ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 103/ मन्त्र 9
इन्द्र॑स्य॒ वृष्णो॒ वरु॑णस्य॒ राज्ञ॑ आदि॒त्यानां॑ म॒रुतां॒ शर्ध॑ उ॒ग्रम् । म॒हाम॑नसां भुवनच्य॒वानां॒ घोषो॑ दे॒वानां॒ जय॑ता॒मुद॑स्थात् ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्र॑स्य । वृष्णः॑ । वरु॑णस्य । राज्ञः॑ । आ॒दि॒त्याना॑म् । म॒रुता॑म् । शर्धः॑ । उ॒ग्रम् । म॒हाऽम॑नसाम् । भु॒व॒न॒ऽच्य॒वाना॑म् । घोषः॑ । दे॒वाना॑म् । जय॑ताम् । उत् । अ॒स्था॒त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रस्य वृष्णो वरुणस्य राज्ञ आदित्यानां मरुतां शर्ध उग्रम् । महामनसां भुवनच्यवानां घोषो देवानां जयतामुदस्थात् ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्रस्य । वृष्णः । वरुणस्य । राज्ञः । आदित्यानाम् । मरुताम् । शर्धः । उग्रम् । महाऽमनसाम् । भुवनऽच्यवानाम् । घोषः । देवानाम् । जयताम् । उत् । अस्थात् ॥ १०.१०३.९
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 103; मन्त्र » 9
अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 23; मन्त्र » 3
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अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 23; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इन्द्रस्य) ऐश्वर्यवान् (वृष्णः) शस्त्रवर्षक (वरुणस्य) स्वसेना के वरनेवाले रक्षक (राज्ञः) शासक के तथा (आदित्यानाम्) अखण्डित ब्रह्मचर्यवालों (महामनसाम्) उत्साहवालों (भुवनच्यवानाम्) भूतमात्र प्राणिमात्र के च्युत करनेवालों (देवानाम्) विजय चाहनेवालों (जयताम्) जय करनेवालों (मरुताम्) सैनिकों का (उग्रं शर्धः) तीक्ष्ण बल (घोषः) तथा जयघोष (उत् अस्थात्) ऊपर हो-ऊपर ऊँचे आकाश में जावे ॥९॥
भावार्थ
जो शासक धनैश्वर्यसम्पन्न शस्त्रवर्षक सेनारक्षक होता है तथा जिसके सैनिक संयमी उत्साहवाले प्राणिमात्र को स्वाधीन करनेवाले विजय चाहनेवाले शत्रु पर विजय पाते हुए-पानेवाले होते हैं, उनका बल और उनका जयघोष संग्राम में बढ़ता है और ऊँचे जाता है ॥९॥
विषय
देवों के तीन महारथी
पदार्थ
(देवताओं का जयघोष उठे)- गत मन्त्र में प्राण-साधना तथा इन्द्रियों के वशीकरण के द्वारा देवसेनाओं की उत्पत्ति, उद्गति व प्रगति का उल्लेख हुआ था। वे असुरों पर विजय पाती हुई आगे बढ़ रही थीं। प्रस्तुत मन्त्र में विजय पानेवाली उन्हीं देवसेनाओं के जयघोष का वर्णन हैं- १. (वृष्णः इन्द्रस्य) = शक्तिशाली व औरों पर सुखों की वर्षा करनेवाले, जितेन्द्रिय – इन्द्रियों के अधिष्ठाता इन्द्र का तथा २. (राज्ञः वरुणस्य) = [well regulated] अति नियमित जीवनवाले वरुण का, जिसने सब बुराइयों का वारण किया है तथा ३. (आदित्यानां मरुताम्) = अपने अन्दर निरन्तर उत्तमता का ग्रहण करनेवाले [आदानात् आदित्यः] प्राण-साधक मरुतों का [ मरुतः प्राणाः ] (शर्धः) = बल (उग्रम्) = बड़ा उदात्त व तीव्र होता है । इन्द्र का विशेषण वृषन् है - जो भी जितेन्द्रिय बनेगा वह अवश्य शक्तिशाली व औरों पर सुखों की वर्षा करनेवाला होगा। वरुण श्रेष्ठ का विशेषण 'राज्ञः ' है - उत्तम प्रकार से नियमित जीवनवाला । वस्तुतः नियमित जीवन ही हमें उत्तम बनाता है मरुत्—प्राण-साधना करनेवाले आदित्य हैं - अपने अन्दर निरन्तर दिव्यता