Sidebar
अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 40/ मन्त्र 3
आदह॑ स्व॒धामनु॒ पुन॑र्गर्भ॒त्वमे॑रि॒रे। दधा॑ना॒ नाम॑ य॒ज्ञिय॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठआत् । अह॑ । स्व॒धाम् । अनु॑ । पुन॑: । ग॒र्भ॒ऽत्वम् । आ॒ऽई॒रि॒रे ॥ दधा॑ना: । नाम॑ । य॒ज्ञिय॑म् ॥४०.३॥
स्वर रहित मन्त्र
आदह स्वधामनु पुनर्गर्भत्वमेरिरे। दधाना नाम यज्ञियम् ॥
स्वर रहित पद पाठआत् । अह । स्वधाम् । अनु । पुन: । गर्भऽत्वम् । आऽईरिरे ॥ दधाना: । नाम । यज्ञियम् ॥४०.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 40; मन्त्र » 3
विषय - आत्मा और राजा।
भावार्थ -
(आत्) देह से मुक्त होजाने के पश्चात् (अह) भी (स्वधाम् अनु) अपने शरीर धारण सामर्थ्य, (स्व-धाम्) अपनी धारित प्रवृत्ति या इच्छा के (अनु) अनुसार वे (यज्ञियं) अपने आत्मानुरूप (नाम) स्वरूप को (दधाना) धारण करते हुए (पुनः) फिर भी (गर्भत्वम्) गर्भ को (ऐरिरे) प्राप्त होते हैं। पुनः जन्म लेते हैं।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - मधुच्छन्दा ऋषिः। मरुतो देवता। गायत्र्यः। तृचं सूक्तम्॥
इस भाष्य को एडिट करें