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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 38 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 38/ मन्त्र 5
    ऋषिः - इन्द्रो मुष्कवान् देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    स्व॒वृजं॒ हि त्वाम॒हमि॑न्द्र शु॒श्रवा॑नानु॒दं वृ॑षभ रध्र॒चोद॑नम् । प्र मु॑ञ्चस्व॒ परि॒ कुत्सा॑दि॒हा ग॑हि॒ किमु॒ त्वावा॑न्मु॒ष्कयो॑र्ब॒द्ध आ॑सते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्व॒ऽवृज॑म् । हि । त्वाम् । अ॒हम् । इ॒न्द्र॒ । शु॒श्रव॑ । अ॒न॒नु॒ऽदम् । वृ॒ष॒भ॒ । र॒ध्र॒ऽचोद॑नम् । प्र । मु॒ञ्च॒स्व॒ । परि॑ । कुत्सा॑त् । इ॒ह । आ । ग॒हि॒ । किम् । ऊँ॒ इति॑ । त्वाऽवा॑न् । मु॒ष्कयोः॑ । ब॒द्धः । आ॒स॒ते॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्ववृजं हि त्वामहमिन्द्र शुश्रवानानुदं वृषभ रध्रचोदनम् । प्र मुञ्चस्व परि कुत्सादिहा गहि किमु त्वावान्मुष्कयोर्बद्ध आसते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्वऽवृजम् । हि । त्वाम् । अहम् । इन्द्र । शुश्रव । अननुऽदम् । वृषभ । रध्रऽचोदनम् । प्र । मुञ्चस्व । परि । कुत्सात् । इह । आ । गहि । किम् । ऊँ इति । त्वाऽवान् । मुष्कयोः । बद्धः । आसते ॥ १०.३८.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 38; मन्त्र » 5
    अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 14; मन्त्र » 5
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    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    (वृषभ-इन्द्र) हे शत्रुओं के ऊपर बलों को बरसानेवाले राजन् ! (त्वां स्ववृजम्) तुझ स्वयं बन्धनछेत्ता (अननुदम्) किसी भी बल देनेवाले की अपेक्षा न रखते हुए, स्वयं पूर्ण बलवाले (रध्रचोदनम्) तथा अपने आश्रित के प्रेरक को (अहं शुश्रव हि) मैं सुनता हूँ (कुत्सात् परि प्रमुञ्चस्व) निन्दित कर्म से सब ओर से अपने को पृथक् कर (आ गहि) संग्राम को प्राप्त हो (त्वावान्) तेरे जैसा उच्चपद पर विराजा हुआ-प्राप्त हुआ (मुष्कयोः-बद्धः किम्-उ-आसते) अण्डकोशों-विषयभोग प्रसङ्गों में बँधा कैसे रहे ? यह सम्भव नहीं है-यह शोभनीय नहीं है ॥५॥

    भावार्थ

    राजा सैन्य, शारीरिक, मानसिक और आत्मिक बलों से सम्पन्न हुआ तथा पापकर्म और विषयों से रहित और संयमी होकर समस्त भीतरी और बाहरी संग्रामों पर विजय पाता है ॥५॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (वृषभ-इन्द्र) हे शत्रूणामुपरि बलं वर्षयिता राजन् ! (त्वां स्ववृजम्) त्वां खलु स्वतो बन्धनछेत्तारम् (अननुदम्) कमपि बलदं नापेक्षकं स्वयं पूर्णबलवन्तम् (रध्रचोदम्) अपितु स्वाश्रितस्य प्रेरकम् (अहं शुश्रव हि) अहं शृणोमि हि (कुत्सात् परि प्रमुञ्चस्व) निन्दितात् कर्मणः सर्वतः स्वात्मानं प्रमोचय सदा पृथक् रक्ष (आगहि) संग्रामे प्राप्तो भव (त्वावान्) त्वत्सदृशः (मुष्कयोः-बद्धः किम् उ आसते) अण्डकोशयोर्विषय-भोगप्रसङ्गयोर्बद्धः कथमपि-आसीत् “लिङर्थे लेट्” [अष्टा० ३।४।७] नैतत् सम्भवति ॥५॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Come Indra, lord potent and generous, rise and take on the leadership. We hear and know you are powerful by yourself to uproot evil, indefatigable, inspirer of fighting forces, uplifter of the weak and breaker of blockades. Pray be free and free us from terror and violence. How can the brave like you stay back stolen by ravishment in obscurity?

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    राजा, सैन्य, शारीरिक, मानसिक व आत्मिक बलांनी संपन्न होऊन पापकर्म व विषयरहित आणि संयमी होऊन आतील व बाहेरील युद्धात विजय प्राप्त करतो. ॥५॥

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