ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 81/ मन्त्र 2
ऋषिः - विश्वकर्मा भौवनः
देवता - विश्वकर्मा
छन्दः - पादनिचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
किं स्वि॑दासीदधि॒ष्ठान॑मा॒रम्भ॑णं कत॒मत्स्वि॑त्क॒थासी॑त् । यतो॒ भूमिं॑ ज॒नय॑न्वि॒श्वक॑र्मा॒ वि द्यामौर्णो॑न्महि॒ना वि॒श्वच॑क्षाः ॥
स्वर सहित पद पाठकिम् । स्वि॒त् । आ॒सी॒त् । अ॒धि॒ऽस्थान॑म् । आ॒ऽरम्भ॑णम् । क॒त॒मत् । स्वि॒त् । क॒था । आ॒सी॒त् । यतः॑ । भूमि॑म् । ज॒नय॑न् । वि॒श्वऽक॑र्मा । वि । द्याम् । और्णो॑त् । म॒हि॒ना । वि॒श्वऽच॑क्षाः ॥
स्वर रहित मन्त्र
किं स्विदासीदधिष्ठानमारम्भणं कतमत्स्वित्कथासीत् । यतो भूमिं जनयन्विश्वकर्मा वि द्यामौर्णोन्महिना विश्वचक्षाः ॥
स्वर रहित पद पाठकिम् । स्वित् । आसीत् । अधिऽस्थानम् । आऽरम्भणम् । कतमत् । स्वित् । कथा । आसीत् । यतः । भूमिम् । जनयन् । विश्वऽकर्मा । वि । द्याम् । और्णोत् । महिना । विश्वऽचक्षाः ॥ १०.८१.२
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 81; मन्त्र » 2
अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 16; मन्त्र » 2
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अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 16; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(किं स्वित्) विश्व के उत्पत्तिकाल में परमात्मा का क्या ही (अधिष्ठानम्-आसीत्) आश्रय था-होता है (कतमत् स्वित्) कौन सा ही (आरम्भणम् कथा-आसीत्) जगत् जिससे आरम्भ होता है, ऐसा मूल किस प्रकार का था या होता है (यतः) जिस मूल से (विश्वकर्मा) विश्व जिसका कर्म-शिल्प है, वह विश्व का रचयिता परमेश्वर (भूमिं दयां जनयन्) भुमिलोक द्युलोक-द्यावापृथिवीमय जगत् को उत्पन्न करता हुआ (विश्वचक्षाः) सर्वद्रष्टा परमात्मा (महिना) अपने महत्त्व से महती शक्ति से (व्यौर्णोत्) उसे विकसित करता है, सृष्टिरूप में फ़ैलाता है ॥२॥
भावार्थ
विश्व को उत्पन्न करते हुए आश्रय कौन था ? कौन होता है ? सृष्टि का मूल पदार्थ क्या है ? जिससे सृष्टि रची है। जिसे कार्यरूप में विकसित किया या परिणत करता है, द्युलोक पृथिवीलोकवाले जगद्रूप में, यह परमात्मा को मनन करने का प्रकार है। जगत् का मूल पदार्थ तथा उसको सृष्टि के रूप में लानेवाला कोई होना चाहिये ॥२॥
विषय
जगत् के आश्रय, और सर्ग तथा मूलकारण आदि के सम्बन्ध में प्रश्न।
भावार्थ
पूर्व मन्त्र में वह सर्वद्रष्टा, सर्व जगत्-यज्ञ का सम्पादक सर्वपिता, पालक प्रभु परमेश्वर अपने इच्छा, अर्थात् संकल्पमात्र से महान् व्यापक शासन-शक्ति से सब को चलाता हुआ सब में व्याप्त हो रहा बतलाया है। इस मन्त्र में जगत् के मूलकारण पर विचार करते हैं। (अधिष्ठानम्) आश्रय इस जगत् का (किंस्वित् आसीत्) क्या है, कैसा है, और वह (आरम्भणं कतमत् स्वित्) अनेकों में से कौनसा है जो इस जगत् का आरम्भक मूलकारण या उपादान कारण है। (कथा आसीत्) वह मूलकारण जगत् का उत्पादक किस प्रकार से होता है। (यतः) जिस उपदान कारण से (विश्व-कर्मा) समस्त जगत् का बनाने वाला, (विश्व-चक्षाः) समस्त जगत् का द्रष्टा, (भूमिम् द्याम्) भूमि और सूर्य वा महान् आकाश को भी उत्पन्न करता हुआ (महिना) अपने महान् ऐश्वर्य से (भूमिम् द्याम् वि और्णोत्) आकाश और भूमि दोनों को आच्छादित करता है, भूमि पर अनेक वृक्ष, गुल्मलता नदी, पर्वत, समुद्रादि बनाता और अन्तरिक्ष, वायु, मेघ आदि बनाता तथा आकाश में सूर्य, चन्द्र, बिना नक्षत्रादि रचता है।
टिप्पणी
विश्वकर्मा सर्वस्य कर्त्ता। निरु० १०। २५॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वकर्मा भौवनः॥ विश्वकर्मा देवता॥ छन्द:– १, ५, ६ विराट् त्रिष्टुप्। २ ४ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ३, ७ निचृत् त्रिष्टुप्। सप्तर्चं सूक्तम्॥
विषय
अधिष्ठान व आरम्भण ?
