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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अथर्वाचार्यः देवता - विराट् छन्दः - साम्नी सूक्तम् - विराट् सूक्त
    80

    गृ॑हमे॒धी गृ॒हप॑तिर्भवति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    गृ॒ह॒ऽमे॒धी । गृ॒हऽप॑ति: । भ॒व॒ति॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑॥१०.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    गृहमेधी गृहपतिर्भवति य एवं वेद ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    गृहऽमेधी । गृहऽपति: । भवति । य: । एवम् । वेद॥१०.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 10; पर्यायः » 1; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्म विद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    वह [पुरुष] (गृहमेधी) घर के काम समझनेवाला (गृहपतिः) गृहपति (भवति) होता है, (यः) जो (एवम्) ऐसा (वेद) जानता है ॥३॥

    भावार्थ

    मन्त्र १ और २ में वर्णित विराट् की महिमा जान कर मनुष्य संसार के कामों में चतुर होता है ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(गृहमेधी) सुप्यजातौ०। पा० ३।२।७८। गृह+मेधृ वधमेधासंगमेषु-णिनि। गृहं गृहकार्यं मेधति जानाति यः स (गृहपतिः) गृहस्वामी ॥

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    विषय

    विराट् से गार्हपत्य में

    पदार्थ

    १. यहाँ काव्यमय भाषा में शासन-व्यवस्था के विकास का सुन्दर वर्णन हुआ है। (अग्रे) = पहले (वै) = निश्चय से (इदम्) = यह (विराट्) = [वि-राट्] राजा से रहित स्थिति आसीत् थी। कोई शासक न था। (तस्याः जाताया:) = उस प्रादुर्भूत हुई-हुई अराजकता की स्थिति से (सर्वं अबिभेत्) = सभी भयभीत हो उठे कि (इयं एव) = यह विराट् अवस्था ही (इदं भविष्यति) = इस जगत् को प्राप्त होगी [भू प्राप्ती] (इति) = क्या इसी प्रकार यह सब रहेगा? २. इसप्रकार सबके भयभीत होने पर सबमें विचार उठा। एक घर में परिवार के व्यक्तियों ने मिलकर सोचा कि क्या करना चाहिए? परिणामतः (सा) = वह विराट् अवस्था (उदक्रामत्) = उत्क्रान्त हुई। उसमें कुछ सुधार हुआ और प्रत्येक घर में एक व्यक्ति प्रमुख बनाया गया। इसप्रकार (सा) = विराट् अवस्था उत्क्रान्त होकर (गार्हपत्ये न्यक्रामत्) = गार्हपत्य में आकर स्थित हुई। प्रत्येक घर में गृहपति का शासन स्थापित हो गया। घर में अराजकता का लोप हो गया। (यः एवं वेद) = जो इसप्रकार गाईपत्य व्यवस्था के महत्व को समझ लेता है, वह (गृहमेधी भवति) = गृहस्थ यज्ञ को सुन्दरता से चलानेवाला होता है, (गृहपतिः भवति) = गृहपति बनता है-अराजकता पैदा न होने देकर घर का रक्षण करता है।

    भावार्थ

    विराट् [अराजकता] की स्थिति सबको भयंकर प्रतीत हुई, अत: लोगों ने विचार कर प्रत्येक घर में एक को मुखिया नियत किया। यही 'गार्हपत्य' कहलायी। इससे घर में अराजकता का लोप होकर शान्ति की स्थिति उत्पन्न हुई।

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    भाषार्थ

    (यः) जो व्यक्ति (एवम्) इस प्रकार (वेद) जानता है वह (गृहमेधी) गृह-यज्ञ का करने वाला और (गृहपतिः) गृह का पति (भवति) हो जाता है।

    टिप्पणी

    [मनुष्यसमाज की दुरवस्था को जान कर जिस ज्ञानी ने इस दुरवस्था को हटाना चाहा, उसने पहिले स्वयं गृहमेध किया, गृहयज्ञ का संगम किया, गृहरचना की, और गृहपति बना, उसने पति-पत्नीभाव को भी व्यवस्थित किया। मेधः यज्ञनाम (निघं० ३।१७), तथा मेध संगमे (भ्वादिः)]।

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    विषय

    ‘विराड्’ के ६ स्वरूप गार्हपत्य, आहवनीय, दक्षिणाग्नि, सभा, समिति और आमन्त्रण।

    भावार्थ

    (यः) जो (एवम्) इस प्रकार (वेद) जानता है। वह (गृहमेधी) गृहमेधी=गृहस्थ (गृहपतिः) गृह अर्थात जाया का पति=पालक होता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वाचार्य ऋषिः विराड् देवता। १ त्रिपदार्ची पंक्तिः। २,७ याजुष्यो जगत्यः। ३,९ सामन्यनुष्टुभौ। ५ आर्ची अनुष्टुप्। ७,१३ विराट् गायत्र्यौ। ११ साम्नी बृहती। त्रयोदशर्चं पर्यायसूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Virat

    Meaning

    One who knows this becomes a performer of the home yajna and master of the family home as a sacred institution. (The family is an organismic unit and the basic prerequisite of a happy society.)

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    Translation

    He, Who knows thus, becomes a household-chief, duly performing household sacrifices (duties).

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    Translation

    He who thus knows this becomes ideal householder and performer of the domestic yajna known as Garhapatya.

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    Translation

    A householder who knows this secret, becomes the guardian of his wife.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(गृहमेधी) सुप्यजातौ०। पा० ३।२।७८। गृह+मेधृ वधमेधासंगमेषु-णिनि। गृहं गृहकार्यं मेधति जानाति यः स (गृहपतिः) गृहस्वामी ॥

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