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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अथर्वाचार्यः देवता - विराट् छन्दः - याजुषी जगती सूक्तम् - विराट् सूक्त
    78

    सोद॑क्राम॒त्सा गार्ह॑पत्ये॒ न्यक्रामत्।

    स्वर सहित पद पाठ

    सा ।उत् । अ॒क्रा॒म॒त् । सा । गार्ह॑ऽपत्ये । नि । अ॒क्रा॒म॒त् ॥१०.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोदक्रामत्सा गार्हपत्ये न्यक्रामत्।

    स्वर रहित पद पाठ

    सा ।उत् । अक्रामत् । सा । गार्हऽपत्ये । नि । अक्रामत् ॥१०.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 10; पर्यायः » 1; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्म विद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    (सा) वह [विराट्] (उत् अक्रामत्) ऊपर चढ़ी, (सा) वह (गार्हपत्ये) गृहपतियों से संयुक्त कर्म में (नि अक्रामत्) नीचे उतरी ॥२॥

    भावार्थ

    उस विराट् ने प्रकट होकर जीवसम्बन्धी प्रत्येक व्यवहार में प्रवेश किया है ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(सा) विराट् (उत्) उपरि (अक्रामत्) पादं स्थापितवती (सा) (गार्हपत्ये) अ० ५।३१।५। गृहपतिभिः संयुक्ते कर्मणि (नि) नीचैः ॥

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    विषय

    विराट् से गार्हपत्य में

    पदार्थ

    १. यहाँ काव्यमय भाषा में शासन-व्यवस्था के विकास का सुन्दर वर्णन हुआ है। (अग्रे) = पहले (वै) = निश्चय से (इदम्) = यह (विराट्) = [वि-राट्] राजा से रहित स्थिति आसीत् थी। कोई शासक न था। (तस्याः जाताया:) = उस प्रादुर्भूत हुई-हुई अराजकता की स्थिति से (सर्वं अबिभेत्) = सभी भयभीत हो उठे कि (इयं एव) = यह विराट् अवस्था ही (इदं भविष्यति) = इस जगत् को प्राप्त होगी [भू प्राप्ती] (इति) = क्या इसी प्रकार यह सब रहेगा? २. इसप्रकार सबके भयभीत होने पर सबमें विचार उठा। एक घर में परिवार के व्यक्तियों ने मिलकर सोचा कि क्या करना चाहिए? परिणामतः (सा) = वह विराट् अवस्था (उदक्रामत्) = उत्क्रान्त हुई। उसमें कुछ सुधार हुआ और प्रत्येक घर में एक व्यक्ति प्रमुख बनाया गया। इसप्रकार (सा) = विराट् अवस्था उत्क्रान्त होकर (गार्हपत्ये न्यक्रामत्) = गार्हपत्य में आकर स्थित हुई। प्रत्येक घर में गृहपति का शासन स्थापित हो गया। घर में अराजकता का लोप हो गया। (यः एवं वेद) = जो इसप्रकार गाईपत्य व्यवस्था के महत्व को समझ लेता है, वह (गृहमेधी भवति) = गृहस्थ यज्ञ को सुन्दरता से चलानेवाला होता है, (गृहपतिः भवति) = गृहपति बनता है-अराजकता पैदा न होने देकर घर का रक्षण करता है।

    भावार्थ

    विराट् [अराजकता] की स्थिति सबको भयंकर प्रतीत हुई, अत: लोगों ने विचार कर प्रत्येक घर में एक को मुखिया नियत किया। यही 'गार्हपत्य' कहलायी। इससे घर में अराजकता का लोप होकर शान्ति की स्थिति उत्पन्न हुई।

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    भाषार्थ

    (सा) वह विराट् (उदक्रामत्) उत्क्रान्त हुई [उसने उत्क्रमण किया, वह समुन्नत हुई, उसने उन्नति की ओर पादविक्षेप किया], (सा) वह समुन्नत हुई-विराट् (गार्हपत्ये) गार्हपत्य व्यवस्था में (न्यक्रामत्) अवतीर्ण हुई।

    टिप्पणी

    [उदक्रामत्= उत् + क्रमु पादविक्षेपे (भ्वादि)। गार्हपत्य का अभिप्राय है, (१) घर का होना; (२) उस के पति अर्थात् स्वामी का होना; (३) पति सम्बन्धी पत्नी का होना। इस द्वारा यह सूचित हुआ है कि गार्हपत्य-व्यवस्था से पूर्व मनुष्य जाति में न तो गृहनिर्माण की व्यवस्था थी, गृह नहीं तो उस का अधिपति भी न था, और पति-पत्नी भाव की न व्यवस्था थी। लगभग यह अवस्था जाङ्गलिक थी, मनुष्य भी लगभग पशु-जीवन के सदृश जीवनचर्या करते थे। मन्त्रों में उदक्रामत् तथा न्यक्रामत् पद भूतकाल के हैं, अतः तदनुसार अर्थ दर्शाए हैं, वस्तुतः अभिप्राय सार्वत्रिक सिद्धान्तरूप है। क्योंकि वेदों में लुङ, लङ्, लिट् वर्तमान में भी प्रयुक्त होते हैं। छन्दसि लुङ् लङ लिटः (अष्टा० ३२।४।६)]।

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    विषय

    ‘विराड्’ के ६ स्वरूप गार्हपत्य, आहवनीय, दक्षिणाग्नि, सभा, समिति और आमन्त्रण।

    भावार्थ

    (सा) वह विराट् (उत् अक्रामत्) ऊपर उठी और (सा) वह (गार्हपत्ये) गार्हपत्य में (नि अक्रामत्) नीचे आगयी। ‘प्रजापतिर्ह गार्हपत्यः’ कौ० २७। ७॥ अयं वै भूलोको गार्हपत्यः। श० ७। १। १। ६॥ जाया गार्हपत्यः। ऐ० ८। २४॥ कर्मेति गार्हपत्यः। जै० ३। ४। २६।२५॥ अपणो चै गार्हपत्यः। कौ० २। १॥ अन्नं वै गार्हपत्यः को०। २।१॥ वह विराट् उत्क्रमण करके अर्थात् विशालरूप में प्रकट होकर भी प्रजापति के वश में रही, अथवा इस भूलोक, स्त्री, अन्न, कर्म आदि के स्वरूप परिमित रूप में भी प्रकट हुई।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वाचार्य ऋषिः विराड् देवता। १ त्रिपदार्ची पंक्तिः। २,७ याजुष्यो जगत्यः। ३,९ सामन्यनुष्टुभौ। ५ आर्ची अनुष्टुप्। ७,१३ विराट् गायत्र्यौ। ११ साम्नी बृहती। त्रयोदशर्चं पर्यायसूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Virat

    Meaning

    That evolved, ascended, and settled in the Garhapatya Agni, sacred fire of the home, i.e., in the institution of marriage, home and sanctity of the family.

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    Translation

    She (Viraj) moved up. She entered into Garhapatya (the house-holder’s fire).

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    Translation

    The rose and his entered into the Garhyapatya fire.

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    Translation

    Matter manifested itself in different physical forms, but was still under the control of God.

    Footnote

    प्रजापतिर्ह गार्हपत्यः कौ० 29-9 गार्यपत्य is God.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(सा) विराट् (उत्) उपरि (अक्रामत्) पादं स्थापितवती (सा) (गार्हपत्ये) अ० ५।३१।५। गृहपतिभिः संयुक्ते कर्मणि (नि) नीचैः ॥

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