Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 76 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 76/ मन्त्र 4
    ऋषिः - जरत्कर्ण ऐरावतः सर्पः देवता - ग्रावाणः छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    अप॑ हत र॒क्षसो॑ भङ्गु॒राव॑त स्कभा॒यत॒ निॠ॑तिं॒ सेध॒ताम॑तिम् । आ नो॑ र॒यिं सर्व॑वीरं सुनोतन देवा॒व्यं॑ भरत॒ श्लोक॑मद्रयः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अप॑ । ह॒त॒ । र॒क्षसः॑ । भ॒ङ्गु॒रऽव॑तः । स्क॒भा॒यत॑ । निःऽऋ॑तिम् । सेध॑त । अम॑तिम् । आ । नः॒ । र॒यिम् । सर्व॑ऽवीरम् । सु॒नो॒त॒न॒ । दे॒व॒ऽअ॒व्य॑म् । भ॒र॒त॒ । श्लोक॑म् । अ॒द्र॒यः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अप हत रक्षसो भङ्गुरावत स्कभायत निॠतिं सेधतामतिम् । आ नो रयिं सर्ववीरं सुनोतन देवाव्यं भरत श्लोकमद्रयः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अप । हत । रक्षसः । भङ्गुरऽवतः । स्कभायत । निःऽऋतिम् । सेधत । अमतिम् । आ । नः । रयिम् । सर्वऽवीरम् । सुनोतन । देवऽअव्यम् । भरत । श्लोकम् । अद्रयः ॥ १०.७६.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 76; मन्त्र » 4
    अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 8; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (अद्रयः) हे मन्त्रोपदेश करनेवाले विद्वानों ! तुम (भङ्गुरावतः) प्रहारक प्रवृत्तिवाले (रक्षसः) दुष्ट विचारों को (अपहत) नष्ट करो (निर्ऋतिं स्कभायत) रमणतारहित या अरमणीय प्रवृत्ति को नियन्त्रित करो-रोको (अमतिम्-अपसेधत) अज्ञता को दूर करो (नः) हमारे लिए (सर्ववीरं रयिम्) समस्त प्राणों से युक्त पोषण को (आसुनोतन) सम्पादित करो (देवाव्यं श्लोकं-भरत) परमात्मदेव जिससे प्राप्त हो, ऐसे वचन को हमारे अन्दर धारण करो ॥४॥

    भावार्थ

    विद्वान् जन जनता को ऐसा उपदेश करें, जिससे कि उनके अन्दर से दुष्ट विचार, अस्थिरता, अज्ञान दूर होकर वे स्वास्थ्य और परमात्मा की प्राप्ति कर सकें ॥४॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    वीरों, विद्वानों के कर्त्तव्य। दुष्टदमन, कष्ट निवारण, ऐश्वर्य-सम्पादन।

    भावार्थ

    हे वीरो ! विद्वान् पुरुषो ! आप लोग (रक्षसः अप हत) दुष्ट पुरुषों को मारो, उनको दण्ड दो, उनको बुरे कार्यों से दूर करो। (भङ्गरावतः) नियम-व्यवस्था को भङ्ग करने वाले लागों को (अप स्कभायत) वश करो। और (निर्ऋतिम्) सर्व प्रकार से कष्ट देने वाली (अमतिम्) दुःखदायी रोग वा अज्ञान बाधा को (अप सेधत) दूर करो। हे विद्वानो ! वीरो ! आप लोग (सर्व-वीरं रयिं) सर्व प्रकार के पुत्रों और वीरों से युक्त ऐश्वर्य को (आ सुनोतन) प्राप्त करो। और (देवाव्यं) विद्वानों और वीरों से प्राप्त होने योग्य (श्लोकं भरत) वेद-ज्ञान और कीर्त्ति, यश को (आ हरत) प्राप्त करो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    जरत्कर्ण ऐरावतः सर्प ऋषिः॥ ग्रावाणो देवताः॥ छन्दः- १, ६, ८ पादनिचृज्जगती। २, ३ आर्चीस्वराड् जगती। ४, ७ निचृज्जगती। ५ आसुरीस्वराडार्ची निचृज्जगती॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    राक्षसी वृत्तियों को संहार

    पदार्थ

    [१] प्रभु उपासकों से कहते हैं कि - हें (अद्रय:) = [thrse who adone] उपासको ! (भंगुरावतः) = भंजन व तोड़-फोड़ के कर्मों में प्रवृत्त होनेवाली (रक्षसः) = राक्षसी वृत्तियों को (अपहृत) = अपने से सुदूर विनष्ट करो, (निर्ऋतिम्) = दुर्गति-दुराचरण-रूप पापदेवता को (स्कभायत) = दूर ही रोक दो, (अमतिम्) = अप्रशस्त बुद्धि को (सेधत) = अपने समीप आने से निषिद्ध कर दो वस्तुतः प्रभु का उपासक राक्षसीवृत्तियों से, पाप से अप्रशस्त विचारों से अपने को दूर ही रखता है। [२] हे उपासको ! (नः) = हमारे इस (सर्ववीरम्) = सारे कोशों को वीरता से पूर्ण करनेवाले (रयिम्) = सोमात्मक धन को (सुनोतन) = अपने में अभिषुत करो। इस सोम के रक्षण से ही तुम राक्षसी वृत्तियों को, निर्ऋति व अमति को दूर रख पाओगे। इस सोम के रक्षण के लिये ही (देवाव्यम्) = दिव्यगुणों के प्रीणित करनेवाले (श्लोकम्) = प्रभु के यशोगान को (भरत) = धारण करनेवाले बनो। प्रभु का यह स्तवन वासनाओं से बचाकर सोमरक्षण के लिये सहायक होगा और हमारे में दिव्यगुणों का वर्धन करनेवाला होगा ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम उपासक बनकर सोम का रक्षण करें। यह सोमरक्षण हमें अशुभ वृत्तियों से बचायेगा और शुभ की ओर ले चलेगा ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अद्रयः-भङ्गुरावतः-रक्षतः-अपहत) हे मन्त्रोपदेष्टारः ! प्रहारकप्रवृत्तिमतो दुष्टान् विचारान्  नाशयत (निर्ऋतिं स्कभायत) नीरमणीयां प्रवृत्तिं स्तम्भयत-नियन्त्रयत (अमतिम्-अपसेधत) अज्ञतां दूरी कुरुत (नः-सर्ववीरं-रयिम्-आसुनोतन) अस्मभ्यं सर्वप्राणयुक्तम् “प्राणा वै दशवीराः” [श० १२।८।१।२३] पोषं पोषणम् “रयिं देहि पोषं देहि” [काठ० १।७] सम्पादयत (देवाव्यं श्लोकं भरत) परमात्मदेवः प्राप्यो येन भवति तथाविधं वचनमस्मासु धारयत ॥४॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O yajakas and creators of soma, destroy the wicked and the evil tendencies, hold off the crooked and negative forces from the ways of development and progress, drive off want and poverty, create and bring us wealth and progeny worthy of the brave, and sing songs of thanks and praise in honour of the divinities.

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    विद्वान लोकांनी जनतेला उपदेश करावा. ज्यामुळे दुष्ट विचार अस्थिरता, अज्ञान दूर होऊन स्वास्थ्य व परमात्म्याची प्राप्ती व्हावी. ॥४॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top