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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 83 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 83/ मन्त्र 3
    ऋषिः - मन्युस्तापसः देवता - मन्युः छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अ॒भी॑हि मन्यो त॒वस॒स्तवी॑या॒न्तप॑सा यु॒जा वि ज॑हि॒ शत्रू॑न् । अ॒मि॒त्र॒हा वृ॑त्र॒हा द॑स्यु॒हा च॒ विश्वा॒ वसू॒न्या भ॑रा॒ त्वं न॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒भि । इ॒हि॒ । म॒न्यो॒ इति॑ । त॒वसः॑ । तवी॑यान् । तप॑सा । यु॒जा । वि । ज॒हि॒ । शत्रू॑न् । अ॒मि॒त्र॒ऽहा । वृ॒त्र॒ऽहा । द॒स्यु॒ऽहा । च॒ । विश्वा॑ । वसू॑नि । आ । भ॒र॒ । त्वम् । नः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभीहि मन्यो तवसस्तवीयान्तपसा युजा वि जहि शत्रून् । अमित्रहा वृत्रहा दस्युहा च विश्वा वसून्या भरा त्वं न: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अभि । इहि । मन्यो इति । तवसः । तवीयान् । तपसा । युजा । वि । जहि । शत्रून् । अमित्रऽहा । वृत्रऽहा । दस्युऽहा । च । विश्वा । वसूनि । आ । भर । त्वम् । नः ॥ १०.८३.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 83; मन्त्र » 3
    अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 18; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (मन्यो) हे आत्मप्रभाव ! तू (अभि-इहि) सम्मुख प्राप्त हो (तवसः-तवीयान्) बलवानों से भी बहुत बलवान् है (युजा तपसा) योक्तव्य तप से युक्त हुआ (शत्रून् वि जहि) काम आदि शत्रुओं को विनष्ट कर (अमित्रहा वृत्रहा दस्युहा च) तू विरोधी विचारों का नाशक, पापनाशक और क्षयकारक रोग का नाशक है (त्वं नः) तू हमारे लिये (विश्वा वसूनि) सब बसानेवाले गुणधनों को (आ भर) आभरित कर ॥३॥

    भावार्थ

    आत्मप्रभाव या स्वाभिमान भारी बलवान् है। तप पुरुषार्थ संयम से युक्त होकर काम आदि दोषों को नष्ट करता है, दुर्विचारों-पापभावों रोगों को भी भगाने में समर्थ है, गुणधनों को प्राप्त कराता है ॥३॥

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    विषय

    अति बलशाली, मन्युदेव, प्रभु, अध्यात्म में इन्द्र मन्यु आत्मा।

    भावार्थ

    हे (मन्यो) दीप्तियुक्त तेजस्विन् अग्नि के समान परंतप ! तू (तवसः तवीयान्) सब बलशाली से बलवान् है। तू (अभि इहि) शत्रु के प्रति आक्रमण कर। और (तपसा) श्रमशील सहायक जन से (शत्रून् वि जहि) शत्रुओं का नाश कर। तू (अमित्र-हा) शत्रुनाशक (दस्यु-हा) दुष्ट, प्रजानाशकों का नाशक हो। और (त्वं) तू (विश्वा वसूनि) समस्त ऐश्वर्य (नः आ भर) हमें प्रदान कर। (२) अध्यात्म में—इन्द्र वा मन्यु आत्मा उसका सहयोगी तपःस्वरूप परमेश्वर है। उसके सहाय से ही वह (तवसः तवीयान्) बलशाली से भी अधिक बलशाली होकर मार्ग पर बढ़े। भीतरी शत्रु काम, क्रोध आदि का नाश करे और हमें समस्त अध्यात्म सुखों को प्राप्त करावे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मन्युस्तापसः॥ मन्युर्देवता। छन्दः- १ विराड् जगती। २ त्रिष्टुप्। ३, ६ विराट् त्रिष्टुप्। ४ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ५, ७ निचृत् त्रिष्टुप्॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    शत्रुनाश व वसु प्राप्ति

    पदार्थ

    [१] हे (मन्यो) = ज्ञान ! तू (अभि इहि) = हमारी ओर आनेवाला हो, हमें प्राप्त हो । तू (तवसः तवीयान्) = बलवान् से भी बलवान् है। ज्ञान सर्वाधिक शक्तिवाला है। (तपसा युजा) = हे ज्ञान ! तप रूप साथी के साथ तू (शत्रून् विजहि) = हमारे काम-क्रोधादि शत्रुओं को नष्ट कर दे । तप से ज्ञान उत्पन्न होता है और यह ज्ञान कामादि शत्रुओं का विध्वंस करनेवाला होता है । [२] हे मन्यो ! तू (अमित्रहा) = हमारे शत्रुओं का नाश करनेवाला है, (वृत्रहा) = ज्ञान की आवरणभूत वासना को नष्ट करता है। (च) = और तू (दस्युहा) = दास्यव वृत्ति को समाप्त करनेवाला है, हमारे से नाशक वृत्तियों को यह ज्ञान दूर करता है । [३] हे ज्ञान ! (त्वे) = तू (नः) = हमारे लिये (विश्वा वसूनि) = सब निवास के लिये आवश्यक तत्त्वों को (आभरा) = प्राप्त करानेवाला हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ - ज्ञान एक प्रबल शक्ति है । यह हमारे सब शत्रुओं को समाप्त करती है और हमें वसुओं को प्राप्त कराती है।

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (मन्यो) हे आत्मप्रभाव ! त्वं (अभि-इहि) सम्मुखं प्राप्तो भव (तवसः-तवीयान्) बलवतोऽपि बहुबलवान् (तपसा युजा शत्रून् वि जहि) योक्तव्येन तपसा युक्तः कामादिशत्रून् विनाशय (अमित्रहा वृत्रहा दस्युहा च) त्वं विरोधिविचारहन्तो पापहन्ता क्षयकारकरोगहन्ता चासि (त्वं नः) त्वमस्मभ्यं (विश्वा वसूनि आ भर) सर्वाणि वासयोग्यानि गुणधनानि खल्वाभरितानि कुरु ॥३॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Come manyu, stronger than strength itself, one with valour and austerity of discipline, destroy the enemies. Come, saviour of friends and destroyer of adversaries, dispeller of darkness, eliminator of evil and negativity, bear and bring us all wealth, honour and excellence of the world.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    आत्मप्रभाव किंवा स्वाभिमान अत्यंत बलवान असतो. तप-पुरुषार्थ संयमाने युक्त होऊन काम इत्यादी दोषांना नष्ट करतो. दुर्विचार, पापभाव, रोग दूर करण्यास समर्थ असतो. गुण धन प्राप्त करवितो. ॥३॥

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