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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 11
    ऋषिः - अथर्वाचार्यः देवता - विराट् छन्दः - साम्नी बृहती सूक्तम् - विराट् सूक्त
    64

    यन्त्य॑स्य॒ समि॑तिं सामि॒त्यो भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यन्ति॑ । अ॒स्य॒ । सम्ऽइ॑तिम् । सा॒म्ऽइ॒त्य: । भ॒व॒ति॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑ ॥१०.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यन्त्यस्य समितिं सामित्यो भवति य एवं वेद ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यन्ति । अस्य । सम्ऽइतिम् । साम्ऽइत्य: । भवति । य: । एवम् । वेद ॥१०.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 10; पर्यायः » 1; मन्त्र » 11
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    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्म विद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    [लोग] (अस्य) उसके (समितिम्) संग्राम में (यन्ति) जाते हैं, वह (सामित्यः) संग्रामयोग्य [शूर] (भवति) होता है, (यः एवम् वेद) जो ऐसा जानता है ॥११॥

    भावार्थ

    परमेश्वर का विश्वासी पुरुष संग्राम में विजय पाता है ॥११॥

    टिप्पणी

    ११−(सामित्यः) परिषदो ण्यः। पा० ४।४।१०१। समिति-ण्य, बाहुलकात्। संग्रामे साधुः। शूरः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    विषय

    समिति

    पदार्थ

    १. अब एक महाद्वीप के देशों में यदि परस्पर कोई कलह उपस्थित हो जाए तो क्या हो', यह विचार उपस्थित होने पर (सा उदक्रामत्) = वह विराट् अवस्था और उत्क्रान्त हुई और (सा समितौ न्यक्रामत्) = वह समिति में विश्रान्त हुई। एक महाद्वीप के देशों के प्रतिनिधियों की यह सभा समिति कहलायी-जिसमें विविध देशों के प्रतिनिधियों का 'सम् इति' मिलकर गमन होता है। २. (यः एवं वेद) = जो इस समिति के महत्त्व को समझता है और लोगों को इसके महत्त्व को समझाता है वह (सामित्यः भवति) = [समिती साधुः आदरणीयः] समिति में उत्तम होता है और इसके पुकारने पर सब सभ्य (समितिं यन्ति) = समिति में उपस्थित होते हैं। ये समिति के सदस्य देशों के पारस्परिक संघर्षों को पनपने नहीं देते।

    भावार्थ

    देशों के प्रतिनिधियों की सभा 'समिति' कहलाती है, इसका प्रधान 'सामित्य' कहा जाता है। इसकी अध्यक्षता में समिति के सदस्य देशों के कलहों को दूर करने का यत्न करते हैं।

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    भाषार्थ

    (यः) जो (एवम्) इस प्रकार (समितिम्) समिति-संस्था के महत्त्व को (वेद) जानता है वह (सामित्यः) समिति का समितिपति (भवति) हो जाता है, (अस्य) और इस की (समितिम्) समिति में (यन्ति) राजा लोग जाते हैं।

