अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 10/ मन्त्र 1
सूक्त - अथर्वाचार्यः
देवता - विराट्
छन्दः - चतुष्पदा साम्नी जगती
सूक्तम् - विराट् सूक्त
सोद॑क्राम॒त्सा दे॒वानाग॑च्छ॒त्तां दे॒वा उपा॑ह्वय॒न्तोर्ज॒ एहीति॑।
स्वर सहित पद पाठसा । उत् । अ॒क्रा॒म॒त् । सा । दे॒वान् । आ । अ॒ग॒च्छ॒त् । ताम् । दे॒वा: । उप॑ । अ॒ह्व॒य॒न्त॒ । ऊर्जे॑ । आ । इ॒हि॒ । इति॑ ॥१४.१॥
स्वर रहित मन्त्र
सोदक्रामत्सा देवानागच्छत्तां देवा उपाह्वयन्तोर्ज एहीति।
स्वर रहित पद पाठसा । उत् । अक्रामत् । सा । देवान् । आ । अगच्छत् । ताम् । देवा: । उप । अह्वयन्त । ऊर्जे । आ । इहि । इति ॥१४.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 10;
पर्यायः » 5;
मन्त्र » 1
विषय - विराड् रूप गौ से ऊर्जा, पुण्य गन्ध, तिरोधा और विष का दोहन।
भावार्थ -
(सा उत् अक्रामत्) वह विराट् उठी, (सा देवान् आगच्छत्) वह देवों के पास आगई, (तां देवाः) उसको देवों ने (उर्जे एहि इति उप अह्वयन्त) ऊर्जे ! आओ इस प्रकार सादर बुलाया। (तस्याः इन्द्रः वत्सः आसीत्) उसका इन्द्र=विद्युत् वत्स था। और (चमसः पात्रम्) चमस पात्र था। (तां देवः सविता अधोक्) उसको देव सविता ने दुहा। (ताम् ऊर्जाम् एव अधोक्) उससे ऊर्ज तेजोमय वीर्य ही प्राप्त किया। (ताम् ऊर्जाम् देवाः उपजीवन्ति) उस ऊर्ज तेजोमय वीर्य पदार्थ पर देवगण जीवन धारण करते हैं। (यः एवं वेद) जो इस प्रकार का रहस्य जानता है वह (उपजीवनीयः भवति) देवों को भी जीवन देने में समर्थ होता है। देव प्राण हैं, इन्द्र आत्मा है, शिरोभाग चमसपात्र है। सविता मुख्य प्राण ने विराट् अन्न में से ऊर्ज, बल का दोहन किया। देव अर्थात् प्राण उसी ऊर्ज अर्थात् वीर्य से अनुप्राणित हैं। महाब्रह्माण्ड में दिव्य पदार्थ अग्नि आदि देव हैं, इन्द्र अर्थात् विद्युत् वत्स है। आकाश चमस पात्र है। उस ब्रह्ममयी विराट् शक्ति से सूर्य ने तेज प्राप्त किया उससे ही समस्त पदार्थ अनुप्राणित हैं।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वाचार्य ऋषिः। विराट् देवता। १, १३ चतुष्पादे साम्नां जगत्यौ। १०,१४ साम्नां वृहत्यौ। १ साम्नी उष्णिक्। ४, १६ आर्च्याऽनुष्टुभौ। ९ उष्णिक्। ८ आर्ची त्रिष्टुप्। २ साम्नी उष्णिक्। ७, ११ विराड्गायत्र्यौ। ५ चतुष्पदा प्राजापत्या जगती। ६ साम्नां बृहती त्रिष्टुप्। १५ साम्नी अनुष्टुप्। षोडशर्चं सूक्तम्॥
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