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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 74 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 74/ मन्त्र 2
    ऋषिः - गौरिवीतिः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    हव॑ एषा॒मसु॑रो नक्षत॒ द्यां श्र॑वस्य॒ता मन॑सा निंसत॒ क्षाम् । चक्षा॑णा॒ यत्र॑ सुवि॒ताय॑ दे॒वा द्यौर्न वारे॑भिः कृ॒णव॑न्त॒ स्वैः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    हवः॑ । ए॒षा॒म् । असु॑रः । न॒क्ष॒त॒ । द्याम् । श्र॒व॒स्य॒ता । मन॑सा । निं॒स॒त॒ । क्षाम् । चक्षा॑णाः । यत्र॑ । सु॒वि॒ताय॑ । दे॒वाः । द्यौः । न । वारे॑भिः । कृ॒णव॑न्त । स्वैः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    हव एषामसुरो नक्षत द्यां श्रवस्यता मनसा निंसत क्षाम् । चक्षाणा यत्र सुविताय देवा द्यौर्न वारेभिः कृणवन्त स्वैः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    हवः । एषाम् । असुरः । नक्षत । द्याम् । श्रवस्यता । मनसा । निंसत । क्षाम् । चक्षाणाः । यत्र । सुविताय । देवाः । द्यौः । न । वारेभिः । कृणवन्त । स्वैः ॥ १०.७४.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 74; मन्त्र » 2
    अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 5; मन्त्र » 2
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    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    (एषाम्) इन सैनिकों का (हवः-असुरः) घोषशब्द राजा का प्रेरक है (द्यां नक्षत) आकाश को व्यापता है (श्रवस्यता मनसा) राजा के यश को चाहते हुए मन से (क्षां निंसत) पृथिवी को चूमता है-स्पर्श करता है (यत्र देवाः) जिस राष्ट्र में या राजा के होने पर उसके निमित्त कल्याण साधने के लिए विद्वान् (चक्षाणाः-सुविताय) ज्ञान से प्रकाशमान विद्वान् वर्तमान रहते हैं, (द्यौः-न) जैसे सूर्य (स्वैः-वारेभिः) अपनी अन्धकारनाशक किरणों से (कृणवन्त) प्रकाश करता है, वैसे वे विद्वान् ज्ञान का प्रकाश करते हैं ॥२॥

    भावार्थ

    राष्ट्र में सैनिकों का घोष शासक को प्रेरित करनेवाला है। वह आकाश में व्यापनेवाला और पृथिवी को छूनेवाला होना चाहिए तथा विद्वान् लोग राष्ट्र में ज्ञान का प्रकाश ऐसे फैला दें, जैसे सूर्य अपनी किरणों से प्रकाश फैलाता है ॥२॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (एषाम्-हवः-असुरः) एषां सैनिकानां घोषशब्दः राज्ञः प्रेरकः (द्यां नक्षत) आकाशं व्याप्नोति (श्रवस्यता मनसा क्षां निंसत) राज्ञो यशः काङ्क्षमाणेन मनसा पृथिवीं चुम्बति स्पृशति “निंसते चुम्बति” [ऋ० १।१४४।१ दयानन्दः] (यत्र देवाः-चक्षाणाः-सुविताय) यस्मिन् राष्ट्रे राजनि वा तन्निमित्तं कल्याणसाधनाय विद्वांसो ज्ञानेन प्रकाशमानाः संवर्तन्ते (द्यौः-न स्वैः-वारेभिः कृणवन्त) यथा सूर्यः स्वकीयैरन्धकारनिवारकै रश्मिभिः प्रकाशं करोति, तथा ते ज्ञानप्रकाशं कुर्वन्ति ॥२॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Their call to action, with the fragrance of their yajnic performance full of freshness and rejuvenation for life, rises to heaven and, with their ideas and fame, spreads over the whole earth where brilliant sages of vision and generous leaders, with their own essential choices and best actions, create a heaven on earth for the good and all round well being of life.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    राष्ट्रात सैनिकांचा घोष शासकाला प्रेरित करणारा आहे. तो आकाशाला व्यापणारा व पृथ्वीला स्पर्श करणारा असावा. जसा सूर्य आपल्या किरणांनी प्रकाश पसरवितो तसा विद्वान लोकांनी राष्ट्रात ज्ञानाचा प्रकाश पसरवावा. ॥२॥

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