ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 103/ मन्त्र 6
ऋषिः - अप्रतिरथ ऐन्द्रः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
गो॒त्र॒भिदं॑ गो॒विदं॒ वज्र॑बाहुं॒ जय॑न्त॒मज्म॑ प्रमृ॒णन्त॒मोज॑सा । इ॒मं स॑जाता॒ अनु॑ वीरयध्व॒मिन्द्रं॑ सखायो॒ अनु॒ सं र॑भध्वम् ॥
स्वर सहित पद पाठगो॒त्रऽभिद॑म् । गो॒ऽविद॑म् । वज्र॑ऽबाहुम् । जय॑न्तम् । अज्म॑ । प्र॒ऽमृ॒णन्त॑म् । ओज॑सा । इ॒मम् । स॒ऽजा॒ताः॒ । अनु॑ । वी॒र॒य॒ध्व॒म् । इन्द्र॑म् । स॒खा॒यः॒ । अनु॑ । सम् । र॒भ॒ध्व॒म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
गोत्रभिदं गोविदं वज्रबाहुं जयन्तमज्म प्रमृणन्तमोजसा । इमं सजाता अनु वीरयध्वमिन्द्रं सखायो अनु सं रभध्वम् ॥
स्वर रहित पद पाठगोत्रऽभिदम् । गोऽविदम् । वज्रऽबाहुम् । जयन्तम् । अज्म । प्रऽमृणन्तम् । ओजसा । इमम् । सऽजाताः । अनु । वीरयध्वम् । इन्द्रम् । सखायः । अनु । सम् । रभध्वम् ॥ १०.१०३.६
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 103; मन्त्र » 6
अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 22; मन्त्र » 6
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अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 22; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सजाताः) हे समान राष्ट्रिय समृद्धिकर्मों में प्रसिद्ध (सखायः) परस्पर मित्र बने सैनिको ! तुम (इमम्) इस (गोत्रभिदम्) शत्रुओं के गोत्रों-वंशों के नाशक (वज्रबाहुम्) शस्त्रपाणि-भुजाओं-हाथों में शस्त्र जिसके हैं, ऐसे शस्त्रधारी (अज्म जयन्तम्) संग्राम जीतते हुए संग्रामविजेता (ओजसा) बल से (प्रमृणन्तम्) प्रहारकर्ता (इन्द्रम्-अनु) राजा के अनुसार (वीरयध्वम्) वीरकर्म करो (अनु सं रभध्वम्) उसके अनुशासन को मानते हुए शिविर में तैयार रहो ॥६॥
भावार्थ
शत्रुओं का वंशोच्छेदकर्ता शस्त्रधारी संग्रामजेता प्रहारक राजा होना चाहिए तथा सैनिक जन राष्ट्रिय समृद्धि कार्यों में प्रसिद्ध परस्पर मित्र राजा के अनुसार वीरता दिखाने-वाले उसके अनुशासन को मानते हुए शिविर में तैयार रहने चाहिये ॥६॥
विषय
इन्द्र बनो
पदार्थ
प्रभु कहते हैं - हे (सजाता:) = समान जन्मवाले जीवो ! (इयम्) = इस इन्द्र के (अनुवीरयध्वम्) = अनुसार तुम भी वीरतापूर्ण कर्म करो। इस इन्द्र के जो १. (गोत्रभिदम्) = (गोत्र = wealth) धन का विदारण करनेवाला है, अर्थात् हिरण्मय पात्र द्वारा डाले जानेवाले आवरण को सुदूर नष्ट करनेवाला है । २. (गोविदम्) = ज्ञान को प्राप्त करनेवाला है। धन के लोभ को दूर करके ही ज्ञान प्राप्त होता है । ३. (वज्रबाहुम्) = जिसकी बाहु में वज्र है, 'वज गतौ' से वज्र बनता है, 'बाह्र प्रयत्ने' से बाहु । वज्रबाहु की भावना यही है कि गतिशील होने के कारण जो सदा प्रयत्नशील है । ४. (अज्म जयन्तम्) = युद्ध को जीतनेवाला है। निरन्तर क्रियाशीलता ने ही इसे वासना-संग्राम में विजयी बनाया है । ५. (ओजसा प्रमृणन्तम्) = जो [क्रियाशीलता से उत्पन्न] ओज के द्वारा काम-क्रोधादि शत्रुओं को कुचल रहा है। वस्तुतः इन पाँच विशेषताओंवाला व्यक्ति ही इन्द्र है और इस इन्द्र के समान जन्म लेनेवाले सभी को चाहिए कि वे भी इन्द्र के समान ही वीर बनें और संग्राम में शत्रुओं को कुचल डालें। प्रभु कहते हैं कि हे (सखायः) = इन्द्र के समान ख्यानवाले