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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 141

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 141/ मन्त्र 4
    सूक्त - शशकर्णः देवता - अश्विनौ छन्दः - बृहती सूक्तम् - सूक्त १४१

    आ नू॒नं या॑तमश्विने॒मा ह॒व्यानि॑ वां हि॒ता। इ॒मे सोमा॑सो॒ अधि॑ तु॒र्वशे॒ यदा॑वि॒मे कण्वे॑षु वा॒मथ॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । नू॒नम् । या॒त॒म् । अ॒श्वि॒ना॒ । इ॒मा । ह॒व्यानि॑ । वा॒म् । हि॒ता ॥ इ॒मे । सोमा॑स: । अधि॑ । तु॒र्वशे॑ । यदौ॑ । इ॒मे । कण्वे॑षु । वा॒म् । अथ॑ ॥१४१.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ नूनं यातमश्विनेमा हव्यानि वां हिता। इमे सोमासो अधि तुर्वशे यदाविमे कण्वेषु वामथ ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । नूनम् । यातम् । अश्विना । इमा । हव्यानि । वाम् । हिता ॥ इमे । सोमास: । अधि । तुर्वशे । यदौ । इमे । कण्वेषु । वाम् । अथ ॥१४१.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 141; मन्त्र » 4

    भावार्थ -
    हे (अश्विना) अश्विगण, व्यापक अधिकारवान् पुरुषो ! आप दोनों (नूनम् आयातम्) अवश्य प्राप्त होवो। (वां) तुम दोनों के लिये (इमा हव्यानि) ये ग्रहण करने योग्य अन्न आदि भोग्य पदार्थ (हिता) रखे हैं। (इमे) ये (सोमासः) ऐश्वर्य वाले पदार्थ जो (तुर्वशे) चारों पुरुषार्थों की कामना करने वाले और (यदी अधि) यत्नशील प्रजाजन के अधिकार में हैं और (इमे) ये समस्त ऐश्वर्य जो (कण्वेषु) विशेष मेधावी विद्वान् पुरुषों में हैं वे सब (अथ वाम्) तुम दोनों के ही हैं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - शशकर्ण ऋषिः। अश्विनौ देवता। पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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