ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 160/ मन्त्र 3
ऋषिः - दीर्घतमा औचथ्यः
देवता - द्यावापृथिव्यौ
छन्दः - निचृज्जगती
स्वरः - निषादः
स वह्नि॑: पु॒त्रः पि॒त्रोः प॒वित्र॑वान्पु॒नाति॒ धीरो॒ भुव॑नानि मा॒यया॑। धे॒नुं च॒ पृश्निं॑ वृष॒भं सु॒रेत॑सं वि॒श्वाहा॑ शु॒क्रं पयो॑ अस्य दुक्षत ॥
स्वर सहित पद पाठसः । वह्निः॑ । पु॒त्रः । पि॒त्रोः । प॒वित्र॑ऽवान् । पु॒नाति॑ । धीरः॑ । भुव॑नानि । मा॒यया॑ । धे॒नुम् । च॒ । पृश्नि॑म् । वृ॒ष॒भम् । सु॒ऽरेत॑सम् । वि॒श्वाहा॑ । शु॒क्रम् । पयः॑ । अ॒स्य॒ । धु॒क्ष॒त॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
स वह्नि: पुत्रः पित्रोः पवित्रवान्पुनाति धीरो भुवनानि मायया। धेनुं च पृश्निं वृषभं सुरेतसं विश्वाहा शुक्रं पयो अस्य दुक्षत ॥
स्वर रहित पद पाठसः। वह्निः। पुत्रः। पित्रोः। पवित्रऽवान्। पुनाति। धीरः। भुवनानि। मायया। धेनुम्। च। पृश्निम्। वृषभम्। सुऽरेतसम्। विश्वाहा। शुक्रम्। पयः। अस्य। धुक्षत ॥ १.१६०.३
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 160; मन्त्र » 3
अष्टक » 2; अध्याय » 3; वर्ग » 3; मन्त्र » 3
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अष्टक » 2; अध्याय » 3; वर्ग » 3; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ।
अन्वयः
हे मनुष्या पवित्रवान् पित्रोः पुत्र इव वर्त्तमानः स वह्निर्भुवनानि पुनाति। यो धेनुं सुरेतसं वृषभं पृश्निं शुक्रम्पयश्च विश्वाहा पुनाति। यं धीरो मायया जानात्यस्य सकाशादभीष्टसिद्धिं यूयं दुक्षत ॥ ३ ॥
पदार्थः
(सः) (वह्निः) वोढा (पुत्रः) अपत्यमिव (पित्रोः) वाय्वाकाशयोः (पवित्रवान्) बहूनि पवित्राणि कर्माणि विद्यन्ते यस्य सः (पुनाति) पवित्रीकरोति (धीरः) ध्यानवान् (भुवनानि) लोकान् (मायया) प्रज्ञया (धेनुम्) गामिव वर्त्तमानां वाणीम् (च) (पृश्निम्) सूर्यम् (वृषभम्) सर्वलोकस्तम्भकम् (सुरेतसम्) सुष्ठुबलम् (विश्वाहा) सर्वाणि दिनानि (शुक्रम्) आशुकरम् (पयः) दुग्धम् (अस्य) वह्नेः (दुक्षत) प्रदुग्ध। अत्र वाच्छन्दसीति भषभावः ॥ ३ ॥
भावार्थः
यथा सूर्य्यः सर्वाँल्लोकान् धरति पवित्रयति तथा सुपुत्राः कुलं शुन्धन्ति ॥ ३ ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
हे मनुष्यो ! (पवित्रवान्) जिसके बहुत शुद्ध कर्म वर्त्तमान (पित्रोः) तथा जो वायु और आकाश के (पुत्रः) सन्तान के समान वर्त्तमान है (सः) वह (वह्निः) पदार्थों की प्राप्ति करानेवाला अग्नि (भुवनानि) लोकों को (पुनाति) पवित्र करता है। जो (धेनुम्) गौ के समान वर्त्तमान वाणी (सुरेतसम्) सुन्दर जिसका बल जो (वृषभम्) सब लोकों को रोकनेवाला (पृश्निम्) सूर्य है उस (शुक्रम्) शीघ्रता करनेवाले को और (पयः) दूध को (च) और (विश्वाहा) सब दिनों को पवित्र करता है, जिसको (धीरः) ध्यानवान् पुरुष (मायया) उत्तम बुद्धि से जानता है (अस्य) उस अग्नि की उत्तेजना से अभीष्ट सिद्धि को तुम (दुक्षत) पूरी करो ॥ ३ ॥
भावार्थ
जैसे सूर्य समस्त लोकों को धारण करता और पवित्र करता है, वैसे सुपुत्र कुल को पवित्र करते हैं ॥ ३ ॥
विषय
‘धेनु, पृश्नि, सुरेतस्, वृषभ'
पदार्थ
१. गतमन्त्र के अनुसार द्यावापृथिवी की उत्तमता से (वपुष्मान्) = बननेवाला (सः) वह (वह्निः) = अपने कर्त्तव्यभार का उत्तमता से वहन करनेवाला होता है। (पित्रोः पुत्रः) = यह माता-पिता का सच्चा पुत्र होता है। द्यावापृथिवी दोनों के गुणों को लिये हुए होता है। द्युलोक के प्रकाश और पृथिवी की दृढ़ता से यह सम्पन्न होता है। (पवित्रवान्) = यह पवित्र जीवनवाला होता है। 'ब्रह्म और क्षत्र' के मेल में अपवित्रता सम्भव नहीं। (धीरः) = यह धीर-ज्ञानी पुरुष (भुवनानि) = सब लोकों व व्यक्तियों का (मायया) = ज्ञान से पुनाति पवित्र करनेवाला होता है । २. (धेनुं च पृश्निम्) = ओषधिरसों से आप्यायित करनेवाली इस पृथिवी को [धेट् आप्यायने, पृश्नि = the earth] तथा (सुरेतसं वृषभम्) = उत्तम शक्तिवाले, वृष्टि आदि से पृथिवी का सेचन करनेवाले धुलोक को यह (विश्वाहा) = सदा (अस्य शुक्रम्) = इसके [शुच्] दीप्त व शुद्ध करनेवाले (पयः) = ज्ञानदुग्ध को (दुक्षत) = अपने में पूरित करता है। 'धेनु, पृश्नि' आप्यायित करनेवाली पृथिवीमाता के ओषधिरसों का तथा द्युलोकस्थ सूर्यादि की रश्मियों का अथवा वृष्टिजल का यह सेवन करता है।
