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अथर्ववेद > काण्ड 8 > सूक्त 10 > पर्यायः 1

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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 10/ मन्त्र 2
    सूक्त - अथर्वाचार्यः देवता - विराट् छन्दः - याजुषी जगती सूक्तम् - विराट् सूक्त

    सोद॑क्राम॒त्सा गार्ह॑पत्ये॒ न्यक्रामत्।

    स्वर सहित पद पाठ

    सा ।उत् । अ॒क्रा॒म॒त् । सा । गार्ह॑ऽपत्ये । नि । अ॒क्रा॒म॒त् ॥१०.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोदक्रामत्सा गार्हपत्ये न्यक्रामत्।

    स्वर रहित पद पाठ

    सा ।उत् । अक्रामत् । सा । गार्हऽपत्ये । नि । अक्रामत् ॥१०.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 10; पर्यायः » 1; मन्त्र » 2

    भावार्थ -
    (सा) वह विराट् (उत् अक्रामत्) ऊपर उठी और (सा) वह (गार्हपत्ये) गार्हपत्य में (नि अक्रामत्) नीचे आगयी। ‘प्रजापतिर्ह गार्हपत्यः’ कौ० २७। ७॥ अयं वै भूलोको गार्हपत्यः। श० ७। १। १। ६॥ जाया गार्हपत्यः। ऐ० ८। २४॥ कर्मेति गार्हपत्यः। जै० ३। ४। २६।२५॥ अपणो चै गार्हपत्यः। कौ० २। १॥ अन्नं वै गार्हपत्यः को०। २।१॥ वह विराट् उत्क्रमण करके अर्थात् विशालरूप में प्रकट होकर भी प्रजापति के वश में रही, अथवा इस भूलोक, स्त्री, अन्न, कर्म आदि के स्वरूप परिमित रूप में भी प्रकट हुई।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वाचार्य ऋषिः विराड् देवता। १ त्रिपदार्ची पंक्तिः। २,७ याजुष्यो जगत्यः। ३,९ सामन्यनुष्टुभौ। ५ आर्ची अनुष्टुप्। ७,१३ विराट् गायत्र्यौ। ११ साम्नी बृहती। त्रयोदशर्चं पर्यायसूक्तम्॥

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