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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 13
    ऋषिः - अथर्वाचार्यः देवता - विराट् छन्दः - विराड्गायत्री सूक्तम् - विराट् सूक्त
    91

    यन्त्य॑स्या॒मन्त्र॑णमामन्त्र॒णीयो॑ भवति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यन्ति॑ । अ॒स्य॒ । आ॒ऽमन्त्र॑णम् । आ॒ऽम॒न्त्र॒णीय॑: । भ॒व॒ति॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑॥१०.१३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यन्त्यस्यामन्त्रणमामन्त्रणीयो भवति य एवं वेद ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यन्ति । अस्य । आऽमन्त्रणम् । आऽमन्त्रणीय: । भवति । य: । एवम् । वेद॥१०.१३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 10; पर्यायः » 1; मन्त्र » 13
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्म विद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    [लोग] (अस्य) उसके (आमन्त्रणम्) अभिनन्दन में (यन्ति) जाते हैं, वह (आमन्त्रणीयः) अभिनन्दनयोग्य (भवति) होता है, (यः एवम् वेद) जो ऐसा जानता है ॥१३॥

    भावार्थ

    ईश्वरज्ञानी पुरुष उच्च पद पाकर संसार में अभिनन्दनयोग्य होते हैं ॥१३॥

    टिप्पणी

    १३−(आमन्त्रणीयः) आमन्त्रण-छ। अभिनन्दनीयः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    विषय

    आमन्त्रण [U.N.0.]

    पदार्थ

    १. 'यदि महाद्वीपों का कलह उपस्थित हो जाए तो क्या करें', यह विचार उपस्थित होने पर (सा उदकामत्) = वह विराट् अवस्था और उत्क्रान्त हुई और (सा आमन्त्रणे न्यक्रामत्) = वह 'आमन्त्रण' में आकर विश्रान्त हुई। यह इस पृथिवी पर सबसे बड़ा संगठन है। इसमें सब महाद्वीपों से प्रतिनिधि आमन्त्रित होते हैं और वे मिलकर समस्याओं को सुलझाने का यल करते हैं। २. (यः एवं वेद) = जो इसप्रकार इस आमन्त्रण के बनाने की बात को समझता है, वही (आमन्त्रणीयः भवति) = इस आमन्त्रण का प्रधान बनने के योग्य समझा जाता है और सब (सदस्य अस्य) = इसके पुकारने पर (आमन्त्रणं यन्ति) = 'आमन्त्रण' में जाते हैं-आमन्त्रण में उपस्थित होकर गम्भीर विषयों पर अपना-अपना विचार देने का प्रयत्न करते हैं। यह आमन्त्रण ही 'विश्वशान्ति' का साधन बनता है। यह मानवजाति का सर्वोत्तम संगठन है। इसके होने पर भी कुछ-न-कुछ विराट् अवस्था रह ही जाती है। विराट् अवस्था ही तो उत्क्रान्त होकर यहाँ तक पहुँची है। मनुष्य की सहज अपूर्णता संगठन की अपूर्णता का कारण होगी ही।

    भावार्थ

    'आमन्त्रण' वह संगठन है, जो महाद्वीपों के पारस्परिक कलहों को निपटाकर मनुष्यों को युद्धों की स्थिति से ऊपर उठाता है। युद्धों के अभाव में ही वास्तविक उन्नति सम्भव हैं|

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    भाषार्थ

    (यः) जो सम्राट् (एवम्) इस प्रकार (आमन्त्रणम्) आमन्त्रण के महत्त्व को (वेद) जानता है वह (आमन्त्रणीयः) आमन्त्रण-संस्था का अधिपति (भवति) हो जाता है, और (अस्य) इसकी (आमन्त्रणम्) आमन्त्रण-संस्था में (यन्ति) अन्य सम्राट् जाते हैं।

    टिप्पणी

    [सम्राट्= सम् (संगत हुए) + राट् (राजाओं) की संस्था। आमन्त्रण= साम्राज्यों के मुखिया-सम्राटों या उनके प्रतिनिधियों की संस्था। ये अधिपति-सम्राट् के आमन्त्रण पर आकर परस्पर मन्त्रणा करते हैं, जिस से कि भूमण्डलव्यापी उन्नति हो सके, और पारस्परिक युद्ध न होने पाएं। विशेष – (मन्त्र २) से “सोदक्रामत्" में "सा" द्वारा गार्हपत्य आदि संस्थाओं में उत्क्रान्त हुई विराट् की उत्तरोत्तर उत्क्रान्तियों का वर्णन हुआ है, मन्त्र (१) सम्बन्धी भयावह-विराट् का नहीं। इन उत्क्रान्त हुई विराटों को भी विराट् कहा है, क्योंकि इन उत्क्रान्त विराटों में भी यत्-किञ्चित् (मन्त्र १) का अंश भी सम्भावित विद्यमान रहता है।]

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    विषय

    ‘विराड्’ के ६ स्वरूप गार्हपत्य, आहवनीय, दक्षिणाग्नि, सभा, समिति और आमन्त्रण।

    भावार्थ

    (सा उद् अक्रामत्) वह ऊपर उठी और फिर (सा आमन्त्रणे नि अक्रामत्) वह ‘आमन्त्रण’, परस्पर प्रेम और सम्मानपूर्वक बुलाने के रूप में आ उतरी, प्रकट हुई। (य एवं वेद आमन्त्रणीयः भवति। अस्य आमन्त्रणं यन्ति) जो विराट के इस प्रकार के रूप को जान लेता है वह अन्यों द्वारा सम्मानपूर्वक आमन्त्रण पाता है और इस के आमन्त्रण को दूसरे स्वीकार करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वाचार्य ऋषिः विराड् देवता। १ त्रिपदार्ची पंक्तिः। २,७ याजुष्यो जगत्यः। ३,९ सामन्यनुष्टुभौ। ५ आर्ची अनुष्टुप्। ७,१३ विराट् गायत्र्यौ। ११ साम्नी बृहती। त्रयोदशर्चं पर्यायसूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Virat

    Meaning

    Who knows this importance of the Sabha, Samiti and Amantrana in the ascending order rises to be a member and, further, President of the Amantrana, and ruler, and people worthy of Amantrana come and join the Amantrana under his leadership. (This Sukta thus describes the social organisation in an ascending order from the family and home to community, assembly, i.e., Sabha, Samiti, i.e., Senate, and the Amantrana, Supreme organisation, of the nation and of the world.)

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    Translation

    He, who knows thus, becomes fit to be consulted. People go to him for consultation.

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    Translation

    He who thus knows this becomes fit for negotiation and conversation.

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    Translation

    He who knows this secret of the glory of God, receives respectful invitation from others and people respond to his invitation.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १३−(आमन्त्रणीयः) आमन्त्रण-छ। अभिनन्दनीयः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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