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अथर्ववेद > काण्ड 8 > सूक्त 10 > पर्यायः 1

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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 10/ मन्त्र 12
    सूक्त - अथर्वाचार्यः देवता - विराट् छन्दः - याजुषी जगती सूक्तम् - विराट् सूक्त

    सोद॑क्राम॒त्सामन्त्र॑णे॒ न्यक्रामत्।

    स्वर सहित पद पाठ

    सा । उत् । अ॒क्रा॒म॒त् । सा । आ॒ऽमन्त्र॑णे । नि । अ॒क्रा॒म॒त् ॥१०.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोदक्रामत्सामन्त्रणे न्यक्रामत्।

    स्वर रहित पद पाठ

    सा । उत् । अक्रामत् । सा । आऽमन्त्रणे । नि । अक्रामत् ॥१०.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 10; पर्यायः » 1; मन्त्र » 12

    भावार्थ -
    (सा उद् अक्रामत्) वह ऊपर उठी और फिर (सा आमन्त्रणे नि अक्रामत्) वह ‘आमन्त्रण’, परस्पर प्रेम और सम्मानपूर्वक बुलाने के रूप में आ उतरी, प्रकट हुई। (य एवं वेद आमन्त्रणीयः भवति। अस्य आमन्त्रणं यन्ति) जो विराट के इस प्रकार के रूप को जान लेता है वह अन्यों द्वारा सम्मानपूर्वक आमन्त्रण पाता है और इस के आमन्त्रण को दूसरे स्वीकार करते हैं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वाचार्य ऋषिः विराड् देवता। १ त्रिपदार्ची पंक्तिः। २,७ याजुष्यो जगत्यः। ३,९ सामन्यनुष्टुभौ। ५ आर्ची अनुष्टुप्। ७,१३ विराट् गायत्र्यौ। ११ साम्नी बृहती। त्रयोदशर्चं पर्यायसूक्तम्॥

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