अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 134/ मन्त्र 1
सूक्त -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - निचृत्साम्नी पङ्क्तिः
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
इ॒हेत्थ प्रागपा॒गुद॑ग॒धरा॒गरा॑ला॒गुद॑भर्त्सथ ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒ह । इत्थ॑ । प्राक् । अपा॒क् । उद॑क् । अ॒ध॒राक् । अरा॑लअ॒गुदभर्त्सथ ॥१३४.१॥
स्वर रहित मन्त्र
इहेत्थ प्रागपागुदगधरागरालागुदभर्त्सथ ॥
स्वर रहित पद पाठइह । इत्थ । प्राक् । अपाक् । उदक् । अधराक् । अरालअगुदभर्त्सथ ॥१३४.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 134; मन्त्र » 1
विषय - जीव, ब्रह्म, प्रकृति।
भावार्थ -
(इह) इस जगत् में (इत्था) इस प्रकार (प्राग्) आगे, (अपाक्) पीछे, (उदक्) ऊपर और (अधराक्) नीचे ये सब दिशाएं (उदभिः) जलों और जीवों से (आसन्ना) व्याप्त हैं। बतलाओ कैसे ? उत्तर—ऐसे भरी हैं जैसे जलों से जलपात्र भरे हो।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - missing
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