Sidebar
अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 10 के मन्त्र
1 - 1
1 - 2
1 - 3
1 - 4
1 - 5
1 - 6
1 - 7
1 - 8
1 - 9
1 - 10
1 - 11
1 - 12
1 - 13
2 - 1
2 - 2
2 - 3
2 - 4
2 - 5
2 - 6
2 - 7
2 - 8
2 - 9
2 - 10
3 - 1
3 - 2
3 - 3
3 - 4
3 - 5
3 - 6
3 - 7
3 - 8
4 - 1
4 - 2
4 - 3
4 - 4
4 - 5
4 - 6
4 - 7
4 - 8
4 - 9
4 - 10
4 - 11
4 - 12
4 - 13
4 - 14
4 - 15
4 - 16
5 - 1
5 - 2
5 - 3
5 - 4
5 - 5
5 - 6
5 - 7
5 - 8
5 - 9
5 - 10
5 - 11
5 - 12
5 - 13
5 - 14
5 - 15
5 - 16
6 - 1
6 - 2
6 - 3
6 - 4
मन्त्र चुनें
अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 11
ऋषिः - अथर्वाचार्यः
देवता - विराट्
छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप्
सूक्तम् - विराट् सूक्त
66
तां पृथी॑ वै॒न्योधो॒क्तां कृ॒षिं च॑ स॒स्यं चा॑धोक्।
स्वर सहित पद पाठताम् । पृथी॑ । वै॒न्य᳡: । अ॒धो॒क् । ताम् । कृ॒षिम् । च॒ । स॒त्यम् । च॒ । अ॒धो॒क् ॥१३.११॥
स्वर रहित मन्त्र
तां पृथी वैन्योधोक्तां कृषिं च सस्यं चाधोक्।
स्वर रहित पद पाठताम् । पृथी । वैन्य: । अधोक् । ताम् । कृषिम् । च । सत्यम् । च । अधोक् ॥१३.११॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पदार्थ
(ताम्) उसको (वैन्यः) बुद्धिमानों के पास रहनेवाले (पृथी) विस्तारवान् पुरुष ने (अधोक्) दुहा है और (ताम्) उससे (कृषिम्) खेती (च च) और (सस्यम्) धान्य को (अधोक्) दुहा है ॥११॥
भावार्थ
विद्वान् लोग विद्वान् आचार्य्यों से शिक्षा पाकर परमेश्वर की शक्ति द्वारा अनेक लाभ उठाते हैं ॥११॥
टिप्पणी
११−(पृथी) प्रथ विस्तारे। घञर्थे कविधानं सम्प्रसारणं च। मत्वर्थे-इनि। विस्तारवान् (वैन्यः) अ० २।१।१। वेनो मेधावी-निघ० २।१५। अदूरभवश्च। पा० ४।२।७०। इति ण्य। मेधाविनां समीपस्थः (कृषिम्) अ० ३।१२।४। भूमिकर्षणम् (सस्यम्) अ० ७।११।१। धान्यम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥
विषय
मनुष्यों द्वारा कृषि व इरा [अन्न] का दोहन सो
पदार्थ
१.(सा उदक्रामत्) = वह विराट् उत्क्रान्त हुई। (सा मनुष्यान् आगच्छत्) = वह विचारपूर्वक कर्म करनेवालों को [मत्वा कर्माणि सीव्यति] प्राप्त हुई। (ताम्) = उसे (मनुष्याः उपाह्वयन्त) = मनुष्यों ने पुकारा कि (इरावति) = हे अन्नवाली! (एहि इति) = आओ तो। शासन-व्यवस्था के ठीक होने पर मनुष्य सब अन्नों को प्राप्त करने में समर्थ होते हैं। (तस्याः) = उस विराट का (वत्स:) = प्रिय-विचारपूर्वक कर्म करनेवाला मनुष्य (मनु:) = विचारशील व (वैवस्वतः) = ज्ञान की किरणोंवाला [सूर्यपुत्र] (आसीत्) = था। इस मनु-वैवस्वत की (पृथिवी पात्रम्) = पृथिवी ही पान थी-रक्षण-साधन थी। २. (ताम्) = उस विराट् को (पृथी) = शक्तियों का विस्तार करनेवाले (वैन्यः) = मेधावी पुरुष ने (अधोक्) = दुहा। (ते मनुष्या:) = वे विचारपूर्वक कर्म करनेवाले लोग (कृषिं च सस्यं च उपजीवन्ति) = कृषि व कृषि द्वारा उत्पन्न अन्न से अपनी जीवनयात्रा पूर्ण करते हैं। (यः एवं वेद) = जो इसप्रकार कृषि व अन्न के महत्त्व को समझ लेता है, वह (कृष्टराधिः) = कृषि को सिद्ध करनेवाला होता हुआ (उपजीवनीयः भवति) = जीवन-यात्रा निर्वहण में औरों का सहायक होता है।
भावार्थ
विचारपूर्वक कर्मों को करनेवाले लोग विशिष्ट शासन-व्यवस्थावाले देश में कृषि द्वारा अन्न प्रास करते हुए जीवन-यात्रा को पूर्ण करते हैं। शक्तियों का विस्तार करनेवाले ये मेधावी बनते हैं। ये जीवन-यात्रा में औरों के लिए भी सहायक होते हैं।
