/ मन्त्र 4
सूक्त - अथर्वाङ्गिराः
देवता - अग्निः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - जातवेदा सूक्त
श्रुत्क॑र्णाय क॒वये॒ वेद्या॑य॒ वचो॑भिर्वा॒कैरुप॑ यामि रा॒तिम्। यतो॑ भ॒यमभ॑यं॒ तन्नो॑ अ॒स्त्वव॑ दे॒वानां॑ यज॒ हेडो॑ अग्ने ॥
स्वर सहित पद पाठश्रुत्ऽक॑र्णाय। क॒वये॑। वेद्या॑य। वचः॑ऽभिः। वा॒कैः। उप॑। या॒मि॒। रा॒तिम्। यतः॑। भ॒यम्। अभ॑यम्। तत्। नः॒। अ॒स्तु॒। अव॑। दे॒वाना॑म्। य॒ज॒। हेडः॑। अ॒ग्ने॒ ॥३.४॥
स्वर रहित मन्त्र
श्रुत्कर्णाय कवये वेद्याय वचोभिर्वाकैरुप यामि रातिम्। यतो भयमभयं तन्नो अस्त्वव देवानां यज हेडो अग्ने ॥
स्वर रहित पद पाठश्रुत्ऽकर्णाय। कवये। वेद्याय। वचःऽभिः। वाकैः। उप। यामि। रातिम्। यतः। भयम्। अभयम्। तत्। नः। अस्तु। अव। देवानाम्। यज। हेडः। अग्ने ॥३.४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 3; मन्त्र » 4
विषय - जातवेदा अग्नि, परमेश्वर का वर्णन।
भावार्थ -
(श्रुत्कर्णाय) श्रवण करने हारे कान रूप, (कवये) कान्तदर्शी, (वेद्याय) परम रूप से ज्ञान करने योग्य, परमेश्वर से (वाकैः) नित्य पाठ करने योग्य अथवा (वाकैः =पाकैः) अच्छी प्रकार सुविचारित (वचोभिः) स्तुति वचनों और वेद मन्त्रों द्वारा (रातिम्) अभिलषित दान की (उपयामि) याचना करता हूं। और प्रार्थना करता हूं कि (यतः) जिधर से भी (भयम्) भय हो (तत्) उधर से (नः अभयम् अस्तु) हमें अभय हो ! हे (अग्ने) अग्रणी, नेतः ! प्रभो ! आप (देवानां) दिव्य पदार्थों, और विद्वानों अथवा क्रीड़ाशील पुरुषों के (हेडः) क्रोध को (अवयज) दूर कर। राजा और ईश्वर के पक्ष में समान है।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वाङ्गिरा ऋषिः। अग्निर्देवता। १-५ अनुष्टुभः। २ भुरिक, चतुॠचं सूक्तम्॥
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