ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 149/ मन्त्र 3
ऋषिः - अर्चन्हैरण्यस्तुपः
देवता - सविता
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
प॒श्चेदम॒न्यद॑भव॒द्यज॑त्र॒मम॑र्त्यस्य॒ भुव॑नस्य भू॒ना । सु॒प॒र्णो अ॒ङ्ग स॑वि॒तुर्ग॒रुत्मा॒न्पूर्वो॑ जा॒तः स उ॑ अ॒स्यानु॒ धर्म॑ ॥
स्वर सहित पद पाठप॒श्चा । इ॒दम् । अ॒न्यत् । अ॒भ॒व॒त् । यज॑त्रम् । अम॑र्त्यस्य । भुव॑नस्य । भू॒ना । सु॒ऽप॒र्णः । अ॒ङ्ग । स॒वि॒तुः । ग॒रुत्मा॑न् । पूर्वः॑ । जा॒तः । सः । ऊँ॒ इति॑ । अ॒स्य॒ । अनु॑ । धर्म॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
पश्चेदमन्यदभवद्यजत्रममर्त्यस्य भुवनस्य भूना । सुपर्णो अङ्ग सवितुर्गरुत्मान्पूर्वो जातः स उ अस्यानु धर्म ॥
स्वर रहित पद पाठपश्चा । इदम् । अन्यत् । अभवत् । यजत्रम् । अमर्त्यस्य । भुवनस्य । भूना । सुऽपर्णः । अङ्ग । सवितुः । गरुत्मान् । पूर्वः । जातः । सः । ऊँ इति । अस्य । अनु । धर्म ॥ १०.१४९.३
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 149; मन्त्र » 3
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 7; मन्त्र » 3
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अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 7; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अमर्त्यस्य) मरणधर्मरहित (भुवनस्य) नित्य सत्तावाले के (भूमा) भूमा-महत्त्व से (पश्चा) पश्चादनुगामी चेतनतत्त्व (अन्यत्-अभवत्) परमात्मा से अतिरिक्त प्रसिद्ध है (यजत्रम्) जो समागमशील (अङ्ग) हे जिज्ञासो ! (सवितुः) उत्पादक परमात्मा से प्रसिद्धि को प्राप्त हुआ है, (गरुत्मान्) बोलनेवाला (सुपर्णः) शोभन कर्मवाला जीव (पूर्वः-जातः) पूर्व से प्रसिद्ध-नित्य है (सः-उ) वह ही (अस्य-अनुधर्म) परमात्मा का धर्मानुचारी गुणानुरूप चेतन ज्ञानवान् है ॥३॥
भावार्थ
अमर सत्तावाले परमात्मा की महिमा उसके पश्चादनुगमन करनेवाला, उससे भिन्न चेतनतत्त्व बोलने की शक्ति रखनेवाला, उत्तम कर्म करनेवाला, पूर्व से प्रसिद्ध परमात्मा का गुणानुरूप चेतन ज्ञानवान् जीव है, जो नित्य है ॥३॥
विषय
परस्पर गुथे हुए लोक
पदार्थ
[१] (पश्चा) = गत मन्त्र के अनुसार लोकत्रयी के निर्माण के (पश्चात् अमर्त्यस्य) = उस नष्ट न होनेवाले (भुवनस्य) = लोक-लोकान्तरों को जन्म देनेवाले प्रभु के (भूना) = [भूम्ना] महान् ऐश्वर्य से [भूमन्=wealth] (इदम्) = यह (अन्यत्) = सब दिखनेवाला लोकसमूह (यजत्रम्) = परस्पर संगतिकरणवाला (अभवत्) = हुआ। ये अनन्त लोक-लोकान्तर उत्पन्न हो गये और ये सब परस्पर सम्बद्ध थे । एकहार में पिराये हुए फूलों के समान इनकी स्थिति थी । [२] (सवितुः) = उस उत्पादक प्रभु से अंग-शीघ्र ही (सुपर्णः) = उत्तमता से पालन व पूरण करनेवाला (गरुत्मान्) = लोक-लोकान्तरों के महान् भार को लेकर आकाश में गति करनेवाला, अपनी आकर्षण शक्ति से पृथिवी आदि लोकों को अपने साथ लेकर चलनेवाला सूर्य (पूर्वः जातः) = सब से प्रथम हुआ। (सः) = वह सूर्य (उ) = निश्चय से (अस्य) = इस परमात्मा के (धर्म) = धारण सामर्थ्य को (अनु) = अनुसरण करके ही प्रवृत्त होता है । सब देवों में मुख्य सूर्य है। यह सूर्य भी प्रभु की शक्ति से शक्ति सम्पन्न हो रहा है।