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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 25

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 25/ मन्त्र 5
    सूक्त - गोतमः देवता - इन्द्रः छन्दः - जगती सूक्तम् - सूक्त-२५

    य॒ज्ञैरथ॑र्वा प्रथ॒मः प॒थस्त॑ते॒ ततः॒ सूर्यो॑ व्रत॒पा वे॒न आज॑नि। आ गा आ॑जदु॒शना॑ का॒व्यः सचा॑ य॒मस्य॑ जा॒तम॒मृतं॑ यजामहे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य॒ज्ञै: । अथ॑र्वा । प्र॒थ॒म: । प॒थ: । त॒ते॒ । तत॑: । सूर्य॑: । व्र॒त॒पा: । वे॒न: ।आ । अ॒ज॒नि॒ ॥ आ । गा: । आ॒ज॒त् । उ॒शना॑ । का॒व्य: ।सचा॑ । य॒मस्य॑ । जा॒तम् । अ॒मृत॑म् । य॒जा॒म॒हे॒ ॥२५.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यज्ञैरथर्वा प्रथमः पथस्तते ततः सूर्यो व्रतपा वेन आजनि। आ गा आजदुशना काव्यः सचा यमस्य जातममृतं यजामहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यज्ञै: । अथर्वा । प्रथम: । पथ: । तते । तत: । सूर्य: । व्रतपा: । वेन: ।आ । अजनि ॥ आ । गा: । आजत् । उशना । काव्य: ।सचा । यमस्य । जातम् । अमृतम् । यजामहे ॥२५.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 25; मन्त्र » 5

    भावार्थ -
    (अथर्वा) प्रजाओं का हिंसक, पालक, प्रजापति, राजा (प्रथमः) सबसे श्रेष्ठ होकर (यज्ञैः) परस्पर संगतिकारक, श्रेष्ठ उपायों से (पथः) नाना उत्तम मार्गों को (तते) विस्तृत करता है। (ततः) तब वह (सूर्यः) सूर्य के समान तेजस्वी (व्रतपाः) समस्त उत्तम नियमों का पालक (वेनः) कान्तिमान् (आ अजनि) होजाता है। (उशनाः) वही कान्तिमान् (काव्यः) क्रान्तदर्शी ज्ञानी (गाः) गौओं के समान गोपाल के नाईं रश्मियों को सूर्य के समान, वाणियों को कवि के समान, स्त्रियों को अभिलषित युवा के समान वह (गाः) गन्तव्य या प्राप्त होने वाली प्रजाओं को (आ आजत्) उत्तम मार्ग पर चलाता है। और तभी (यमस्य) उस नियन्ता राजा के (जातम्) उत्पन्न हुए (अमृतम्) अमृत स्वरूप राष्ट्र सुख को (सचा) हम सब एक साथ ही या अन्न को (यजामहे) प्राप्त करें।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - १-६ गोतमो राहूगण ऋषिः। ७ अष्टको वैश्वामित्रः। १-६ जगत्यः। ७ त्रिष्टुप् षडृचं सूक्तम्॥

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