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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 141 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 141/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अग्निस्तापसः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    सोमं॒ राजा॑न॒मव॑से॒ऽग्निं गी॒र्भिर्ह॑वामहे । आ॒दि॒त्यान्विष्णुं॒ सूर्यं॑ ब्र॒ह्माणं॑ च॒ बृह॒स्पति॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सोम॑म् । राजा॑नम् । अव॑से । अ॒ग्निम् । गीः॒ऽभिः । ह॒वा॒म॒हे॒ । आ॒दि॒त्यान् । विष्णु॑म् । सूर्य॑म् । ब्र॒ह्माण॑म् । च॒ । बृह॒स्पति॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोमं राजानमवसेऽग्निं गीर्भिर्हवामहे । आदित्यान्विष्णुं सूर्यं ब्रह्माणं च बृहस्पतिम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सोमम् । राजानम् । अवसे । अग्निम् । गीःऽभिः । हवामहे । आदित्यान् । विष्णुम् । सूर्यम् । ब्रह्माणम् । च । बृहस्पतिम् ॥ १०.१४१.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 141; मन्त्र » 3
    अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 29; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सोमं राजानम्) सोम्य गुणवाले राजा को (अग्निम्) अग्रणायक को (अवसे) रक्षा के लिए (गीर्भिः-हवामहे) प्रशस्त वाणियों से आमन्त्रित करते हैं तथा (आदित्यान्) अखण्ड ब्रह्मचर्यवाले ब्रह्मचारी बलवालों को (विष्णुम्) सकल गुणव्यापी महात्मा को (सूर्यम्) विद्यासूर्य विद्वान् आचार्य को (ब्रह्माणम्) ब्रह्मज्ञानी को (बृहस्पतिम्) वाणी के रक्षक वक्ता को रक्षा के लिए आमन्त्रित करते हैं ॥३॥

    भावार्थ

    राष्ट्र के प्रजाजनों को अपनी रक्षा के लिए सोम्यगुणवाले राजा को, अग्रणेता मुख्य जन को, सकल गुणव्यापक महात्मा को, विद्यासूर्य आचार्य को, अखण्डित ब्रह्मचर्यवाले ब्रह्मचारी को ब्रह्मज्ञानी को, ज्ञानवक्ता को रक्षा के लिए आमन्त्रित करके रक्षा के उपायों पर विचार करना चाहिये ॥३॥

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    विषय

    सोम से बृहस्पति तक

    पदार्थ

    [१] हम (अवसे) = रक्षण के लिये (गीर्भिः) = इन स्तुति वाणियों के द्वारा (सोमम्) = सोम को (हवामहे) = पुकारते हैं । (रजानम्) = राजा को पुकारते हैं। इसी प्रकार (अग्निम्) = अग्नि को पुकारते हैं । हम चाहते हैं कि हम प्रभु कृपा से 'सोम-राजा व अग्नि' बनें। 'सोम' बनने का भाव यह है कि हम शरीर में उत्पन्न सोम शक्ति [= वीर्यशक्ति] का रक्षण करते हुए सौम्य बनें । 'राजा' बनने का भाव यह है कि हम भी राजा बनें, आत्मशासक बनें। अपने जीवन को बड़ा व्यवस्थित [ regulated] बनायें। 'अग्नि' बनने का भाव यह है कि हम गतिशील हों, सदा अग्रगतिवाले हों। सोम का रक्षण करते हुए, व्यवस्थित जीवनवाले बनकर प्रगतिशील हों। [२] (आदित्यान्) = हम आदित्यों को पुकारते हैं। (विष्णुम्) = विष्णु को पुकारते हैं । (सूर्यम्) = सूर्य को पुकारते हैं । (च) = और (ब्रह्माणम्) = ब्रह्मा को तथा (बृहस्पतिम्) = बृहस्पति को पुकारते हैं । 'आदित्यों' को पुकारने का भाव है 'आदित्यवृत्तिवाला बनना' । सदा आदान करनेवाला बनना 'आदानात् आदित्यः '। समाज में जिसके भी सम्पर्क में आना, उसके गुणों को ग्रहण करनेवाला बनना । 'विष्णु' को पुकारने का भाव है 'विष् व्याप्तौ ' व्यापक वृत्तिवाला बनना । उदार होना, संकुचित नहीं । सूर्य बनने का भाव है 'सरति इति' निरन्तर गतिशील होते हुए सर्वत्र सूर्य की तरह प्रकाश को फैलाना। 'ब्रह्मा' बनने का भाव है 'निर्माण करना'। सदा निर्माण के कार्यों में प्रवृत्त रहना । अन्त में बृहस्पति बनने का भाव है, 'उर्ध्वादिक् का अधिपति होना' । सर्वोत्कृष्ट दिशा का अधिपति बनना, ऊँची से ऊँची स्थित में पहुँचना ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम प्रभु से यह प्रार्थना करें कि प्रभु हमें सोमशक्ति का रक्षण करनेवाला व्यवस्थित जीवनवाला, प्रगतिशील, गुणों का आदान करनेवाला, उदार, क्रियाशील, निर्माण करनेवाला और खूब उन्नत बनायें ।