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु ही इस लोक-लोकान्तरों का निर्माण करते हैं । प्रभु की महिमा से ही सूर्य अपने धारणात्मक कर्मों को कर रहा है।
विषय
परमेश्वर के महान् सामर्थ्य से संयोग-विभाग से जगत् की उत्पत्ति। उससे सूर्य की उत्पत्ति।
भावार्थ
उस (अमर्त्यस्य) अविनाशी (भुवनस्य) महान् जगत् के उत्पादक प्रभु के ही (भूना) महान् सामर्थ्य से (पश्चात्) उसके पीछे (इदं अन्यत् यजत्रम् अभवत्) यह सब उससे भिन्न जड़ जगत् परस्पर संयोग से उत्पन्न हुआ है। (अङ्ग) हे विद्वन् ! (सवितुः) ३८ उस महान् जगत्-उत्पादक और जगत् संञ्चालक प्रभु से ही (सु-पर्णः) उत्तम रश्मियों वाला (गरुत्मान्) महान् पिण्ड वाला, बड़ा बलशाली सूर्य (पूर्वः) सबसे पहले, सबसे अधिक पूर्ण (जातः) उत्पन्न हुआ और वह (अस्य धर्म अनु) उसके धर्म अर्थात् धारण सामर्थ्य के अनुरूप सामर्थ्यवान ही होता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः अर्चन् हैरण्यस्तूपः॥ सविता देवता॥ छन्द:– १, ४ भुरिक् त्रिष्टुप्। २, ५ विराट् त्रिष्टुप्। ३ निचृत् त्रिष्टुप्। पञ्चर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अमर्त्यस्य भुवनस्य भूना) मरणधर्मरहितस्य भवतीति भुवनः-नित्यसत्तावान् तस्य, “भू सत्तायाम्” ततः क्युन् “भूसूधूभ्रस्जिभ्यश्छन्दसि” [उणादि० २।८०] सवितुः परमात्मनो भूमना महत्त्वेन “भूना भूमना” [यजु० १७।२८ दयानन्दः] (पश्चा) पश्चादनुगामि-चेतनतत्त्वं (अन्यत्-अभवत्) सवितुः परमात्मनो-ऽतिरिक्तं प्रसिद्धं भवति (यजत्रम्) यत्सङ्गमनशीलं “यजत्रः सङ्गन्ता” [ऋ० १।१७३।२ दयानन्दः] (अङ्ग) हे जिज्ञासो ! (सवितुः) उत्पादकात् परमात्मानः (गरुत्मान् सुपर्णः) “गरुतः शब्दा विद्यन्ते यस्य सः” [यजु० १२।४ दयानन्दः] सुपर्णः-“शोभनकर्मा जीवः” [ऋ० १।१६४।२१ दयानन्दः] प्रसिद्धिं प्राप्तः (पूर्वः-जातः) पूर्वतः प्रसिद्धो नित्यः (सः-उ-अस्य-अनु धर्म) स हि खल्वस्य परमात्मनः-धर्मानुचारी-गुणानुरूपश्चेतनो ज्ञानवान् ॥३॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Later all this other world arises in mutual relationship by the omnipotence of eternal lord Savita.$Dear seeker, from Savita only first arises the grand flying bird of fire, the sun, in conformity with the laws of Savita, and then the others.
मराठी (1)
भावार्थ
अमर सत्ता असलेल्या परमात्म्याच्या महिमेने अनुगमन करणारा, त्याच्यापासून भिन्न चेतन, बोलण्याची शक्ती ठेवणारा, उत्तम कर्म करणारा, पूर्वीपासून प्रसिद्ध, परमात्म्याच्या गुणानुरूप चेतन, ज्ञानवान, जीव आहे व तो नित्य आहे. ॥३॥
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