अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 26/ मन्त्र 6
के॒तुं कृ॒ण्वन्न॑के॒तवे॒ पेशो॑ मर्या अपे॒शसे॑। समु॒षद्भि॑रजायथाः ॥
स्वर सहित पद पाठके॒तुम् । कृ॒ण्वन् । अ॒के॒तवे॑ । पेश॑: । म॒र्या॒: । अ॒पे॒शसे॑ ॥ सम् । उ॒षत्ऽभि॑: । अ॒जा॒य॒था॒: ॥२६.६॥
स्वर रहित मन्त्र
केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे। समुषद्भिरजायथाः ॥
स्वर रहित पद पाठकेतुम् । कृण्वन् । अकेतवे । पेश: । मर्या: । अपेशसे ॥ सम् । उषत्ऽभि: । अजायथा: ॥२६.६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 26; मन्त्र » 6
विषय - राजा और ईश्वर का वर्णन
भावार्थ -
हे (मर्याः) मनुष्यो ! (अकेतवे) अज्ञानी पुरुष को (केतुम् कृण्वन्) ज्ञान देता है और (अपेशसे) धनरहित पुरुष को (पेशः कृण्वन्) धन प्रदान करता है। हे इन्द ! (उषद्भिः) उषाकालों से प्रकाशित सूर्य के समान (उषद्भिः) दाह करने वाले शत्रुसंतापक वीर पुरुषों के साथ (सम् अजायथाः) परम शत्रु संतापक होकर प्रकट होता है।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - १-३ शुनःशेपः ४-६ मधुच्छन्दाः ऋषिः। इन्द्रो देवता। १६ गायत्र्यः षडृचं सूक्तम्॥
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