ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 157/ मन्त्र 2
यद्यु॒ञ्जाथे॒ वृष॑णमश्विना॒ रथं॑ घृ॒तेन॑ नो॒ मधु॑ना क्ष॒त्रमु॑क्षतम्। अ॒स्माकं॒ ब्रह्म॒ पृत॑नासु जिन्वतं व॒यं धना॒ शूर॑साता भजेमहि ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । यु॒ञ्जाथे॒ इति॑ । वृष॑णम् । अ॒श्वि॒ना॒ । रथ॑म् । घृ॒तेन॑ । नः॒ । मधु॑ना । क्ष॒त्रम् । उ॒क्ष॒त॒म् । अ॒स्माक॑म् । ब्रह्म॑ । पृत॑नासु । जि॒न्व॒त॒म् । व॒यम् । धना॑ । शूर॑ऽसाता । भ॒जे॒म॒हि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यद्युञ्जाथे वृषणमश्विना रथं घृतेन नो मधुना क्षत्रमुक्षतम्। अस्माकं ब्रह्म पृतनासु जिन्वतं वयं धना शूरसाता भजेमहि ॥
स्वर रहित पद पाठयत्। युञ्जाथे इति। वृषणम्। अश्विना। रथम्। घृतेन। नः। मधुना। क्षत्रम्। उक्षतम्। अस्माकम्। ब्रह्म। पृतनासु। जिन्वतम्। वयम्। धना। शूरऽसाता। भजेमहि ॥ १.१५७.२
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 157; मन्त्र » 2
अष्टक » 2; अध्याय » 2; वर्ग » 27; मन्त्र » 2
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अष्टक » 2; अध्याय » 2; वर्ग » 27; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ।
अन्वयः
हे अश्विना युवां यद्वृषणं रथं युञ्जाथे ततो घृतेन मधुना नः क्षत्रमुक्षतमस्माकं पृतनासु ब्रह्म जिन्वतं वयं शूरसाता धना भजेमहि ॥ २ ॥
पदार्थः
(यत्) यतः (युञ्जाथे) (वृषणम्) परशक्तिप्रतिबन्धकम् (अश्विना) सभासेनेशौ (रथम्) विमानादियानम् (घृतेन) उदकेन (नः) अस्माकम् (मधुना) मधुरादिगुणयुक्तेन रसेन (क्षत्रम्) क्षत्रियकुलम् (उक्षतम्) सिञ्चतम् (अस्माकम्) (ब्रह्म) ब्राह्मणकुलम् (पृतनासु) सेनासु (जिन्वतम्) प्रीणीतम् (वयम्) प्रजासेनाजनाः (धना) धनानि (शूरसाता) शूरैः संभजनीये संग्रामे (भजेमहि) सेवेमहि ॥ २ ॥
भावार्थः
मनुष्यै राजनीत्यङ्गै राष्ट्रं रक्षित्वा धनादिकं वर्द्धयित्वा संग्रामाञ्जित्वा सर्वेभ्यः सुखोन्नतिः कार्य्या ॥ २ ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
हे (अश्विना) सभा और सेना के अधीशो ! तुम (यत्) जिससे (वृषणम्) शत्रुओं की शक्ति को रोकनेवाले (रथम्) विमान आदि यान को (युञ्जाथे) युक्त करते हो इससे (घृतेन) जल और (मधुना) मधुरादि गुणयुक्त रस से (नः) हम लोगों के (क्षत्रम्) क्षत्रियकुल को (उक्षतम्) सींचो, (अस्माकम्) हमारी (पृतनासु) सेनाओं में (ब्रह्म) ब्राह्मणकुल को (जिन्वतम्) प्रसन्न करो और (वयम्) हम प्रजा सेना जन (शूरसाता) शूरों के सेवने योग्य संग्राम में (धना) धनों को (भजेमहि) सेवन करें ॥ २ ॥
भावार्थ
मनुष्यों को राजनीति के अङ्गों से राज्य को रख कर, धनादि को बढ़ाय और संग्रामों को जीत कर सबके लिये सुख की उन्नति करनी चाहिये ॥ २ ॥
विषय
बल,माधुर्य व दीप्ति
पदार्थ
१. हे (अश्विना) = प्राणापानो! आप (यत्) = जब (वृषणं रथम्) = इस शक्तिशाली रथ को (युञ्जाथे) = उत्तम इन्द्रियाश्वों से जोतते हो, अर्थात् आपकी साधना से यह शरीर दृढ़ होता है और इन्द्रियाँ अपना-अपना कार्य करने में सक्षम होती हैं, तब आप (नः क्षत्रम्) = हमारे बल को घृतेन ज्ञान की दीप्ति से तथा (मधुना) = माधुर्य से - वाणी तथा मन की मधुरता से (उक्षतम्) = सींच देते हो। हममें बल होता है और वह बल, ज्ञान तथा माधुर्य से युक्त होता है। २. (अस्माकं ब्रह्म) = हमारे ज्ञान को आप (पृतनासु) = संग्रामों में (जिन्वतम्) = प्रीणित करनेवाले होओ। आपकी साधना से हमारा ज्ञान उत्तरोत्तर बढ़े और हमें संग्रामों में विजयी बनानेवाला हो । ३. (वयम्) = हम (शूरसाता) = शूरों से सम्भजनीय व सेवनीय इन संग्रामों में (धना) = धनों को (भजेमहि) = प्राप्त करनेवाले हों । प्राणसाधना से हमें संग्रामों में विजय प्राप्त होती है और उस विजय के द्वारा हम अन्नमय आदि सब कोशों को उनके धनों से परिपूर्ण करनेवाले बनते हैं। इस साधना से हम अन्नमयकोश को तेज से, प्राणमयकोश को वीर्य से, मनोमयकोश को ओज व बल से, विज्ञानमयकोश को ज्ञान से तथा आनन्दमयकोश को सहस् से भर पाते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणसाधना से शरीर बलवान् होता है, मन मधुर तथा मस्तिष्क ज्ञान से दीप्त ।
