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अथर्ववेद > काण्ड 7 > सूक्त 74

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  • अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 74/ मन्त्र 1
    सूक्त - अथर्वाङ्गिराः देवता - जातवेदाः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - गण्डमालाचिकित्सा सूक्त

    अ॑प॒चितां॒ लोहि॑नीनां कृ॒ष्णा मा॒तेति॑ शुश्रुम। मुने॑र्दे॒वस्य॒ मूले॑न॒ सर्वा॑ विध्यामि॒ ता अ॒हम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒प॒ऽचिता॑म् । लोहि॑नीनाम् । कृ॒ष्णा । मा॒ता । इति॑ । शु॒श्रु॒म॒ । मुने॑: । दे॒वस्य॑ । मूले॑न । सर्वा॑: । वि॒ध्या॒मि॒ । ता: । अ॒हम् ॥७८.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपचितां लोहिनीनां कृष्णा मातेति शुश्रुम। मुनेर्देवस्य मूलेन सर्वा विध्यामि ता अहम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अपऽचिताम् । लोहिनीनाम् । कृष्णा । माता । इति । शुश्रुम । मुने: । देवस्य । मूलेन । सर्वा: । विध्यामि । ता: । अहम् ॥७८.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 74; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    (लोहिनीनां) लाल वर्ण की (अप-चिताम्) गण्डमाला की फोड़ियों की (माता) उत्पादक जननी (कृष्णा) कृष्ण वा नीले रंग की नाड़ियां होती हैं (इति) इस प्रकार (शुश्रुम) हम अपने गुरुओं से सुनते हैं। (अहम्) मैं (ताः सर्वाः) उन सब को (देवस्य) प्रकाशमान (मुनेः) मुनि, तेजस्वी अग्नि के (मूलेन) प्रतिष्ठास्थान, आग्नेय-तत्व, तीव्र जलन पैदा करनेवाले पदार्थ से (विध्यामि) बेधता हूं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा ऋषिः। १, २ अपचित-नाशनो देवता, ३ त्वष्टा देवता, ४ जातवेदा देवता। अनुष्टुप् छन्दः। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥

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