भावार्थ
भावार्थ - द्यावापृथिवी का सच्चा पुत्र ओषधिरसों का तथा सूर्यरश्मियों व वृष्टिजलों का प्रयोग करता हुआ अपने जीवन को शुक्र- दीप्त बनाता है ।
विषय
उत्तम पुत्र के लक्षण और कर्त्तव्य ।
भावार्थ
उत्तम पुत्र के लक्षण । ( सः ) वह (पित्रोः पुत्रः ) माता पिता का पुत्र ( पवित्रवान् ) पवित्र आचार और पवित्र वेद ज्ञान से युक्त होकर ( धीरः ) धैर्यवान् ( वन्हिः ) अग्नि के समान तेजस्वी और गृहस्थ कार्य को वहन करने में समर्थ एवं वीर्यवान् विवाहित होकर ( मायया ) अपनी उत्तम बुद्धि से ( भुवनानि ) लोकों को सूर्य के समान समस्त उत्पन्न सन्तानों और अन्य लोकों को भी ( पुनाति ) पवित्र करता है। सूर्य जिस प्रकार ( पृश्निं ) पृथ्वी और (सुरेतसं वृषभं) उत्तम सजल मेघ को ( पयः दुक्षत ) जल से पूर्ण करता है इसी प्रकार वह पुत्र भी ( धेनुम् ) दूध पिलाने वाली माता, वा गौ को, ( पृश्निम् ) रसदात्री भूमि, रस पान कराने वाली माता ज्ञानप्रद आचार्य को ( सुरेतसं ) उत्तम वीर्यवान् ( वृषभम् ) बलवान् वीर्य निषेक्ता पुरुष पिता को ( विश्वाहा ) सदा ही पवित्र करता है । हे पुरुषो ! आप लोग ( अस्य ) इसके ( शुक्रं ) बल वीर्य को और पुष्टिकारक अन्न जल को ( दुक्षत ) पूर्ण करो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
दीर्घतमा ऋषिः ॥ द्यावापृथिव्यौ देवते ॥ छन्दः– १ विराड् जगती । २, ३, ४, ५ निचृज्जगती ॥ पञ्चर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
जसा सूर्य संपूर्ण लोकांना (गोलांना) धारण करतो व पवित्र करतो तसे सुपुत्र कुलाला पवित्र करतात. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
That universal vital fire, carrier of light and life and yajna, child of its causal parents, Lord Supreme and Nature and then akasha and vayu, i.e., space and energy, universal agent of holy action, constant and resolute, purifies and sanctifies with its wonderful powers, it energises, fertilises and purifies the cow, the earth and the holy Word, enlightens the sun and skies, gives vitality to the virile bull and pranic energy and sustaining power to the life-giving sun, and it emanates purity and vitality to the seed of life in existence day and night. Men and women all, serve it and draw the milk of life energy from the holy, universal and constant energy of fire through the creative act of yajna.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
Ashvinau (father and mother) are praised.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men the fire that is the cause of many fine acts (like the Yajna), which is like the sun of the air and the sky, purifies all worlds. It is a man of meditation that knows with his wisdom the nature of noble speech. The sweet words are like a milch cow, like a m ty sun that is the support of all worlds, like the milk that makes man strong soon and purifies them. It is by meditating upon that Almighty God, that you can get your noble desires fulfilled.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
As the sun upholds and purifies all worlds, so good sons purify the whole family.
Foot Notes
(मायया) प्रज्ञया - With wisdom. (पृश्निम् ) सूर्यम् - The sun. (पिन्नोः) वाय्वाकाशयो: = Of the air and the sky that are like the fathers of the fire.
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