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अथर्ववेद > काण्ड 7 > सूक्त 79

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  • अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 79/ मन्त्र 4
    सूक्त - अथर्वा देवता - अमावस्या छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - अमावस्य सूक्त

    अमा॑वास्ये॒ न त्वदे॒तान्य॒न्यो विश्वा॑ रू॒पाणि॑ परि॒भूर्ज॑जान। यत्का॑मास्ते जुहु॒मस्तन्नो॑ अस्तु व॒यं स्या॑म॒ पत॑यो रयी॒णाम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अमा॑ऽवास्ये । न । त्वत् । ए॒तानि॑ । अ॒न्य: । विश्वा॑ । रू॒पाणि॑ । प॒रि॒ऽभू: । ज॒जा॒न॒ । यत्ऽका॑मा: । ते॒ । जु॒हु॒म: । तत् । न॒: । अ॒स्तु॒ । व॒यम् । स्या॒म॒ । पत॑य: । र॒यी॒णाम् ॥८४.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अमावास्ये न त्वदेतान्यन्यो विश्वा रूपाणि परिभूर्जजान। यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नो अस्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अमाऽवास्ये । न । त्वत् । एतानि । अन्य: । विश्वा । रूपाणि । परिऽभू: । जजान । यत्ऽकामा: । ते । जुहुम: । तत् । न: । अस्तु । वयम् । स्याम । पतय: । रयीणाम् ॥८४.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 79; मन्त्र » 4

    भावार्थ -
    हे (अमावास्ये) सहवासशीले गृहपत्नि ! (त्वद्) तुझसे (अन्यः) दूसरा कोई (एतानि) इन (विश्वा रूपाणि) समस्त पुत्र आदि पदार्थों को (परि-भूः) शक्तिमती होकर (न) नहीं (जजान) पैदा करता। (यत्कामाः) जो कामना रख कर हम (जुहुमः) वीर्य आदि का त्याग करते हैं हे परमशक्ते ! (तत् नः) वह पुत्र आदि हमें (अस्तु) प्राप्त हो। और (वयं) हम (रयीणाम्) समस्त धन सम्पत्तियों के (पतयः) स्वामी (स्याम) हों। परम ब्रह्मशक्ति के पक्ष में—हे अमावास्ये ! सब के साथ विद्यमान (न त्वद् अन्यः एतानि विश्वा रूपाणि परिभूर्जजान) तेरे से अतिरिक्त कोई भी दूसरी शक्ति सर्वव्यापक हो कर इन समस्त नाना लोकों को उत्पन्न नहीं करती। (यत्कामाः ते जुहुमः तत् नः अस्तु) जिस मोक्ष पद के लाभ की आकांक्षा करके तेरे प्रति हम आत्मत्याग करते हैं वह हमारी अभिलाषा पूर्ण हो। (वयं स्याम पतयो रयीणाम्) हम रयि—वीर्य, बल और धनों के स्वामी हों।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ता अमावास्या देवता। १ जगती। २, ४ त्रिष्टुभः। चतुर्ऋचं सूक्तम्।

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