भाषार्थ
(ताम्) उस विराट् गौ को (पृथी) कृषिविस्तार करने वाले, (वैन्यः) कृषि-मेधावी कृषकों की वंशपरम्परा में उत्पन्न किसान ने (अधोक्) दोहा, (ताम्) उस से (कृषिम् च सस्यं च) कृषिकर्म को तथा सस्य को (अधोक्) दुग्धरूप में दोहा।
टिप्पणी
[पृथी१= जैसे पृथिवी विस्तृत है उसी प्रकार कृषिकर्म का विस्तार करने वाला कृषिकर्म में प्रख्यात कृषक। वैन्यः= वेनः मेधाविनाम (निघं० ३।१५)। वैन्यः = मेघावी कृषकवंश में उत्पन्न, जिस की वंशपरम्परा में कृषिकर्म रहा है, वह कृषि का विशेषज्ञ सम्भावित है। वेन्यः= वेतृ गतिज्ञानचिन्तानिशामनवादित्यग्रहणेषु (भ्वादिः) + ण्यत्] [१. पृथी= (प्रथ-प्रख्याने, भ्वादिः, चुरादिः), प्रथ के "रकार" को "ऋकार" सम्प्रसारण द्वारा हुआ है।]
विषय
विराट् गौ से माया, स्वधा, कृषि, सस्य, ब्रह्म और तपका दोहन।
भावार्थ
(सा उत् अक्रामत्) वह विराट् ऊपर उठी (सा मनुष्यान् आ अगच्छत्) वह मनुष्यों के पास आई। (तां मनुष्याः उपाह्वयन्त इरावति एहि इति) उसको मनुष्यों ने, हे इरावति ! आओ, इस प्रकार आदरपूर्वक बुलाया। (तस्याः) उस विराट् का (मनुः वैवस्वतः वत्सः आसीत्) वैवस्वत मनु वत्स था और (पृथिवी पात्रम्) पृथिवी पात्र था। (ताम्) उस विराट् रूप गौ को (पृथी वैन्यः अधोक) पृथी वैन्य ने दोहन किया। (तां कृषि च सस्यं च अधोक्) उससे कृषि और धान्य प्राप्त किये। (ते मनुष्याः कृषिं च सस्यं च उपजीवन्ति) वे मनुष्य कृषि और सस्य पर ही प्राण धारण करते हैं। (यः एवं वेद) जो इस रहस्य को जानता है वह (कृष्ट-राधिः) कृषि द्वारा ही बहुत धन धान्यसम्पन्न और (उपजीवनीयः भवति) मनुष्यों को जीविका देने में समर्थ होता है। विराट्=इरावती पृथिवी। वैवस्वतो मनुः। विविध प्रकार से प्रजाओं को बसाने हारा मनीषी पुरुष। (वैन्यः पृथी) नाना काम्य पदार्थों का स्वामी, महान् राजा।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वाचार्य ऋषिः। विराड् देवता। १, ५ साम्नां जगत्यौ। २,६,१० साम्नां बृहत्यौ। ३, ४, ८ आर्च्यनुष्टुभः। ९, १३ चतुष्पाद् उष्णिहौ। ७ आसुरी गायत्री। ११ प्राजापत्यानुष्टुप्। १२, १६ आर्ची त्रिष्टुभौ। १४, १५ विराङ्गायत्र्यौ। षोडशर्चं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Virat
Meaning
Prthi, the man seeker of advancement who was friend and disciple of Vena, the sage of knowledge and wisdom, milked her into the earth and thereby received the knowledge of farming and the gift of grain for food.
Translation
Prthi (Expanding one), son of Vena (vainyah) (desirous), milked her, milked cultivation (krsi) and grains (sasya) from her.
Translation
The widely experienced specialist of agricultural knowledge milked this and milked husbandry and grain.
Translation
The highly intellectual person, the friend of the wise realized her. He understood the use of husbandry and grain for sowing.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
११−(पृथी) प्रथ विस्तारे। घञर्थे कविधानं सम्प्रसारणं च। मत्वर्थे-इनि। विस्तारवान् (वैन्यः) अ० २।१।१। वेनो मेधावी-निघ० २।१५। अदूरभवश्च। पा० ४।२।७०। इति ण्य। मेधाविनां समीपस्थः (कृषिम्) अ० ३।१२।४। भूमिकर्षणम् (सस्यम्) अ० ७।११।१। धान्यम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal