ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 22/ मन्त्र 6
ऋषिः - विमद ऐन्द्रः प्राजापत्यो वा वसुकृद्वा वासुक्रः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
अध॒ ग्मन्तो॒शना॑ पृच्छते वां॒ कद॑र्था न॒ आ गृ॒हम् । आ ज॑ग्मथुः परा॒काद्दि॒वश्च॒ ग्मश्च॒ मर्त्य॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठअध॑ । ग्मन्ता॑ । उ॒शना॑ । पृ॒च्छ॒ते॒ । वा॒म् । कत्ऽअ॑र्था । नः॒ । आ । गृ॒हम् । आ । ज॒ग्म॒थुः॒ । प॒रा॒कात् । दि॒वः । च॒ । ग्मः । च॒ । मर्त्य॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अध ग्मन्तोशना पृच्छते वां कदर्था न आ गृहम् । आ जग्मथुः पराकाद्दिवश्च ग्मश्च मर्त्यम् ॥
स्वर रहित पद पाठअध । ग्मन्ता । उशना । पृच्छते । वाम् । कत्ऽअर्था । नः । आ । गृहम् । आ । जग्मथुः । पराकात् । दिवः । च । ग्मः । च । मर्त्यम् ॥ १०.२२.६
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 22; मन्त्र » 6
अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 7; मन्त्र » 1
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अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 7; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अध) जीवन के अन्तकाल में (उशनाः) जीवन की कामना करनेवाला आत्मा (रमन्ता पृच्छते) जाते हुए श्वास-प्रश्वासों से पूछता है कि यहाँ ठहरो, क्यों जाते हो ? (वाम्) तुम दोनों (नः) हमारे (गृहम्-आ) देहगृह के प्रति आओ (मर्त्यम्) मरणधर्मा देह से (पराकात्-दिवः-ग्मः-च) दूर से द्युलोक से तथा पृथ्वीलोक से भी (कदर्था-आ जग्मथुः) किस प्रयोजन के लिए आये हो ? ॥६॥
भावार्थ
जीवन के अन्तकाल में जीवन की कामना करनेवाला आत्मा जाते हुए प्राणापानों से पूछता है, तुम क्यों जाते हो ? यहीं ठहरे रहो अर्थात् मरणकाल में भी आत्मा इन प्राणापानों को नहीं त्यागना चाहता। यही चाहता है कि मेरे इस नश्वर देह में प्राण बने रहें। चाहे द्युलोक से चाहे पृथिवीलोक से आयें। प्राण-अपान किस प्रयोजन के लिए आये हैं, यह ठीक-ठीक समझ मनुष्य को उसके उपयोग के लिए आचरण करना चाहिए ॥६॥
विषय
इन्द्रियों का सन्नियमन
पदार्थ
[१] (अध) = अब, साधना के लिये प्रयत्न करने के उपरान्त (उशना:) = जीवनयात्रा को पूर्ण करके प्रभु प्राप्ति की प्रबल कामना वाला यह साधक, (ग्मन्ता) = निरन्तर बाह्य विषयों में जाती हुई (वां) = तुम दोनों-ज्ञानेन्द्रियों व कर्मेन्द्रियों से (पृच्छते) = पूछता है कि तुम (कदर्था) = क्यों [किमर्थम् ] (दिवः ग्मः च) = द्युलोक के व पृथ्वीलोक के (पराकाद्) = दूर-दूर देशों से इस (मर्त्यम् गृहम्) = मनुष्य के घर में (न आजग्मथुः) = नहीं आते हो। [२] यह शरीर 'मर्त्य गृह' है । मरणाधर्मा होने से 'मर्त्य' है, जीव का निवास स्थान होने से 'गृह' है। इन्द्रियाँ सामान्यतः बाह्य विषयों में भटकती हैं। विषयों की चमक उनको सदा अपनी ओर खैंचती