का आदान कर रहे हैं। आदित्य अदिति -पुत्र हैं- 'अदीना देवमाता' के पुत्र हैं। देवमाता इन दिव्य गुणरूप आदित्यों को जन्म देती है । इन्द्र, वरुण व मरुतों का, जो देवताओं के तीन महारथी हैं, बल [शर्धः] बड़ा उदात्त [उग्रम्] होता है, इन महारथियों का अनुगमन करनेवाले (महामनसाम्) = विशाल मनवाले (भुवनच्यवानाम्) = भुवनों का भी त्याग कर देनेवाले, अर्थात् लोकहित के लिए अधिक-से-अधिक त्याग करने के लिए उद्यत (देवानाम्) = देवताओं का (जयताम्) = जो सदा जय प्राप्त करनेवाले हैं, उनका (घोषः) = विजयघोष (उदस्थात्) = मेरे जीवन में सदा उठे, अर्थात् मेरे जीवन में सदा देवों का विजय हो और असुरों का पराजय । यहाँ प्रसङ्गवश देवों की दो विशेषताओं का उल्लेख हुआ है एक तो वे 'विशाल मनवाले' होते हैं और दूसरा वे 'अधिक-से-अधिक त्याग के लिए उद्यत' होते हैं। विशाल हृदयता व त्याग के बिना कोई देव नहीं बन पाता ।
भावार्थ
भावार्थ- मैं इन्द्र बनूँ, वरुण बनूँ, मरुत् होऊँ । हृदय को विशाल बनाऊँ, सदा त्याग के लिए उद्यत रहूँ।
विषय
वीरों का बल, पराक्रम और नाद कैसा हो ?
भावार्थ
(वृष्णः) बलवान् (इन्द्रस्य) शत्रुहन्ता, सेनापति का, और (वरुणस्य) प्रजा द्वारा स्वयं वरण किये गये सर्वश्रेष्ठ राजा का, और (आदित्यानां मरुताम्) आदित्यवत् तेजस्वी, पुरुषों, वा परस्पर लेनदेन करने वाले सम्पन्न व्यवसायियों, और (मरुताम्) वायुवत् वृक्षों के तुल्य शत्रुओं को समूल उखाड़ देने वाले, वीर योद्धाओं का (उग्रं शर्धः) भयंकर, तीव्र बल, और (महामनसां) बड़े मनस्वी, विज्ञानवान् (भुवन च्यवानाम्) भूलोक वा समस्त भुवनों को कंपा देने वाले (जयताम्) विजयी (देवानां) वीरों, राजाओं का (घोषः) नाद (उत् अस्थात्) ऊपर उठे और फैले।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिरप्रतिरथ ऐन्द्रः॥ देवता—१—३,५–११ इन्द्रः। ४ बृहस्पतिः। १२ अप्वा। १३ इन्द्रो मरुतो वा। छन्दः–१, ३–५,९ त्रिष्टुप्। २ स्वराट् त्रिष्टुप्। ६ भुरिक् त्रिष्टुप्। ७, ११ निचृत् त्रिष्टुप्। ८, १०, १२ विराट् त्रिष्टुप्। १३ विराडनुष्टुप्। त्रयोदशर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्द्रस्य) ऐश्वर्यवतः (वृष्णः) शस्त्रवर्षकस्य (वरुणस्य) स्वसेनायाः वरयितू रक्षकस्य (राज्ञः) शासकस्य (आदित्यानाम्) अखण्डित-ब्रह्मचर्यवताम् (महामनसाम्) उत्साहवतां (भुवनच्यवानाम्) भूतमात्रस्य-प्राणिमात्रस्य च्यावयितॄणां (देवानाम्) विजिगीषूणां (जयताम्) जयं कुर्वतां (मरुताम्) सैनिकानां (उग्रं शर्धः) तीक्ष्णं बलं (घोषः) जयघोषश्च (उत् अस्थात्) ऊर्ध्वं तिष्ठतु उपरि गच्छतु ॥९॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Great is the valour and passion of victorious and virile Indra, of the ruler Varuna, visionary Adityas and impetuous Maruts, all great and magnanimous at heart who shake the world with their vision and performance, and so let these victorious divinities’ tumulluous uproar of victory rise and reverberate in the skies.
मराठी (1)
भावार्थ
जो शासक धन ऐश्वर्यसंपन्न, शस्त्रवर्षक सेनारक्षक असतो व त्यांचे बल व त्यांचा आवाज युद्धात आकाशापर्यंत घुमतो. ॥९॥
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