Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 141 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 141/ मन्त्र 5
    ऋषिः - अग्निस्तापसः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    अ॒र्य॒मणं॒ बृह॒स्पति॒मिन्द्रं॒ दाना॑य चोदय । वातं॒ विष्णुं॒ सर॑स्वतीं सवि॒तारं॑ च वा॒जिन॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒र्य॒मण॑म् । बृह॒स्पति॑म् । इन्द्र॑म् । दाना॑य । चो॒द॒य॒ । वात॑म् । विष्णु॑म् । सर॑स्वतीम् । स॒वि॒तार॑म् । च॒ । वा॒जिन॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अर्यमणं बृहस्पतिमिन्द्रं दानाय चोदय । वातं विष्णुं सरस्वतीं सवितारं च वाजिनम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अर्यमणम् । बृहस्पतिम् । इन्द्रम् । दानाय । चोदय । वातम् । विष्णुम् । सरस्वतीम् । सवितारम् । च । वाजिनम् ॥ १०.१४१.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 141; मन्त्र » 5
    अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 29; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (अर्यमणम्) हे अग्ने परमात्मन् ! तू सूर्य को (दानाय) स्वप्रकाशदान करने के लिए (चोदय) प्रेरित कर (बृहस्पतिम्) ऊर्ध्वदिग्वर्ती विद्युद्रूप अग्नि को वृष्टिदान के लिए प्रेरित कर (इन्द्रम्) अन्तरिक्षवाले वायु को विमान चलाने-गति देने के लिए प्रेरित कर (वातम्) पृथिवी के वायु को श्वास प्रदान के लिए प्रेरित कर (विष्णुम्) पृथिवी के अन्दर व्यापक उसे पिण्डीभूत कर ओषधि देने के लिए प्रेरित कर (सरस्वतीम्) नदी को स्वजलप्रवाह देने के लिए प्रेरित कर (च) और (वाजिनं सवितारम्) बलवान् जीवनसंचार करनेवाले उदय होनेवाले सूर्य को जीवन देने के लिए प्रेरित कर ॥५॥

    भावार्थ

    आदित्य, बृहस्पति-आकाश की विद्युत् अन्तरिक्ष की वायु, पृथिवी की वायु, पृथिवी के अन्दर के विष्णु-व्यापक अग्नि तत्त्व, नदी और प्रातःकाल उदय होनेवाले सूर्य को अपने-अपने लाभ देने के लिए प्रेरित करता है, वह स्तुति करने योग्य है ॥५॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    अर्यमा से सविता तक

    पदार्थ

    [१] (अर्यमणम्) = 'अर्यमेति तमाहुर्यो ददाति' सब कुछ देनेवाले को, (बृहस्पतिम्) = सब वृद्धियों के स्वामी को, (इन्द्रम्) = शक्तिशाली प्रभु को (दानाय चोदय) = दान के लिए प्रेरित कर । अर्थात् इन देवों का तू इस प्रकार आराधन कर कि ये अपनी इन दिव्यताओं को तुझे प्राप्त करायें । तू भी दानशील, वृद्धियों का स्वामी व शक्तिशाली बन पाये। [२] इसी प्रकार (वातम्) = निरन्तर गतिशील को, (विष्णुम्) = व्यापक को, (सरस्वतीम्) = ज्ञानाधिष्ठातृदेवता को, (च) = और (वाजिनम्) = सब शक्तियोंवाले (सवितारम्) = उत्पादक प्रभु को दान के लिये प्रेरित कर । तू भी 'वात' की कृपा से निरन्तर क्रियाशील हो । 'विष्णु' तुझे व्यापकता प्रदान करे । 'सरस्वती' से तेरा जीवन शिक्षित व परिष्कृत हो । और 'सविता' से बल व प्राणशक्ति को प्राप्त करके तू निर्माण के कार्यों में लगनेवाले हों ।

