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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 78

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 78/ मन्त्र 1
    सूक्त - शंयुः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-७८

    तद्वो॑ गाय सु॒ते सचा॑ पुरुहू॒ताय॒ सत्व॑ने। शं यद्गवे॒ न शा॒किने॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तत् । व॒: । गा॒य॒ । सु॒ते । सचा॑ । पु॒रु॒ऽहू॒ताय॑ । सत्व॑ने ॥ शम् । यत् । गवे॑ । न । शा॒किने॑ ॥७८.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तद्वो गाय सुते सचा पुरुहूताय सत्वने। शं यद्गवे न शाकिने ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तत् । व: । गाय । सुते । सचा । पुरुऽहूताय । सत्वने ॥ शम् । यत् । गवे । न । शाकिने ॥७८.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 78; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    हे विद्वान् पुरुषो ! (वः) आप लोग (सुते) राज्याभिषेक हो जाने पर (सचा) सब मिलकर एक साथ (सत्वने) वीर्यवान् (शाकिने) शक्तिशाली (गवे न) वृषभ के समान राज्यधुरा को उठाने में समर्थ राजा के लिये (यद्) जो (शं) सुख एवं कल्याणकर हो (तदयाय) उसका उपदेश करो। अध्यात्म में—(गवे न शाकिने) वृषभ के समान शक्तिशाली, वीर्यवान् इन्द्र आत्मा के विषय में आप लोग (गाय) उपदेश करो जो (शं) शान्ति, सुखप्रदान करे।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - शंयुर्त्रषिः। इन्द्रो देवता। गायत्र्यः। तृचं सूक्तम्॥

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