विषय
स्त्री पुरुषों के गृहस्थसम्बन्धी कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे (अश्विना ) ऐश्वर्य और गृहस्थ सुखों के भोगने और एक दूसरे के हृदय में व्यापने वाले, रथ सारथिवत् गृहस्थ स्त्री पुरुषो ! ( यत् ) जब आप दोनों (वृषणं) सुख का और वीर्य का सेवन करने वाले (रथं) रमण करने के साधन रूप अंग को (युंजाथे) संयुक्त करो इससे पूर्व आप दोनों अपने ( क्षत्रम् ) वीर्य को ( घृतेन ) घृत आदि पुष्टकारक पदार्थ से और (मधुना) मधुर अन्न से ( उक्षतम् ) सींचो अर्थात् जिस प्रकार जल से सींचकर वृक्ष को पुष्ट किया जाता है उसी प्रकार स्त्री-पुरुष सन्तानार्थ मिलने के पूर्व पुष्टिप्रद घृत दुग्ध तथा अन्न से वीर्य को पुष्ट करें । इसी प्रकार (अस्माकं ) हमारे ( पृतनासु ) मनुष्यों में ( ब्रह्म ) उत्तम अन्न और बल को पूर्ण करो। जिससे ( वयं ) हम लोग सदा ( शूरसाता ) शूरवीर पुरुषों को प्राप्त करने के लिए ( धना ) नाना ऐश्वर्यो को ( भजेमहि ) प्राप्त करें और सेवें । उसी प्रकार राष्ट्र में—हे ( अश्विना ) सभासेनापतियो ! सुखवर्षक और शत्रु पर शरों के वर्षक रथ को जोड़कर ले जाओ, ( क्षत्रं ) अपने सैन्य बल को ( घृतेन मधुना ) तेज और अन्न या दीप्ति और शत्रु को धुन देने वाले बल से पुष्ट करो । हमारे ( ब्रह्म ) बड़े भारी बल को सेनाओं और संग्रामों में बढ़ाओ, जिससे ( शूरसाता ) संग्राम में हम ऐश्वर्यों को प्राप्त करें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
दीर्घतमाः ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते ॥ छन्दः– १ त्रिष्टुप् । ५ निचृत् त्रिष्टुप् । ६ विराट् त्रिष्टुप् । २, ४ जगती। ३ निचृज्जगती ॥ षडृचं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
माणसांनी राजनीतीची अंगे जाणून राज्याचे रक्षण करावे. धन इत्यादी वाढवावे व युद्ध जिंकून सर्वांसाठी सुखाची वृद्धी करावी. ॥ २ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Ashvins, harbingers of new light and life, chariot leaders of the world, you harness and ride your chariot of might and victory and sprinkle and inspire the Kshatra order of our defence and governance with exciting spirit of life and honey sweets of power and prosperity. In our struggle for the joy of life, inspire and strengthen our Brahma system of research and education with new knowledge and self-confidence. We pray, may we achieve the prize of success and victory in our battles of the brave.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
Call to the Heads of State and army to act as vanguard of the nation.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O Head of the State and President of the Assembly and Commander of the Army! when your armored vehicles and aircraft etc. stop the advance of enemy. You refresh our brave soldiers with good drinks and food. You satisfy the your army Brahmanas with your velour shown in the battlefields and consequently by victory scored over them. May we acquire wealth in the battle-fields as a result of our victory.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
The above said two prominent heads of the State should advance the happiness of all. They should guard it from enemies with all available resources and on political plane and thus should enhance wealth by getting victory in the battlefields.
Foot Notes
(अश्विनौ) सभासेनेशौ = =President of the Assembly and Commander of the Army. (घृतेन) उदकेन = With pure water. (ब्रह्म) ब्रह्मकुलम् = Brahmanas.
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