    भावार्थ

    भावार्थ - हम दानशील, बुद्धिशील, शक्तिशाली, क्रियामय जीवनवाले, उदार, शिक्षित व शक्ति का सम्पादन करके निर्माण के कार्यों में लगनेवाले हों ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    राष्ट्र के बड़े बड़े आदरणीय पुरुषों को दानशील उदार होने की प्रार्थना।

    भावार्थ

    (अर्यमणं) न्यायकारी, शत्रुओं और प्रजाओं को नियन्त्रण करने वाले, (बृहस्पतिं) बड़े बल-पालक (इन्द्रं) शत्रुहन्ता तेजस्वी और (वातं) वायुवत् प्रबल वेगवान्, (विष्णुं) व्यापक सामर्थ्यवान्, (सरस्वतीं) उत्तम ज्ञान वाली विदुषी और (वाजिनं सवितारम्) ज्ञान, बलैश्वर्यवान्, सर्वप्रेरक, सर्वोत्पादक को तू (दानाय चोदय) उत्तम उत्तम ऐश्वर्य प्रदान करने के लिये प्रेरित कर, उनकी स्तुति और प्रार्थना कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिग्निस्तापसः। विश्वेदेवा देवताः॥ छन्द:- १, २ निचृद्नुष्टुप्। ३, ६ विराडनुष्टुप्। ४, ५ अनुष्टुप्॥ षडृचं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (दानाय चोदय) हे अग्ने परमात्मन् ! “उत्तरमन्त्रात् ‘अग्ने’ पदं गृह्यते” स्वलाभदानाय प्रेरय यथा (अर्यमणम्) सूर्यम् “अर्यमाऽदित्यः” [निरु० ११।२३] प्रकाशदानाय प्रेरय (बृहस्पतिम्) ऊर्ध्वदिग्वर्तिनं विद्युद्रूपाग्निं-वृष्टिकर्त्तारम् “बृहस्पतिः-बृहतां पालको विद्युद्रूपोऽग्निः” [यजु० २८।१० दयानन्दः] वृष्टिदानाय प्रेरय (इन्द्रम्) आन्तरिक्ष्यवायुम् “यौ वै वायुः स इन्द्रः” [श० ४।१।३।९] विमानचालनार्थं गतिदानाय प्रेरय (वातम्) पार्थिववायुं श्वासप्रदानाय प्रेरय (विष्णुम्) पृथिव्यां व्यापकं पृथिव्याः पिण्डीभूतत्वस्य कारणमोषधिदानाय प्रेरय “ध्रुवा दिग्विष्णुरधिपति...वीरुध...इषवः” [अथर्व० ३।२७।५] उक्तत्वात् (सरस्वतीम्) नदीम् “सरस्वत्यो नद्यः” [निघ० १।१३] स्वजलप्रवाहदानाय प्रेरय (च) तथा (वाजिनं सवितारम्) बलवन्तं जीवनसञ्चारकर्त्तारं प्रातरुदयन्तं सूर्यं जीवनदानाय प्रेरय ॥५॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    For the gifts of wealth, honour and excellence of life, invoke, adore and inculcate Aryaman, law of life, Brhaspati, cosmic expansion and centrifugal energy, Indra, cosmic electric energy, Vata, wind energy, Vishnu, cosmic gravitation and centripetal energy, Sarasvati, cosmic knowledge and speech of divinity, and Savita, cosmic creative energy which is the overall and ultimate all winner over negativities.

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    आदित्य, बृहस्पती, आकाशातील विद्युत, अंतरिक्षातील वायू, पृथ्वीवरील वायू, पृथ्वीतील विष्णू - व्यापक अग्नितत्त्व, नदी व प्रात:काळी उदय होणारा सूर्य या सर्वांचा लाभ इतरांना व्हावा, अशी प्रेरणा परमात्मा देतो. ती स्तुती करण्यायोग्य आहे. ॥५॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top