है । कोई एक आध वीर पुरुष ही इनको विषय- व्यावृत्त करके शरीर रूप गृह में ही स्थापित कर पाता है। जब ये अवस्थित हो जाती हैं तभी हम अपने स्वरूप में स्थित हो पाते हैं। यही उपनिषदों के शब्दों में 'परमागति' कहलाती है । द्युलोक व पृथ्वीलोक के दूर-दूर देशों में भटकनेवाली ये इन्द्रियाँ निरुद्ध होकर आत्मदर्शन के लिये सहायक होती हैं। तभी कैवल्य प्राप्त होता है, तभी हम प्रभु में विचरण करनेवाले बनते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- इन्द्रियों को दूर-दूर देशों से लौटाकर हम शरीर गृह में ही निरुद्ध करें, तभी हम आत्मदर्शन करते हुए प्रभु को पानेवाले बनेंगे ।
विषय
देह-प्राप्ति के सम्बन्ध में जिज्ञासा।
भावार्थ
(उशनाः) नाना भोगों की कामना करने वाला देहवान् मनुष्य (अध ग्मन्ता वां पृच्छते) जाते हुए तुम दोनों को लक्ष्य करके पूछता है कि (कदर्थाः) किस प्रयोजन से, तुम दोनों (पराकाद् दिवः) पर, दूरवर्त्ती तेजोमय सूर्य और (ग्मः च) भूमि से (नः) हम जीवों के इस (मर्त्यं गृहं आ जग्मतुः) मरण धर्मा गृह, देह को आते हो। इनमें प्राण इन्द्र है और उदरवर्त्ती अपान जाठर अग्नि है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विमद ऐन्द्रः प्रजापत्यो वा वसुकृद् वा वासुक्रः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्द:- १,४,८, १०, १४ पादनिचृद् बृहती। ३, ११ विराड् बृहती। २, निचृत् त्रिष्टुप्। ५ पादनिचृत् त्रिष्टुष्। ७ आर्च्यनुष्टुप्। १५ निचृत् त्रिष्टुप्॥ पन्चदशर्चं सूक्तम् ॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अध) अथ-अनन्तरं जीवनस्यान्तकाले (उशनाः) जीवितुं कामयमानाः-इन्द्र आत्मा (ग्मन्ता पृच्छते) गच्छन्तौ प्राणापानौ पृच्छति, युवां कथं गच्छथः ? अत्र तिष्ठतम् (वाम्) युवाम् (नः) अस्माकम् (गृहम्-आ) गृहं देहं प्रति-आगच्छतम् (मर्त्यम्) मरणधर्माणम् (पराकात्-दिवः ग्मः-च) दूरतः “पराके दूरनाम” [निघ० ३।२९] द्युलोकात् तथा पृथिवीलोकादपि “गौः ग्मा पृथिवीनाम” [निघ० १।१] (कदर्था-आजग्मथुः) हे प्राणापानौ ! किम्प्रयोजनौ खल्वागतवन्तौ-आगच्छतम् ॥६॥
इंग्लिश (1)
Meaning
The lover of life, the human soul, asks you both, currents of prana and apana energies, for what purpose did you come to this mortal home of ours, this body system, from the far off region of heavenly light and from the earth?
मराठी (1)
भावार्थ
जीवनाच्या अंत:काळी जीवनाची कामना करणारा आत्मा जाणाऱ्या प्राणापानाला विचारतो - इथेच राहा अर्थात मत्यूसमयीही आत्मा या प्राण-अपानाचा त्याग करू इच्छित नाही. तो हीच इच्छा करतो, की माझ्या या नश्वर देहात प्राण राहावा. द्युलोकातून किंवा पृथ्वीलोकातून आलेले हे प्राण अपान कोणत्या प्रयोजनासाठी आलेले आहेत हे ठीक ठीक समजून माणसाने त्यांच्या उपयोग करून घ्यावा.
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