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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 138

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 138/ मन्त्र 5
    सूक्त - अथर्वा देवता - नितत्नीवनस्पतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - क्लीबत्व सूक्त

    यथा॑ न॒डं क॒शिपु॑ने॒ स्त्रियो॑ भि॒न्दन्त्यश्म॑ना। ए॒वा भि॑नद्मि ते॒ शेपो॒ऽमुष्या॒ अधि॑ मु॒ष्कयोः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यथा॑ । न॒डम् । क॒शिपु॑ने । स्रिय॑: । भि॒न्दन्ति॑ । अश्म॑ना । ए॒व । भि॒न॒द्मि॒ । ते॒ । शेप॑: । अ॒मुष्या॑: । अधि॑ । मु॒ष्कयो॑: ॥१३८.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यथा नडं कशिपुने स्त्रियो भिन्दन्त्यश्मना। एवा भिनद्मि ते शेपोऽमुष्या अधि मुष्कयोः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यथा । नडम् । कशिपुने । स्रिय: । भिन्दन्ति । अश्मना । एव । भिनद्मि । ते । शेप: । अमुष्या: । अधि । मुष्कयो: ॥१३८.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 138; मन्त्र » 5

    भावार्थ -
    (यथा) जिस प्रकार (स्त्रियः) स्त्रियां (कशिपुने) चटाई बनाने के लिये (अष्मना) पत्थर से (नडं) नरकुल के नड़े को (भिन्दन्ति) कूट कर नर्म कर लेती हैं (एवा) उसी प्रकार (अमुष्य ते) अमुक पशु रूप (ते) तेरे (मुष्कयोः अधि) अण्डकोशों के ऊपर के (शेपः) प्रजनन इन्द्रिय को (भिनद्मि) कुचल डालूं। व्यभिचारी तथा अतिकामी मनुष्य राष्ट्र की वर्तमान तथा आगामी सन्तति पर बुरा प्रभाव न डाल सकें इसलिये वेद ने ऐसे पुरुषों के लिये उपचार इन मंत्रों में दर्शाये हैं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - क्लीवकर्तुकामोऽथर्वा ऋषिः। वनस्पतिर्देवता। १-२ अनुष्टुभौ। ३ पथ्यापंक्तिः। पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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