    टिप्पणी

    [समिति है राजसभा, राजाओं की सभा। यथा “यत्रौषधीः समग्मत राजानः समिताविव । विप्रः स उच्यते भिषग् रक्षोहामीवचातनः ॥ (यजु० १२।८०), अर्थात् जिस में ओषधियों का संगम होता है, जैसे कि राजाओं का समिति में, वह विप्र, भिषक् अर्थात् चिकित्सक कहा जाता है, जो कि रोगोत्पादक क्रिमिरूपराक्षसों का हनन करता है, और अमीवाओं का विनाश करता है। अमीवा= अम रोगे (चुरादिः)। इस प्रकार यजुर्वेद में भिषक् के लक्षण में, समिति में राजाओं का संगम दर्शाया है। समिति में राष्ट्रों के राजा एकत्रित होते हैं। यह है "राजसभा " । वेदानुसार राष्ट्रों के राजा वंशानुगत नहीं हैं, अपितु प्रादेशिक प्रजाओं द्वारा चुने१ गए होते हैं। (अथर्व० ६।८७।१; ४।८।४)। यजुर्वेद के मन्त्र में "रक्षोहा" पद में रक्षः का अर्थ राष्ट्रशत्रु जान कर "समिति" द्वारा "युद्धसमिति" अर्थ प्रायः किया जाता है। यह ठीक नहीं प्रतीत होता। राष्ट्रों के राजाओं की "राजसमिति"२ साम्राज्य के प्रजापति अर्थात् "सम्राट्" का चुनाव करती है। इसलिये कहा है “ये राजानो राजकृतः” (अथर्व० ३।५।७), अर्थात् जो राजा, मुख्य राजा अर्थात् सम्राट् को नियत करते हैं, "राजानं कुर्वन्तीति राजकृतः"]। [१. “विशस्त्वा सर्वा वाञ्छन्तु मा त्वद्राष्ट्रमधि भ्रशत् " (अथर्व० ६।८७।१)। तथा "विशस्त्वा सर्वा वाञ्छन्तु" (अथर्व० ४।८।४)। २. सभा संगठन है राष्ट्रसभा अर्थात् प्रत्येक राष्ट्र तक सीमित सभा। और जब राजसमिति का निर्माण हो जाता है, तब राष्ट्र-सभा और राज-समिति मिल कर साम्राज्य कहलाता है, साम्राज्य= संयुक्त राज्य। और इस का अधिपति सम्राट् कहलाता है। सम्राट् = संगत हुए राजाओं की संस्था। यजुर्वेद में कहा है कि "इन्द्रश्च सम्राट् वरुणश्च राजा" (८।३७)। सम्राट्= इन्द्र तथा इन्द्र= सम्राट्। अथर्व० ७।१३।१ में सम्राट् को प्रजापति भी कहा है, अर्थात् नाना राष्ट्रों की नानाविध प्रजाओं का पति "वरुणश्च राजा" राजा को वरुण कहा है, यतः राजा सम्राट् का वरण अर्थात् चुनाव करते हैं।]

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    विषय

    ‘विराड्’ के ६ स्वरूप गार्हपत्य, आहवनीय, दक्षिणाग्नि, सभा, समिति और आमन्त्रण।

    भावार्थ

    (सा उद् अक्रामत्) वह ऊपर उठी और (सा समितौ नि अक्रामत्) वह समिति, सर्व साधारण विशाल सभा के रूप में आ उतरी, प्रकट हुई। (य एवं वेद सामित्यो भवति) जो विराट् के इस प्रकार के स्वरूपों को जान लेता है वह समिति या जनसमाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। (अस्य समितिं यन्ति) लोग उसकी समिति या संगति को प्राप्त होते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वाचार्य ऋषिः विराड् देवता। १ त्रिपदार्ची पंक्तिः। २,७ याजुष्यो जगत्यः। ३,९ सामन्यनुष्टुभौ। ५ आर्ची अनुष्टुप्। ७,१३ विराट् गायत्र्यौ। ११ साम्नी बृहती। त्रयोदशर्चं पर्यायसूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Virat

    Meaning

    Whoever knows thus the importance of Samiti (at the inter-organisational level) becomes worthy of the membership and leadership of the Samiti and people worthy of Samiti come and join the Samiti under his leadership, (see Yajurveda 12, 80)

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    Translation

    He, who knows thus, becomes a councillor. People go his council.

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    Translation

    He who thus knows this becomes a good parliamentarian and people come to take his advice and consultation.

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    Translation

    He who knows this secret, becomes a hero on the battlefield, and soldiers accompany him to the battlefield.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ११−(सामित्यः) परिषदो ण्यः। पा० ४।४।१०१। समिति-ण्य, बाहुलकात्। संग्रामे साधुः। शूरः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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