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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 11

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 11/ मन्त्र 2
    सूक्त - विश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-११

    म॒खस्य॑ ते तवि॒षस्य॒ प्र जू॒तिमिय॑र्मि॒ वाच॑म॒मृता॑य॒ भूष॑न्। इन्द्र॑ क्षिती॒नाम॑सि॒ मानु॑षीणां वि॒शां दैवी॑नामु॒त पू॑र्व॒यावा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    म॒खस्य॑ । ते॒ । त॒वि॒षस्य॑ । प्र । जू॒तिम् । इय॑र्मि । वाच॑म् । अ॒मृता॑य । भूष॑न् ॥ इन्द्र॑ । क्षि॒ती॒नाम् । अ॒सि॒ । मानु॑षीणाम् । वि॒शाम् । दैवी॑नाम् । उ॒त । पू॒र्व॒ऽयावा॑ ॥११.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मखस्य ते तविषस्य प्र जूतिमियर्मि वाचममृताय भूषन्। इन्द्र क्षितीनामसि मानुषीणां विशां दैवीनामुत पूर्वयावा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मखस्य । ते । तविषस्य । प्र । जूतिम् । इयर्मि । वाचम् । अमृताय । भूषन् ॥ इन्द्र । क्षितीनाम् । असि । मानुषीणाम् । विशाम् । दैवीनाम् । उत । पूर्वऽयावा ॥११.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 11; मन्त्र » 2

    भावार्थ -
    हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् परमेश्वर ! तू (मानुषीणाम्) समस्त साधारण मनुष्यों (क्षितीनाम्) प्रजाओं और (दैवीनाम्) दैवी, सूर्य चन्द्रादि (विशाम्) तेरे में प्रविष्ट समस्त लोकरूप प्रजाओं में (उत) भी (पूर्वयावा) सब से प्रथम सत् रूप में प्राप्त होने योग्य (असि) रहा है और होगा। (अमृताय) अमृत, मोक्षपद के प्राप्त होने के लिये स्वयं (भूषन्) योग्य होने इच्छा करता हुआ। (मखस्य) सर्वव्यापक, सर्वज्ञ, एकमात्र वेद्य, सर्वोपगम्य पूजनीय (तविषस्य) सर्व शक्तिमान् एवं महान् (ते) तेरी (प्रजूतिम्) महती वेगवती शक्ति और व्यापक, (वाचम्) वेदज्ञानमयी वाणी को (इयर्मि) प्राप्त होता हूं। उसका ज्ञान करता हूं। राजा के पक्ष में—तू समस्त साधारण और विशेष विद्वान्, दानशील प्रजाओं का (पूर्वयावा) अग्रणी है। तुझ पूजनीय, महान बलशाली वेगवती शक्तिशाली (वाचम्) आज्ञाओं में (अमृताय भूषन्) दीर्घ जीवन के प्राप्त करने के लिये या अमृत अन्न आदि पदार्थों की प्राप्ति के लिये मैं पालन करूं। ‘मखः’—‘मख मखि गत्यर्थों’ (भ्वादी)। ‘तविषस्य’—तवः बलं तद्वतः।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - विश्वामित्र ऋषिः। इन्द्रो देवता। त्रिष्टुभः। एकादशर्चं सूक्तम्।

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