अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 11/ मन्त्र 3
इन्द्रो॑ वृ॒त्रम॑वृणो॒च्छर्ध॑नीतिः॒ प्र मा॒यिना॑ममिना॒द्वर्प॑णीतिः। अह॒न्व्यंसमु॒शध॒ग्वने॑ष्वा॒विर्धेना॑ अकृणोद्रा॒म्याणा॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्र॑: । वृ॒त्रम् । अ॒वृ॒णो॒त् । शर्ध॑ऽनीति: । प्र । मा॒यिना॑म् । अ॒मि॒ना॒त् । वर्प॑ऽनीति॑: ॥ अह॑न् । विऽअं॑सम् । उ॒शध॑क् । वने॑षु । आ॒वि: । धेना॑: । अ॒कृ॒णो॒त् । रा॒म्याणा॑म् ॥११.३॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रो वृत्रमवृणोच्छर्धनीतिः प्र मायिनाममिनाद्वर्पणीतिः। अहन्व्यंसमुशधग्वनेष्वाविर्धेना अकृणोद्राम्याणाम् ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्र: । वृत्रम् । अवृणोत् । शर्धऽनीति: । प्र । मायिनाम् । अमिनात् । वर्पऽनीति: ॥ अहन् । विऽअंसम् । उशधक् । वनेषु । आवि: । धेना: । अकृणोत् । राम्याणाम् ॥११.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 11; मन्त्र » 3
विषय - परमेश्वर और राजा।
भावार्थ -
(इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् परमेश्वर (शर्धंनीतिः) बल को प्राप्त करके ही (वृत्रम्) आचरणकारी अज्ञान को (अवृणोत्) दूर करता है। और वही (वर्पणीतिः) अपने रूप को प्राप्त कराने वाला होकर ही (मायिनाम्) माया वाले प्राणों के बन्धन को (प्र अमिनात्) भली प्रकार नाश करता है। (वनेषु) जंगलों में (उशधग्) अग्नि जिस प्रकार जला कर सब कुछ भस्म कर देता है, वह परमेश्वर भी (वनेषु) बनन अर्थात् भजन करने वाले परम भक्तों में (उशधग्) उनकी समस्त कामनाओं को भस्म करने वाला होकर, उनकी कर्म वासनाओं को समूल नष्ट करके (वि अंसम् अहन्) उनके समस्त अंस अर्थात् पीड़ाजनक कष्टों को दूर करके उनको (अहन्) प्राप्त होजाता है। और तब (राम्याणाम्) इस पर ब्रह्म में रमण करने हारे उन तत्व ज्ञानियों की (धेनाः) स्तुतिमयी वाणियों को (आविः अकृणोत्) प्रकट करता है।
राजा के पक्ष में—(शर्धनीतिः) बल को प्रयोग करने वाला, राजा (वृत्रम्) राष्ट्र को घेरने वाले को छिन्न भिन्न करे। (वर्पनीतिः) नाना रूपों के शस्त्रादि संचालन में चतुर होकर अथवा स्वयं अपने आप नेता होकर (मायिनाम् प्र अमिनात्) मायावी दुष्ट पुरुषों को नाश करे। जंगलों को जिस प्रकार अग्नि भस्म कर देती है उस प्रकार वह शत्रुओं को (व्यंसम्) उनके कन्धे आदि या सेना के छांग काट काट कर उनको (अहन्) मारे और तब (राम्याणाम्) अपने में रमण करने वाली या रमण करने योग्य प्रजाओं की हर्ष भरी वाणियों को प्रकट करे।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - विश्वामित्र ऋषिः। इन्द्रो देवता। त्रिष्टुभः। एकादशर्चं सूक्तम्।
इस भाष्य को एडिट करें