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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 22 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 22/ मन्त्र 8
    ऋषिः - विमद ऐन्द्रः प्राजापत्यो वा वसुकृद्वा वासुक्रः देवता - इन्द्र: छन्दः - पाद्निचृद्बृहती स्वरः - मध्यमः

    अ॒क॒र्मा दस्यु॑र॒भि नो॑ अम॒न्तुर॒न्यव्र॑तो॒ अमा॑नुषः । त्वं तस्या॑मित्रह॒न्वध॑र्दा॒सस्य॑ दम्भय ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒क॒र्मा । दसुः॑ । अ॒भि । नः॒ । अ॒म॒न्तुः । अ॒न्यऽव्र॑तः । अमा॑नुषः । त्वम् । तस्य॑ । अ॒मि॒त्र॒ऽह॒न् । वधः॑ । दा॒सस्य॑ । द॒म्भ॒य॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अकर्मा दस्युरभि नो अमन्तुरन्यव्रतो अमानुषः । त्वं तस्यामित्रहन्वधर्दासस्य दम्भय ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अकर्मा । दसुः । अभि । नः । अमन्तुः । अन्यऽव्रतः । अमानुषः । त्वम् । तस्य । अमित्रऽहन् । वधः । दासस्य । दम्भय ॥ १०.२२.८

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 22; मन्त्र » 8
    अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 7; मन्त्र » 3
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    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    (अकर्मा) जो सत्कर्मशून्य-धर्मकर्मरहित (दस्युः) पीडक तथा (अमन्तुः) दूसरे को मान न देनेवाला गर्वित (अन्यव्रतः) अन्यथाचारी (अमानुषः) मनुष्यस्वभाव से भिन्न (नः-अभि) हमारे पर अभिभूत होता है-हमें दबाता है-सताता है (तस्य दासस्य) उस नीच जन का (वधः) जो हननसाधन है (त्वम्-अमित्रहन्) तू क्रूरजन के हन्ता परमात्मन् या राजन् ! (दम्भय) उसे नष्ट कर ॥८॥

    भावार्थ

    धर्म-कर्मरहित, गर्वित, अन्यथाचारी, मनुष्यस्वभाव से भिन्न, दूसरों को दबानेवाले, सतानेवाले को परमात्मा या राजा नष्ट किया करता है ॥८॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अकर्मा) यः सत्कर्मशून्यः (दस्युः) उपक्षयकर्त्ता (अमन्तुः) अन्यस्मै न मानदः स्वयं मर्षितः (अन्यव्रतः) अन्यथाचारी कदाचारी (अमानुषः) मनुष्यस्वभावभिन्नः (नः-अभि) अस्मानभिभवति (तस्य दासस्य) तस्य नीचजनस्य (वधः) या वधः-हननसाधनमस्ति (त्वम्-अमित्रहन्) त्वं क्रूरजनस्य हन्तः परमात्मन् राजन् वा ! (दम्भय) नाशय ॥८॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Whoever or whatever be negative, incorrigible, corrosive, without commitment or ill-committed, anti human and anti-life, that negative and destructive force, O destroyer of the unfriendly, saboteurs and destroyers, control, suppress and eliminate.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जो धर्म कर्मरहित, गर्विष्ठ, अनाचारी, अमानुष, दमन करणारा, त्रास देणारा असेल तर परमात्मा किंवा राजा त्याला नष्ट करतो. ॥८॥

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