ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 131/ मन्त्र 5
ऋषिः - सुकीर्तिः काक्षीवतः
देवता - अश्विनौ
छन्दः - पादनिचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
पु॒त्रमि॑व पि॒तरा॑व॒श्विनो॒भेन्द्रा॒वथु॒: काव्यै॑र्दं॒सना॑भिः । यत्सु॒रामं॒ व्यपि॑ब॒: शची॑भि॒: सर॑स्वती त्वा मघवन्नभिष्णक् ॥
स्वर सहित पद पाठपु॒त्रम्ऽइ॑व । पि॒तरौ॑ । अ॒श्विना॑ । उ॒भा । इन्द्र॑ । आ॒वथुः॑ । काव्यैः॑ । दं॒सना॑भिः । यत् । सु॒राम॑म् । वि । अपि॑बः । शची॑भिः । सर॑स्वती । त्वा॒ । म॒घ॒ऽव॒न् । अ॒भि॒ष्ण॒क् ॥
स्वर रहित मन्त्र
पुत्रमिव पितरावश्विनोभेन्द्रावथु: काव्यैर्दंसनाभिः । यत्सुरामं व्यपिब: शचीभि: सरस्वती त्वा मघवन्नभिष्णक् ॥
स्वर रहित पद पाठपुत्रम्ऽइव । पितरौ । अश्विना । उभा । इन्द्र । आवथुः । काव्यैः । दंसनाभिः । यत् । सुरामम् । वि । अपिबः । शचीभिः । सरस्वती । त्वा । मघऽवन् । अभिष्णक् ॥ १०.१३१.५
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 131; मन्त्र » 5
अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 19; मन्त्र » 5
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अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 19; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(पितरौ) मातापिता (पुत्रम्-इव) पुत्र को जैसे तृप्त करते हैं, वैसे (काव्यैः) मधुर वचनों के द्वारा (दंसनाभिः) श्रेष्ठ कर्मों के द्वारा (इन्द्र) हे इन्द्र ! परमात्मन् ! राजन् ! (उभा-अश्विना) दोनों सुशिक्षित स्त्री-पुरुष (अवथुः) प्रसन्न करते हैं (शचीभिः) रक्षाकर्मों से (यत्) जो (सुरामम्) सोमरस है, उसे तू (वि अपिबः) निश्चितरूप से पान कर (मघवन्) हे ऐश्वर्यवन् राजन् ! (सरस्वती) स्तुतिवाणी या विद्यासभा (त्वा) तुझे (अभिष्णक्) सेवन करे-तेरा हित साधे ॥५॥
भावार्थ
सुशिक्षित स्त्री-पुरुष अपने गृहस्थजीवन में उत्तम स्तुतिवचनों और कर्मों द्वारा परमात्मा को प्रसन्न करें एवं राजा को भी सुशिक्षित स्त्री-पुरुष प्रजाजन अच्छे मधुर वचनों और कर्मों द्वारा प्रसन्न रखें ॥५॥
विषय
काव्य-दंसना [या सरस्वती का आराधन]
पदार्थ
[१] (इव) = जैसे (पितरौ) = माता-पिता (पुत्रम्) = पुत्र को रक्षित करते हैं, उसी प्रकार हे (इन्द्र) = जितेन्द्रिय पुरुष ! (उभा अश्विना) = ये दोनों प्राणापान (काव्यैः) = उत्तम ज्ञानों द्वारा तथा (दंसनाभिः) = उत्तम कर्मों के द्वारा (अवथुः) = तेरा रक्षण करते हैं । प्राणापान तो हमारे लिए माता-पिता के समान हैं। इनके रक्षण से हमारा ज्ञान बढ़ता है और हमारी प्रवृत्ति उत्तम कर्मों में होती है । [२] यह सब कब होता है ? (यत्) = जब कि हे इन्द्र ! तू (सुरामम्) = इस उत्तम रमण के साधनभूत सोम को (व्यपिब:) = विशेषरूप से पीनेवाला होता है प्राणसाधना के द्वारा ही तो इस सोम का पान होता है। ऐसा होने पर (सरस्वती) = ज्ञान की (अधिष्ठातृ) = देवता सरस्वती (शचीभिः) = प्रज्ञानों के द्वारा [नि० ३ । ९] तथा उत्तम कर्मों के द्वारा [नि० २।१] (त्वा) = तुझे (अभिष्णक्) = (भिष्णज् सेवायाम्) सेवित करती है । सोम के पान से ज्ञान बढ़ती है और उत्तम कर्मों में प्रवृत्ति होती है ।
