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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 16
    ऋषिः - अथर्वाचार्यः देवता - विराट् छन्दः - साम्न्यनुष्टुप् सूक्तम् - विराट् सूक्त
    38

    तद्वि॒षं स॒र्पा उप॑ जीवन्त्युपजीव॒नीयो॑ भवति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तत् । वि॒षम् । स॒र्पा: । उप॑ । जी॒व॒न्ति॒ । उ॒प॒ऽजी॒व॒नीय॑: । भ॒व॒ति॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑ ॥१४.१६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तद्विषं सर्पा उप जीवन्त्युपजीवनीयो भवति य एवं वेद ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तत् । विषम् । सर्पा: । उप । जीवन्ति । उपऽजीवनीय: । भवति । य: । एवम् । वेद ॥१४.१६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 10; पर्यायः » 5; मन्त्र » 16
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    ब्रह्मविद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    (सर्पाः) सर्प (तद् विषम्) उस विष का (उप जीवन्ति) आश्रय लेकर जीते हैं, वह पुरुष (उपजीवनीयः) [दूसरों का] आश्रय (भवति) होता है, (यः एवम् वेद) जो ऐसा जानता है ॥१६॥

    भावार्थ

    दुष्टों की दुष्टता जाननेवाला पुरुष शिष्टों का आश्रयणीय होता है ॥१६॥

    टिप्पणी

    १६−(सर्पाः) भुजङ्गाः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    विषय

    सर्पों द्वारा विष-दोहन

    पदार्थ

    १. (सा उदक्रामत्) = वह विराट् उत्क्रान्त हुई। (सा सर्पान् आगच्छत्) = वह [सप गती] गतिशील व्यक्तियों को प्राप्त हुई। (ताम्) = उस विराट् को (सर्पाः उपाह्वयन्त) = इन गतिशील पुरुषों ने पुकारा कि (विषवति एहि इति) = [विषम्-जलम्] हे प्रशस्त जलवाली! आओ तो। उत्तम राष्ट्र व्यवस्था में पानी का समुचित प्रबन्ध होता है। (तस्याः) = उस विराट् का (वत्स:) = प्रिय वह क्रियाशील व्यक्ति (तक्षक:) = [तक्षक त्विषेर्वा] ज्ञान की दीप्सिवाला व (वैशालेय:) = उदार चित्तवृत्तिवाला [विशाला का पुत्र] (आसीत्) = था। इसका (पात्रम्) = यह रक्षणीय शरीर (अलाबुपात्रम्) = [लबि अवलंसने] न चूनेवाली शक्ति का पात्र होता है। इसके शरीर से शक्ति का अवलंसन नहीं होता। २. (ताम्) = उस विराट् को (धृतराष्ट्र:) = शरीररूप राष्ट्र का धारण करनेवाले (ऐरावतः) = [इरा-Water] प्रशस्त जलवाले-प्रशस्त जल से शरीर को नीरोग रखनेवाले ने (अधोक्) = दुहा। (तां विषम् एव अधोक्) = उसने प्रशस्त जल का ही दोहन किया। (सर्पा:) = ये क्रियाशील जीवनवाले व्यक्ति (तत् विषम् उपजीवन्ति) = उस जल के आधार से जीवन-यात्रा को सुन्दरता से निभाते हैं। (यः एवं वेद) = जो इसप्रकार जल के महत्व को समझता है, वह अपने तथा (उपजीवनीयः भवति) = औरों के लिए जीवन में सहायक होता है।

    भावार्थ

    उत्तम राष्ट्र-व्यवस्था होने पर क्रियाशील व्यक्ति प्रशस्त जल पाकर जीवन को स्वस्थ बना पाते हैं। ये शरीररूप राष्ट्र का उस प्रशस्त जल द्वारा धारण करते हुए औरों के लिए भी सहायक होते हैं।

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    भाषार्थ

    (तत्) उस (विषम्, उप) विष के आश्रय (सर्पाः) सर्पप्रकृति वाले मनुष्य (जीवन्ति) जीवित रहते हैं (यः) जो (एवम्) इस प्रकार इस तथ्य को (वेद) जानता है, वह (उपजीवनीयः) अन्यों के अर्थात् अन्य विष प्रयोक्ताओं के जीवनों का आश्रय (भवति) हो जाता है।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Virat

    Meaning

    That poison the serpents live and live by. One who knows this becomes a friend of life and a supporter of others for life.

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    Translation

    On that poison the surpents subsist.He who knows irthus, become worthy of earning subsistence.

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    Translation

    The venomous reptiles depend on this poison and he who knows this becomes the fit supporter.

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    Translation

    That poison quickens and supports the serpents. He who knows this secret becomes the supporter of others.

    Footnote

    God infuses poison in the serpents through his magic power.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १६−(सर्पाः) भुजङ्गाः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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