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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 116 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 116/ मन्त्र 5
    ऋषिः - अग्नियुतः स्थौरोऽग्नियूपो वा स्थौरः देवता - इन्द्र: छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    नि ति॒ग्मानि॑ भ्रा॒शय॒न्भ्राश्या॒न्यव॑ स्थि॒रा त॑नुहि यातु॒जूना॑म् । उ॒ग्राय॑ ते॒ सहो॒ बलं॑ ददामि प्र॒तीत्या॒ शत्रू॑न्विग॒देषु॑ वृश्च ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नि । ति॒ग्मानि॑ । भ्रा॒शय॑न् । भ्राश्या॑नि । अव॑ । स्थि॒रा । त॒नु॒हि॒ । या॒तु॒ऽजूना॑म् । उ॒ग्राय॑ । ते॒ । सहः॑ । बल॑म् । द॒दा॒मि॒ । प्र॒ति॒ऽइत्य॑ । शत्रू॑न् । वि॒ऽग॒देषु॑ । वृ॒श्च॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नि तिग्मानि भ्राशयन्भ्राश्यान्यव स्थिरा तनुहि यातुजूनाम् । उग्राय ते सहो बलं ददामि प्रतीत्या शत्रून्विगदेषु वृश्च ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नि । तिग्मानि । भ्राशयन् । भ्राश्यानि । अव । स्थिरा । तनुहि । यातुऽजूनाम् । उग्राय । ते । सहः । बलम् । ददामि । प्रतिऽइत्य । शत्रून् । विऽगदेषु । वृश्च ॥ १०.११६.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 116; मन्त्र » 5
    अष्टक » 8; अध्याय » 6; वर्ग » 20; मन्त्र » 5
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (भ्राश्यानि) ज्वलनीय (स्थिरा) स्थिर दृढ़ (तिग्मानि) वज्रास्त्र (नि भ्राशयन्) निरन्तर ज्वलित करता हुआ (यातुजूनाम्) यातनाओं-पीड़ाओं को प्रेरित करनेवाले दुष्ट जनों को (अव तनुहि) नीचे गिरा (ते-उग्राय) तुझ प्रतापी राजा के लिये (सहः बलम्) शत्रु के सहन करने योग्य बल को (ददामि) मैं पुरोहित या शिक्षक देता हूँ (विगदेषु) आह्वानप्रसङ्गों में-संग्रामों में (शत्रून्) शत्रुओं को प्रतीत्य सामने जाकर (वृश्च) छिन्न-भिन्न कर ॥५॥

    भावार्थ

    राजा सङ्ग्राम में जलते हुए दृढ़ वज्रास्त्रों को निरन्तर चलावे, पीड़ा देनेवाले शत्रुओं को नीचे गिरावे। सङ्ग्रामों में शत्रु के सामने डटकर उन्हें छिन्न-भिन्न कर डाले ॥५॥

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    विषय

    आयुध - दीपन व शत्रु-व्रश्चन

    पदार्थ

    [१] गत मन्त्र के अनुसार सोमरक्षण के द्वारा (तिग्मानि) = खूब तेजस्वितावाले भ्राश्यानि दीप्त आयुधों को 'इन्द्रिय, मन व बुद्धिरूप' साधनों को (निभ्राशयन्) = खूब चमकाता हुआ, दीप्त करता हुआ तू (यातुजूनाम्) = पीड़ा देनेवाले काम-क्रोध-लोभ रूप शत्रुओं के (स्थिरा) = बड़े दृढ़ दुर्गों को (अवतनुहि) = क्षीण कर दे [to loosen, undo ] । काम इन्द्रियों में कितना ही दृढ़ दुर्ग बनाया हुआ है। क्रोध ने मन में और लोभ ने बुद्धि में अपना किला बनाया है। सोमपान करनेवाला उपासक अपने आयुधों को तीव्र व दीप्त करके इन किलों को तोड़ डालता है। [२] इस सोमपान करनेवाले उपासक से प्रभु कहते हैं कि (उग्राय ते) = तुझ उदात्तवृत्तिवाले के लिए (सहः बलम्) = शत्रुओं के कुचल देनेवाले बल को (ददामि) = देता हूँ। तू (विगदेषु) = विशिष्ट आह्वान प्रत्याह्वान के शब्दोंवाले युद्धों प्रतीत्या शत्रुओं के प्रति जाकर वृश्च शत्रुओं का छेदन करनेवाला बन । में शत्रून् = व दीप्त बनाएँ, अध्यात्म संग्रामों में शत्रुओं का

    भावार्थ

    भावार्थ - हम इन्द्रियों, मन व बुद्धि को तीव्र व्रश्चन करनेवाले बनें।

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    विषय

    राजा अपना बल स्थिर रूप से फैलावे।

    भावार्थ

    हे राजन् ! स्वामिन् ! तू सूर्य के समान (तिग्मानि) तीक्ष्ण (भ्राश्यानि) दीप्तियों के तुल्य चमकने वाले शस्त्रों को (नि भ्राशयन्) खूब चमकाता हुआ, (यातू-जूनां) पीड़ा देने वाले शत्रुओं के (स्थिरा) दृढ दुर्गों, धनों, बलों को (अव तनुहि) नीचे गिरा। (ते उग्राय) शत्रुओं के लिये उग्र रूप तुझ को मैं (सहः बलम्) पर जयकारी, सर्वविजयी बल (ददामि) प्रदान करता हूं। तू (वि-गदेषु) संग्रामों में (शत्रून् प्रति-इत्य) शत्रुओं पर आक्रमण करके उनको (वृश्च) काट डाल। इति विंशो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिरग्नियुतः स्थौरोऽग्नियूपो वा स्थौरः। इन्द्रो देवता। छन्दः— १, ८, ९ त्रिष्टुप्। २ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ३, ४ निचृत् त्रिष्टुप्। ५, ७ विराट् त्रिष्टुप्। ६ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्। नवर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (भ्राश्यानि स्थिरा तिग्मानि नि भ्राशयन्) ज्वलनीयानि स्थिराणि वज्रास्त्राणि “तिग्मं वज्रनाम” [निघ० २।२०] निरन्तरं ज्वलयन् “भ्राशते ज्वलतिकर्मा” [निघ० १।१६] (यातुजूनाम्) यातुजून् “द्वितीयास्थाने षष्ठी व्यत्ययेन” यातनानां प्रेरयितॄन् दुष्टान् जनान् रोगान् वा (अव तनुहि) अवतानय पातय (ते-उग्राय) तुभ्यं प्रतापिने (सहः-बलं ददामि) शत्रुसहनयोग्यं बलमहं पुरोहितः शिक्षको वा प्रयच्छामि (विगदेषु) आह्वानप्रसङ्गेषु (शत्रून् प्रतीत्य वृश्च) प्रतिगत्य शत्रून् छेदय ॥५॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra, lord of solar power, sharpening your catalysis and shining your blazing radiations, reduce and destroy the strong persistent life destroying forces from nature and society. I offer you power and persistent forces of resistance to cooperate with your blazing fight against the anti-life elements. Face the enemies and uproot them in our battle for health and the good life.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    राजाने ज्वालांनी युक्त दृढ शस्त्रास्त्रे (वज्रास्त्रे) निरंतर चालवावी, त्रास देणाऱ्या शत्रूंना खाली लोळवावे. युद्धात शत्रूसमोर दृढ राहून त्यांना छिन्न-भिन्न करावे. ॥५॥

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