भावार्थ
भावार्थ - प्राणसाधना से सोमरक्षण होता है । सोमरक्षण से ज्ञानवृद्धि व उत्तम कर्मों में अभिरुचि होती है।
विषय
मां बाप के बीच पुत्रवत् राजा की दशा। वह सेना शक्तियों और प्रजाओं के बीच बढ़े।
भावार्थ
(पुत्रम् इव पितरा) पुत्र को जिस प्रकार माता और पिता दोनों पालन, रक्षा और स्नेह करते हैं उसी प्रकार (अश्विना) उत्तम अश्वों से युक्त सेना, और उत्तम अश्ववत् नायकों से युक्त प्रजागण दोनों (काव्यैः) विद्वानों से प्रदर्शित, (दंसनाभिः) नाना कर्मों से हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् राजन् ! (त्वाम् आवथुः) तुझे प्राप्त हों, तेरी रक्षा करें, तुझे स्नेह करें। (यत्) जो तू (शचीभिः) अपनी शक्तियों से (सुरामं वि अपिबः) उत्तम रमण करने योग्य राज्यैश्वर्य को विविध प्रकारों से पालन और उपभोग करता है उस (त्वाम्) तुझको हे (मघवन्) ऐश्वर्यशालिन् ! (सरस्वती अभिष्णक्) स्त्रीवत् प्रजाजन भी सेवा करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः सुकीर्तिः काक्षीवतः॥ देवता–१– ३, ६, ७ इन्द्रः। ४, ५ अश्विनौ। छन्दः– १ त्रिष्टुप्। २ निचृत् त्रिष्टुप्। ३ विराट् त्रिष्टुप्। ५, ६, ७ पाद-निचृत् त्रिष्टुप्। ४ निचृदनुष्टुप्॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(पितरौ पुत्रम्-इव) मातापितरौ यथा पुत्रं प्रीणीतः (काव्यैः-दंसनाभिः) विविधमधुरवचनैः कर्मभिश्च “दंसः कर्मनाम” [निघ० २।३] तद्वत् (इन्द्र) हे इन्द्र परमात्मन् ! (उभा-अश्विना-अवथुः) त्वां सुशिक्षितौ स्त्रीपुरुषौ-अवतः ‘पुरुषव्यत्ययेन प्रथमस्थाने मध्यमः’ प्रीणीतः (शचीभिः-यत् सुरामं वि अपिबः) रक्षाकर्मभिः “शची कर्मनाम” [निघ० २।१] यत् सुरमणीयमुपहाररूपं सोमरसं त्वं पिबसि (मघवन् सरस्वती त्वा-अभिष्णक्) राजन् ! स्तुतिवाक्-विद्यासभां वां त्वामुपसेवते, “भिष्णक्-उपसेवायाम्” [कण्ड्वादि०] ॥५॥
इंग्लिश (1)
Meaning
As parents support the child with all their power and potential, so O lord of power and glory, Indra, let the Ashvins, complementary powers of nature and society, men and women, scholars and scientists, leaders and followers, all support you with words of adoration and actions of profuse generosity when you defend the nation with bold actions and enjoy the peace, prosperity and power of the order, and may Sarasvati, divine intelligence, support and guide you.
मराठी (1)
भावार्थ
सुशिक्षित स्त्री-पुरुषांनी आपल्या गृहस्थजीवनात उत्तम स्तुती वचन व कर्मांद्वारे परमात्म्याला प्रसन्न करावे व राजालाही सुशिक्षित स्त्री, पुरुष, प्रजा यांनी चांगल्या मधुर वचन व कर्मांद्वारे प्रसन्न ठेवावे. ॥५॥
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