पदार्थ
[१] जब सृष्टि का प्रारम्भ हुआ तो उस समय (अधिष्ठानम्) = बैठने का स्थान, अर्थात् आधार (किंस्वित् आसीत्) = क्या था ? एक कारीगर किसी स्थान पर बैठकर ही तो अपने कार्य को करता है । उस 'विश्वकर्मा' ने भी किसी स्थान पर बैठकर ही तो इस विश्व को बनाया होगा। प्रश्न यह है कि यह अधिष्ठान क्या था ? [२] इसी प्रकार एक बढ़ई लकड़ी को लेकर ही मेज आदि को बनाने में प्रवृत्त होता है। ये लकड़ी आदि पदार्थ 'आरम्भण' कहलाते हैं, इनके द्वारा मेज आदि का आरम्भ किया जाता है। यह (आरम्भणम्) = सृष्टि का उपादानकारण (कतमत् स्वित्) = भला कौन - सा था ? कथा (आसीत्) = और वह कैसा था ? [३] वह आरम्भण, (यतः) = जिससे कि (भूमिं जनयन्) = इस भूमि को जन्म देता हुआ (विश्वकर्मा) = संसार का निर्माता तथा (विश्वचक्षाः) = सर्वद्रष्टा प्रभु (महिना) = अपनी महिमा से (द्याम्) = इस द्युलोक को (वि और्णोत्) = प्रकट करता है। इस भूमि व द्युलोक का आरम्भण कौन-सा था ?
भावार्थ
भावार्थ - प्रभु ने जब सृष्टि को बनाया तो उसका अधिष्ठान कौन-सा था तथा किस 'आरम्भण' को लेकर उसने इन द्यावा भूमि को बनाया ?
संस्कृत (1)
पदार्थः
(किं-स्वित्-अधिष्ठानम्-आसीत्) विश्वोत्पादनकाले तस्य किं खल्वाश्रयणमासीत् (कतमत् स्वित्-आरम्भणम् कथा-आसीत्) कतमद्धि यत आरभ्यते जगत् तत् कतमत् खलु मूलं कथं जातीयमासीत् “आरभ्यतेअस्मादिति ल्युट्-अपादाने कृत्यल्युटो बहुलमिति वचनात्” (यत:) यतो मूलात् (विश्वकर्मा) विश्वं यस्य कर्म स विश्वरचयिता परमेश्वर: (भूमिं द्यां जनयन्) भुमिलोकं द्युलोकं च द्यावापृथिवीमयं जगज्-जनयन् (विश्वचक्षाः-महिना व्यौर्णोत्) विश्वद्रष्टा परमेश्वरः स्वमहत्त्वेन तन्मूलं विवृणोति विकासयति सृष्टिरूपे प्रसारयति ॥२॥
इंग्लिश (1)
Meaning
What was the basis, what the beginning of the beginning, what sort and whence, from which Vishvakarma, omniscient all watching guardian of the universe, creating the heaven and earth shaped them and vested them with divine grandeur?
मराठी (1)
भावार्थ
विश्व उत्पन्न करण्यात कोण आश्रयदाता होता? कोण होता आहे? ज्याच्याद्वारे सृष्टी रचलेली आहे त्या सृष्टीचा मूल पदार्थ काय आहे? द्युलोक, पृथ्वीलोक कार्यरूपाने परमात्मा विकसित करतो. परमात्म्याला मनन करण्याचा हा प्रकार आहे. जगाचा मूळ पदार्थ व त्याला सृष्टीच्या रूपात आणणारा कोणी तरी असला पाहिजे. ॥२॥
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