जीवो! (इन्द्रम् अनु) = इस इन्द्र के अनुसार (संरभध्वम्) = दृढाङ्ग Robust बनो, बहादुरी का परिचय दो। इन्द्र असुरों का संहार करता है तुम भी उसके (सजात) = समान जन्मवाले (सखा) = समान ख्यान - [नाम] - वाले होते हुए क्या ऐसा न करोगे? इन्द्र के कर्म सदा बलवाले हैं। क्या तुम निर्बलता प्रकट करोगे ? नहीं, तुम भी उसके अनुसार वीर बनो । जो इन्द्र ने किया है वह तुम भी कर सकते हो। तुम भी तो इन्द्र हो- तभी तो महेन्द्र [परमात्मा] के उपासक बने हो । प्रभु का उपासक कायर नहीं होता, अतः वीर बनो, बहादुरी का परिचय दो और वासनारूप शत्रुओं को कुचल डालो ।
भावार्थ
भावार्थ- हम इन्द्र हैं - हम असुरों का संहार करनेवाले हैं। धन के आकर्षण से हम ऊपर उठेंगे और ऊँचे-से-ऊँचे ज्ञान को प्राप्त करेंगे।
विषय
सेनापति के प्रति सहयोगियों के कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे (स जाताः) बल, कीर्ति, वंश आदि से समान रूप से विख्यात सहयोगी, सहोद्योगी वीर पुरुषो ! आप लोग (गोत्र-भिदम्) शत्रु-वंशों के नाशक, प्रतिपक्षी भूमि के रक्षक, शत्रुओं के गढ़ों और दलों के भेदक ! (गो-विदं) पृथ्वी के प्राप्त करने वाले, (वज्र-बाहुम्) बाहु-बलशाली वीर्यवान्, (अज्म जयन्तम्) संग्राम का विजय करने वाले और (ओजसा) बल पराक्रम से (प्रमृणन्तं) शत्रुओं को खूब नाश करने वाले (इमम् इन्द्रम्) इस इन्द्र, सेनापति को (अनु वीरयध्वम्) अनुसरण करके खूब साहसी, वीर बनाओ और स्वयं भी वीर के तुल्य शौर्य का कार्य करो। हे हो (सखायः) मित्र जनो ! आप लोग (अनु संरभध्वम्) उसके अनुकूल ही मिल कर उद्योग करो। इति द्वाविंशो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिरप्रतिरथ ऐन्द्रः॥ देवता—१—३,५–११ इन्द्रः। ४ बृहस्पतिः। १२ अप्वा। १३ इन्द्रो मरुतो वा। छन्दः–१, ३–५,९ त्रिष्टुप्। २ स्वराट् त्रिष्टुप्। ६ भुरिक् त्रिष्टुप्। ७, ११ निचृत् त्रिष्टुप्। ८, १०, १२ विराट् त्रिष्टुप्। १३ विराडनुष्टुप्। त्रयोदशर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सजाताः) हे समानराष्ट्रियसमृद्धिकर्मसु प्रसिद्धाः ! (सखायः) परस्परसखिभूताः सैनिकाः ! यूयम् (इमम्) एतं (गोत्रभिदम्) शत्रूणां गोत्राणां वंशान् यो भिनत्ति तम् “गोत्रभिदं यः शत्रूणां गोत्राणि भिनत्ति तम्” [यजु० १७।३८ दयानन्दः] (वज्रबाहुम्) शस्त्रपाणिं (अज्म जयन्तम्) सङ्ग्रामं जयन्तम् “अज्म सङ्ग्रामनाम” [निघ० २।१७] (गोविदम्) राष्ट्रभूमेर्लब्धारं प्राप्तराज्यं (ओजसा) बलेन (प्रमृणन्तम्) प्रहारकर्त्तारं (इन्द्रम्-अनु) राजानमनुसृत्य (वीरयध्वम्) वीरकर्म कुरुत (अनु सं रभध्वम्) तदनुशासनमाचरन्तः शिविरे सज्जीभूतास्तिष्ठत ॥६॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O friends, unite, prepare and mount the assault with Indra, our friend and comrade, breaker of enemy strongholds, winner of lands, hero of thunder arms and victorious breaker of dark mighty clouds by his valour. Follow the brave and advance.
मराठी (1)
भावार्थ
शत्रूंचा वंशोच्छेदकर्ता शस्त्रधारी, युद्धविजेता, प्रहारक राजा असला पाहिजे व सैनिक लोकांनी राष्ट्रीय समृद्धी कार्यात प्रसिद्ध राजाबरोबर परस्पर मित्र बनून वीरता दाखवून त्याच्या अनुशासनाला मानत शिबिरात तयार राहिले पाहिजे. ॥६॥
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