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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 47

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 47/ मन्त्र 5
    सूक्त - गोपथः देवता - रात्रिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - रात्रि सूक्त

    द्वौ च॑ ते विंश॒तिश्च॑ ते॒ रात्र्येका॑दशाव॒माः। तेभि॑र्नो अ॒द्य पा॒युभि॒र्नु पा॑हि दुहितर्दिवः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    द्वौ। च॒। ते॒। विं॒श॒तिः। च॒। ते॒। रात्रि॑। एका॑दश। अ॒व॒माः। तेभिः॑। नः॒। अ॒द्य। पा॒युऽभिः॑। नु। पा॒हि॒। दु॒हि॒तः॒। दि॒वः॒ ॥४७.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    द्वौ च ते विंशतिश्च ते रात्र्येकादशावमाः। तेभिर्नो अद्य पायुभिर्नु पाहि दुहितर्दिवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    द्वौ। च। ते। विंशतिः। च। ते। रात्रि। एकादश। अवमाः। तेभिः। नः। अद्य। पायुऽभिः। नु। पाहि। दुहितः। दिवः ॥४७.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 47; मन्त्र » 5

    भावार्थ -
    हे (रेवति) धनवति ! ऐश्वर्यंवती राजशक्ते ! हे (सुम्नयि) प्रजा को सुख देनेहारी ! हे (वाजिनि) अन्न और बल से सम्पन्न ! हे रात्रि ! प्रजा सुखदात्रि ! हे (दिवः दुहितः) द्यौ=आदित्य की पुत्री, उषा के समान प्रकाश करने वाली (दिवः दुहितः) प्रकाश को दोहन, पूर्ण करने या प्रदान करने वाली राजसभे ! राजशक्ते ! (ते) तेरे जो प्रजा राज्य के व्यवहारों के देखने वाले संख्या में (षट् च षष्टिः श्व) छियासठ ६६ या (पञ्च पञ्चाशत्) पचपन, ५५, (चत्वारः चत्वारिंशत् च) चवालीस ४४ और या (त्रयः त्रिंशत् च) तैंतीस या (द्वौ च विंशतिः च) बाईस २२ या (अवमाः) सबसे कम (एकादश) ग्यारह विद्वान् पुरुष हैं (नः) हमें (अद्य) निरन्तर (तेभिः पायुभिः) उन पालन करने वाले देश पालक पुरुषों से (पाहि नु) हमें अवश्य पालन कर। अर्थात् राजसभा में ९९, ८८, ७७, ६६, ५५, ४४, ३३, २२, या कमसे कम ११ विद्वान् हों उनके ऊपर राज्यकार्यों का देखने का भार हो। उन सभासदों का नाम ‘नृचक्षा’ है। इन्द्र की राजसभा में १००० ऋषि थे। इसीसे वह सहस्राक्ष कहाता था। अर्थशा० कौ०। ‘योनिरेव वरुणः’। श० १२। ९। १। १७॥ इस प्रमाण से गत सूक्त में शतयोनि का तात्पर्य ‘शतवरुण’ समझना चाहिये अर्थात् जिसके अधीन सौ प्रजा के स्वयंवृत नेता हों। वे प्रजा को संभालें इसीसे वे ‘शतधाम’ कहाते हैं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - गोपथ ऋषिः। मन्त्रोक्ता रात्रिर्देवता। १ पथ्याबृहती। २ पञ्चपदा अनुष्टुब् गर्भा परातिजगती। ६ पुरस्ताद् बृहती। ७ त्र्यवसाना षट्पदा जगती। शेषा अनुष्टुभः। नवर्चं सूक्तम्॥

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