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    विषय

    सोम राजा, विद्वान् शासक प्रभु, विद्वानों, और वेदज्ञों की और धनसम्पन्नों की उचित प्रार्थना।

    भावार्थ

    हम (गीर्भिः) वाणियों द्वारा (अवसे) ज्ञान, वृद्धि, रक्षा, स्नेह, आत्मसुख के लिये, (सोमं राजानं) राजावत् सर्व जगत् के शासक परमेश्वर, (अग्निं) ज्ञान-प्रकाशक विद्वान् अग्रनेता को, (आदित्यान्) सूर्य की किरणोंवत् आदान प्रदान करने वाले तेजस्वी पुरुषों को, (विष्णुः) व्यापक प्रभु को (सूर्यं) सबको चलाने वाले, (ब्रह्माणं) वेदों के ज्ञाता को (बृहस्पतिम्) और बड़े धन, बल, ज्ञान के स्वामी इन २ को (हवामहे) हम प्रार्थना करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिग्निस्तापसः। विश्वेदेवा देवताः॥ छन्द:- १, २ निचृद्नुष्टुप्। ३, ६ विराडनुष्टुप्। ४, ५ अनुष्टुप्॥ षडृचं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सोमं राजानम्) सोम्यगुणवन्तं राजानम् (अग्निम्) अग्रणायकं (अवसे) रक्षायै (गीर्भिः-हवामहे) प्रशस्तवाग्भिरामन्त्रयामहे (आदित्यान्) अखण्डब्रह्मचर्यवतो ब्रह्मचारिणो बलवतः (विष्णुम्) सकलगुणव्यापिनम् “विष्णुः सर्वगुणेषु व्यापनशीलः” [ऋ० १।९०।९ दयानन्दः] (सूर्यम्) प्रेरकं विद्यासूर्यमाचार्यम् “सूर्येण प्रेरकेण” [यजु० ३७।१५ दयानन्दः] (ब्रह्माणम्) ब्रह्मज्ञानिनं (बृहस्पतिम्) वाग्रक्षकं वक्तारम्-आमन्त्रयामहे ॥३॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    We invoke brilliant Soma, exhilarating spirit of peace for protection and progress, Agni, spirit of light and warmth of life, with holy words and songs of devotion. We invoke and adore the Adityas, brilliant powers of enlightenment, Vishnu, lord omniscient and omnipresent awareness, Surya, self-refulgent divine source of light, Brahma, the sage of divinity, and Brhaspati, the scholar visionary of divinity.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    राष्ट्राच्या प्रजेला आपल्या रक्षणासाठी सौम्य गुणयुक्त राजाला, अग्रनेता मुख्य लोकांना, संपूर्ण गुणव्यापक महात्म्याला, विद्यासूर्य आचार्याला, अखंडित ब्रह्मचाऱ्याला, ब्रह्मज्ञानीला, ज्ञान वक्त्याला रक्षणासाठी आमंत्रित करून रक्षणाच्या उपायासाठी विचार केला पाहिजे. ॥३॥

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