ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 158/ मन्त्र 5
सु॒सं॒दृशं॑ त्वा व॒यं प्रति॑ पश्येम सूर्य । वि प॑श्येम नृ॒चक्ष॑सः ॥
स्वर सहित पद पाठसु॒ऽस॒न्दृश॑म् । त्वा॒ । व॒यम् । प्रति॑ । प॒श्ये॒म॒ । सू॒र्य॒ । वि । प॒श्ये॒म॒ । नृ॒ऽचक्ष॑सः ॥
स्वर रहित मन्त्र
सुसंदृशं त्वा वयं प्रति पश्येम सूर्य । वि पश्येम नृचक्षसः ॥
स्वर रहित पद पाठसुऽसन्दृशम् । त्वा । वयम् । प्रति । पश्येम । सूर्य । वि । पश्येम । नृऽचक्षसः ॥ १०.१५८.५
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 158; मन्त्र » 5
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 16; मन्त्र » 5
Acknowledgment
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 16; मन्त्र » 5
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (1)
पदार्थ
(सूर्य) हे सूर्य ! (वयम्) हम (त्वा) तुझ (सन्दृशम्) सम्यक् दर्शनहेतु उदय होते हुए को (प्रति पश्येम) सम्मुख देखें (नृचक्षसः वि पश्येम) नरों में दर्शन समदर्शन रखनेवाले हम विगत होते हुए अस्त होते हुए को देखें ॥५॥
भावार्थ
मानव उदयकाल से लेकर अस्तसमय तक सूर्य को देख सकें, नेत्रों की दर्शनशक्ति नष्ट न हो, ऐसा आहार, व्यवहार, विचार रखें तथा समदृष्टि रखें, पक्षपातदृष्टि न हो ॥५॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सूर्य) हे सूर्य ! (वयं त्वा सन्दृशं प्रति पश्येम) वयं त्वां सम्यग्दर्शनहेतुमुद्यन्तं प्रतिमुखं सम्मुखं सन्तं पश्येम (नृचक्षसः-वि पश्येम) नृषु चक्षोर्दर्शनं परीक्षणं येषां ते वयं नृचक्षसो विपश्यास्तं यन्तं त्वां पश्येम ॥५॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O refulgent Sun of blissful light, may we always see you, and again and again see you as high and higher divinity, and in your divine light see things worthy of being seen by humanity for our guidance.
मराठी (1)
भावार्थ
मानवाला उदयकाळापासून अस्तापर्यंत सूर्याला पाहता यावे. नेत्राची दर्शनशक्ती नष्ट होता कामा नये असा आहार, व्यवहार, विचार ठेवावा व सर्वांबाबत समदृष्टी असावी. पक्षपात दृष्टी नसावी. ॥५॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Dhiman
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal