अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 134/ मन्त्र 4
सूक्त -
देवता - प्रजापतिः
छन्दः - विराट्साम्नी पङ्क्तिः
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
इ॒हेत्थ प्रागपा॒गुद॑ग॒धरा॒क्स वै॑ पृ॒थु ली॑यते ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒ह । इत्थ॑ । प्राक् । अपा॒क् । उद॑क् । अ॒ध॒राक् । स: । वै॑ । पृ॒थु । ली॑यते ॥१३४.४॥
स्वर रहित मन्त्र
इहेत्थ प्रागपागुदगधराक्स वै पृथु लीयते ॥
स्वर रहित पद पाठइह । इत्थ । प्राक् । अपाक् । उदक् । अधराक् । स: । वै । पृथु । लीयते ॥१३४.४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 134; मन्त्र » 4
विषय - जीव, ब्रह्म, प्रकृति।
भावार्थ -
(सा) वह अविद्या तो (प्राग० इत्यादि) सब तरफ से ज्ञानरूप ब्रह्म से स्पर्श पाकर ही विलीन होजाती है। बतलाओ कैसे ? ऐसे जैसे पानी की बूंद हाथ से छूते ही उसी में लग जाती है।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - missing
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