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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 131 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 131/ मन्त्र 6
    ऋषिः - सुकीर्तिः काक्षीवतः देवता - इन्द्र: छन्दः - पादनिचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    इन्द्र॑: सु॒त्रामा॒ स्ववाँ॒ अवो॑भिः सुमृळी॒को भ॑वतु वि॒श्ववे॑दाः । बाध॑तां॒ द्वेषो॒ अभ॑यं कृणोतु सु॒वीर्य॑स्य॒ पत॑यः स्याम ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रः॑ । सु॒ऽत्रामा॑ । स्वऽवा॑न् । अवः॑ऽभिः । सु॒ऽमृ॒ळी॒कः । भ॒व॒तु॒ । वि॒श्वऽवे॑दाः । बाध॑ताम् । द्वेषः॑ । अभ॑यम् । कृ॒णो॒तु॒ । सु॒ऽवीर्य॑स्य । पत॑यः । स्या॒म॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्र: सुत्रामा स्ववाँ अवोभिः सुमृळीको भवतु विश्ववेदाः । बाधतां द्वेषो अभयं कृणोतु सुवीर्यस्य पतयः स्याम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रः । सुऽत्रामा । स्वऽवान् । अवःऽभिः । सुऽमृळीकः । भवतु । विश्वऽवेदाः । बाधताम् । द्वेषः । अभयम् । कृणोतु । सुऽवीर्यस्य । पतयः । स्याम ॥ १०.१३१.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 131; मन्त्र » 6
    अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 19; मन्त्र » 6
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सुत्रामा) सुष्ठु रक्षक (स्ववान्) सामर्थ्यवान् (विश्ववेदाः) सब धनवाला (इन्द्रः) राजा या परमात्मा (अवोभिः) विविध रक्षणकर्मों से (सुमृडीकः) सुखद (भवतु) हो (द्वेषः) द्वेष करनेवाले शत्रुओं को (बाधताम्) नाश करे (अभयं कृणोतु) अभय करे (सुवीर्यस्य) सुपराक्रम ब्रह्मचर्ययुक्त शरीर के (पतयः स्याम) हम स्वामी होवें ॥६॥

    भावार्थ

    परमात्मा या राजा अच्छी रक्षा करनेवाला वा सामर्थ्यवान् होता है, विविध रक्षणों से उत्तम सुखप्रद शत्रुओं का नाशक अभय देनेवाला होता है या हो। सुपराक्रम और ब्रह्मचर्ययुक्त शरीर सदा बनाये रखना चाहिये ॥६॥

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    विषय

    निर्देषता - निर्भयता - सुवीरता

    पदार्थ

    [१] (इन्द्रः) = सब शत्रुओं को विद्रावण करनेवाला प्रभु (द्वेषः बाधताम्) = द्वेष की भावना को हमारे से दूर करे। गत मन्त्र के अनुसार सोम का रक्षण करनेवाला व्यक्ति द्वेष की भावना से ऊपर उठ जाता है। [२] (सुत्रामा) = वह उत्तम रक्षण करनेवाला (स्ववान्) = सब धनोंवाला व आत्मिक शक्तिवाला प्रभु (अवोभिः) = अपने रक्षणों के द्वारा हमारे लिए (अभयं कृणोतु) = निर्भयता को करे । हम अपने को प्रभु की गोद में समझें । वे ही सब ओर से हमारा रक्षण कर रहे हैं। आत्मिक शक्ति को देकर वे ही हमें निर्भय बनाते हैं । [३] वे (विश्ववेदाः) = सम्पूर्ण धनोंवाले प्रभु (सुमृडीकः भवतु) = आवश्यक धनों को प्राप्त कराके हमारे लिए उत्तम सुखों के देनेवाले हों। व्यर्थ के भोगों में न फँसकर हम (सुवीर्यस्य) = उत्तम शक्ति के (पतयः) = अपने में रक्षण करनेवाले, शक्ति के स्वामी (स्याम) = हों ।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रभु कृपा से हम निर्देष, निर्भय व सुवीर बनें।

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    विषय

    राजा अपनी पालक शक्तियों से प्रजा में अभय स्थापन करे और प्रजाएं उसके अधीन द्वेषरहित होकर रहें।

    भावार्थ

    व्याख्या देखो। (अष्ट० ४। अ० ७। वर्ग ३५ तदनुसार मण्डल ६ सू० ४७ । मं० १२, १३) इत्येकोनविंशो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः सुकीर्तिः काक्षीवतः॥ देवता–१– ३, ६, ७ इन्द्रः। ४, ५ अश्विनौ। छन्दः– १ त्रिष्टुप्। २ निचृत् त्रिष्टुप्। ३ विराट् त्रिष्टुप्। ५, ६, ७ पाद-निचृत् त्रिष्टुप्। ४ निचृदनुष्टुप्॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सुत्रामा स्ववान्) सुष्ठुरक्षकः सामर्थ्यवान् “स्ववान् सामर्थ्यवान्” [ऋ० ६।४७।१२ दयानन्दः] (विश्ववेदाः) सर्वधनः (इन्द्रः) परमात्मा राजा वा (अवोभिः सुमृळीकः-भवतु) रक्षणैः सुष्ठु सुखदो भवतु (द्वेषः-बाधताम्) द्वेष्टॄन् शत्रून् नाशयतु (अभयं कृणोतु) अभयं करोतु (सुवीर्यस्य पतयः स्याम) वयं सुपराक्रमब्रह्मचर्यवतः शरीरस्य स्वामिनो भवेम ॥६॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    May Indra, self-potent, saviour protector and promoter, master of all wealth, power and glory of the world, be gracious to us by his support and protection for peace and security. May he ward off and drive away hate and enmity, grant freedom from fear, so that we too may be masters and protectors of noble strength and heroic splendour.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा किंवा राजा रक्षण करणारा किंवा सामर्थ्यवान असतो. विविध रक्षणांनी उत्तम, सुखप्रद, शत्रूंचा नाशक व अभय देणारा असावा. पराक्रम व ब्रह्मचर्ययुक्त शरीर सदैव असावे. ॥६॥

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