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ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 169/ मन्त्र 3
या दे॒वेषु॑ त॒न्व१॒॑मैर॑यन्त॒ यासां॒ सोमो॒ विश्वा॑ रू॒पाणि॒ वेद॑ । ता अ॒स्मभ्यं॒ पय॑सा॒ पिन्व॑मानाः प्र॒जाव॑तीरिन्द्र गो॒ष्ठे रि॑रीहि ॥
स्वर सहित पद पाठयाः । दे॒वेषु॑ । त॒न्व॑म् । ऐर॑यन्त । यासा॑म् । सोमः॑ । विश्वा॑ । रू॒पाणि॑ । वेद॑ । ताः । अ॒स्मभ्य॑म् । पय॑सा । पिन्व॑मानाः । प्र॒जाऽव॑तीः । इ॒न्द्र॒ । गो॒ऽस्थे । रि॒री॒हि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
या देवेषु तन्व१मैरयन्त यासां सोमो विश्वा रूपाणि वेद । ता अस्मभ्यं पयसा पिन्वमानाः प्रजावतीरिन्द्र गोष्ठे रिरीहि ॥
स्वर रहित पद पाठयाः । देवेषु । तन्वम् । ऐरयन्त । यासाम् । सोमः । विश्वा । रूपाणि । वेद । ताः । अस्मभ्यम् । पयसा । पिन्वमानाः । प्रजाऽवतीः । इन्द्र । गोऽस्थे । रिरीहि ॥ १०.१६९.३
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 169; मन्त्र » 3
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 27; मन्त्र » 3
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अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 27; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(याः) जो गौवें (देवेषु) विद्वानों के निमित्त (तन्वम्) अपने दूध को (ऐरयन्त) प्रेरित करती हैं देती हैं (यासाम्) जिनके (विश्वा रूपाणि) सारे रूपों को (सोमः-वेद) सोमधर्मवाला ब्रह्मचारी जानता है (पयसा) दूध से (अस्मभ्यम्) हमारे लिए-हमें (ताः पिन्वमानाः) वे तृप्त करती हुई-सींचती हुई सदा वर्त्तमान रहें (इन्द्र) हे राजन् ! (प्रजावतीः) इन सन्तानोंवाली गौवों को (गोष्ठे) राजकीय गोरक्षणसदन में (रिरीहि) प्रविष्ट कर-सुरक्षित रख-पालित पोषित कर ॥३॥
भावार्थ
गौवों का दूध विद्वानों के लिए अत्यन्त हितकर है, सोम्यस्वभाव ब्रह्मचारी दूध पीकर ही अपने को पुष्ट बनाता है, गौवें दूध से सभी को तृप्त करती हैं, इनकी रक्षार्थ राजकीय गोरक्षासदन होने चाहिये ॥३॥
विषय
गोदुग्ध से शक्ति विस्तार
पदार्थ
[१] (याः) = जो गौवें (देवेषु) = देववृत्ति के व्यक्तियों में (तन्वम्) - [तन् विस्तारे] शक्ति के विस्तार को (ऐरयन्त) = प्रेरित करती हैं। देव गोदुग्ध का प्रयोग करते हैं और इस प्रयोग से उनकी शक्तियों का विस्तार होता है । [२] (सोमः) = सौम्य वृत्ति का मनुष्य (यासाम्) = जिनके (विश्वा रूपाणि) = सब निरूपणीय पदार्थों को (वेद) = जानता है । 'गो दुग्ध, दही, छाछ, मखन' ये गौ के सात्त्विक पदार्थ हैं। खोया, मिठाइयाँ, पनीर आदि राजस पदार्थ हैं । खट्टी लस्सी आदि तामस पदार्थ हैं। एक सौम्य पुरुष इन सबको जानता है और सात्त्विक पदार्थों का प्रयोग करता है । [३] (ताः) = वे गौवें (पयसा पिन्वमानाः) = अपने दुग्ध से हमें प्रीणित करती हैं। हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यवाले प्रभो! आप (प्रजावती:) = उत्कृष्ट बछड़ोंवाली इन गौवों को (गोष्ठे) = हमारी गोशाला में (रिरीहि) = दीजिये । हमारी गोशाला गौवों से पूरी भरी हो, हमें किसी प्रकार भी दूध की कमी न हो।
भावार्थ
भावार्थ- गोदुग्ध के सेवन से हमें सब शक्तियों का विस्तार प्राप्त हो ।
विषय
श्लेष से गौओं, भूमियों का वर्णन। पक्षान्तर में आचार्य की वाणियों का वर्णन।
भावार्थ
(याः) जो (देवेषु) विद्वानों के बीच में (तन्वम्) अपने स्वरूप को (ऐरयन्त) प्रकट करती हैं, (सोमः) उत्तम विद्वान् पुरुष ही (यासाम् विश्वा रूपाणि वेद) जिनके समस्त रूपों को जानता है, (प्रजावतीः) प्रजा से युक्त होकर (पयसा पिन्वमानाः) दूध आदि से पुष्ट करती हुई (ताः) उनको (प्रजावतीः) उत्तम वचनों से युक्त गौवों के तुल्य (गो-स्थे) गौओं या वाणियों के स्थिर होने के उचित्त स्थानों में (रिरीहि) प्रदान कर। पक्षान्तर में—इन्द्र आचार्य की वाणियें, वे शिष्यों से प्रजावती हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः शत्ररः काक्षीवतः। गावो देवताः छन्द:- १ विराट् त्रिष्टुप् २, ४ त्रिष्टुप्। ३ निचृत् त्रिष्टुप् ॥ चतुर्ऋचं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(याः देवेषु तन्वम्-ऐरयन्त) याः खलु गावो विद्वत्सु तन्निमित्तं ‘तान्वं ह्रस्वत्वं छान्दसं यद्वा-छान्दसोऽणो लोपः’ तनूभवं दुग्धं प्रेरयन्ति (सोमः यासां विश्वा रूपाणि वेद) सोमधर्मवान् सदाचारी ब्रह्मचारी सर्वाणि रूपाणि जानाति (ताः-अस्मभ्यं पयसा पिन्वमानाः) ता गावोऽस्मभ्यम्-अस्मान् दुग्धेन तर्पयन्त्यः (इन्द्र प्रजावतीः-गोष्ठे-रिरीहि) राजन् ! ताः सन्तानवतीः-गोव्रजे राष्ट्रियगोसदने प्रेरय-प्रवेशय रक्ष च ॥३॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Indra, ruler and controller of life’s development and progress, bring to our dairy farms those cows which produce and yield abundant quality milk for noble and brilliant people, all forms, breeds and qualities, of which creative experts know, which yield more and more milk for our health and growth, and which produce better and better breed of calves.
मराठी (1)
भावार्थ
गायीचे दूध विद्वानांसाठी अत्यंत हितकर आहे. सौम्य स्वभावाचा ब्रह्मचारी दूध पिऊनही आपल्याला पुष्ट बनवतो. गायी दुधाने सर्वांना तृप्त करतात. त्यांच्या रक्षणार्थ राजकीय गोरक्षा सदन असले पाहिजे. ॥३॥
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