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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 169 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 169/ मन्त्र 1
    ऋषि: - शबरः काक्षीवतः देवता - गावः छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    म॒यो॒भूर्वातो॑ अ॒भि वा॑तू॒स्रा ऊर्ज॑स्वती॒रोष॑धी॒रा रि॑शन्ताम् । पीव॑स्वतीर्जी॒वध॑न्याः पिबन्त्वव॒साय॑ प॒द्वते॑ रुद्र मृळ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    म॒यः॒ऽभूः । वातः॑ । अ॒भि । वा॒तु॒ । उ॒स्राः । ऊर्ज॑स्वतीः । ओष॑धीः । आ । रि॒श॒न्ता॒म् । पीव॑स्वतीः । जी॒वऽध॑न्याः । पि॒ब॒न्तु॒ । अ॒व॒साय॑ । प॒त्ऽवते॑ । रु॒द्र॒ । मृ॒ळ॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मयोभूर्वातो अभि वातूस्रा ऊर्जस्वतीरोषधीरा रिशन्ताम् । पीवस्वतीर्जीवधन्याः पिबन्त्ववसाय पद्वते रुद्र मृळ ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मयःऽभूः । वातः । अभि । वातु । उस्राः । ऊर्जस्वतीः । ओषधीः । आ । रिशन्ताम् । पीवस्वतीः । जीवऽधन्याः । पिबन्तु । अवसाय । पत्ऽवते । रुद्र । मृळ ॥ १०.१६९.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 169; मन्त्र » 1
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 27; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (1)

    विषय

    इस सूक्त में गौओं की प्रशंसा की गई है, उनके घृत से होम में लाभ होता है, उनके घृत दूध के सेवन से बुद्धिवृद्धि, रोगनिवृत्ति, कामवासना पर विजय प्राप्त होता है, इत्यादि लाभ वर्णित हैं।

    पदार्थ

    (रुद्र) हे मेघों के रुलानेवाले वर्षानेवाले देव या मेघवृष्टिविज्ञ विद्वन् ! (वातः) वायु (मयोभूः) कल्याणदायक (अभिवातु) सामने से चले (उस्राः) गौवें (ऊर्जस्वतीः) रसभरी (ओषधीः) ओषधियों को (आ रिषन्ताम्) चबाएँ खाएँ (पीवस्वतीः) पुष्टिवाली होती हुई (जीवधन्याः) जीवों को तृप्त करती हुई (पिबन्तु) रसपान करें खाएँ पीवें (पद्वते) पादयुक्त गोवंश के लिए (अवसाय) मार्ग में खाने-पीने के लिए (मृड) सुखी कर ॥१॥

    भावार्थ

    पुरोवात के चलने से मेघ बरसता है, ओषधियाँ उत्पन्न होती हैं, गौवें उन्हें खाती हैं और खाकर के मनुष्यों को दूध पिलाती हैं। इस प्रकार वर्षा से अन्न खेती और घास होकर मनुष्यों का पालन होता है ॥१॥

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अत्र सूक्ते गवां प्रशंसा क्रियते गवां घृतं होमे बहुलाभप्रदं भवति गवां घृतसेवनेन दुग्धपानेन च बुद्धिवर्धनं रोगनिवृत्तिं कामवासनाविजयश्च भवतीत्येवमादयो लाभा वर्णिताः सन्ति।

    पदार्थः

    (रुद्र) हे मेघानां रोदयितः-वर्षयितर्देव ! मेघवृष्टिविज्ञ विद्वन् ! वा (वातः-मयोभूः-अभिवातु) एवं त्वं कुरु यद् वायुः कल्याणस्य भावयिताऽभितो-वातु-चलतु (उस्राः-ऊर्जस्वतीः-ओषधीः-आरिशन्ताम्) गावः “उस्रा गोनाम” [निघ० २।११] रसवतीरोषधीश्चर्वन्तु ‘रिश हिंसायाम्” [तुदादि०] सामर्थ्यात् चर्वणार्थे पुनः (पीवस्वतीः) पुष्टिमत्यः सत्यः “पीव स्थौल्ये” [भ्वादि०] असुन् पीवस् तद्वत्यः (जीवधन्याः पिबन्तु) जीवानां प्रीणयित्रीः स्थः पिबन्तु (पद्वते) पादयुक्ताय गोवंशाय (अवसाय) पथि भक्षणाय पानाय (मृड) सुखय ॥१॥

    English (1)

    Meaning

    May the wind blow fresh, delightful, exciting and blissful. Let cows feed on nourishing and energising herbs and grasses and drink abundant life giving waters. O Rudra, divine spirit of peace, joy and compassion, be kind and generous to the animals to provide them with ample food and water.

    मराठी (1)

    भावार्थ

    पूर्वेकडील वाताच्या वाहण्यामुळे मेघ बरसतो, औषधी उत्पन्न होते, गायी ते खातात व माणसांना दूध पाजवितात. या प्रकारे वृष्टीने अन्न, शेती व गवत तयार होते व माणसांचे पालन होते. ॥१॥

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